"बस दो दिन की ज़िंदगी – कोई अपना नहीं होता"

 


                                                                    कहानी का शीर्षक:
                                            "बस दो दिन की ज़िंदगी – कोई अपना नहीं होता"

                                                                                



🌑 कहानी शुरू होती है...

"कभी लगता है सबकुछ है, फिर एक पल में लगता है कुछ भी नहीं..."
यही सोचते हुए बैठा था रवि एक सुनसान बस स्टैंड पर, हाथ में एक पुराना बैग और दिल में हजारों टूटे हुए ख्वाब।

रवि का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। मां-पिता खेतों में काम करते थे और रवि बचपन से ही हर किसी की उम्मीदों का केंद्र रहा। पढ़ाई में होशियार, व्यवहार में विनम्र – हर कोई कहता, "ये लड़का एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा।"

लेकिन समय ने रवि से उसकी सबसे बड़ी चीज छीन ली – भरोसा

🕯️ एक दिन, जब सब बदल गया...

रवि शहर में नौकरी की तलाश में आया था। जहां पहले दिन उसे एक होटल में काम मिला – प्लेट धोने का, फिर वेटर का।

दो साल बीत गए। किसी से कोई बात नहीं, कोई दोस्त नहीं। वो सिर्फ खुद से बातें करता –
"खुशियां किससे बांटे?"
"दर्द किसे सुनाएं?"

उसका एक ही साथी था – वो पुराना नोटबुक, जिसमें वो हर रोज एक नई बात लिखता –

"आज खाना बचा, लेकिन दिल फिर से खाली रहा।"
"मां की याद आई, पर फ़ोन का बैलेंस नहीं था।"

🌧️ वो दो दिन...

एक दिन रवि की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई। डॉक्टर ने कहा –
"टाइफॉइड है, आराम की जरूरत है।"
पर काम पर छुट्टी नहीं मिली। मालिक ने कहा –
"जो बीमार हो, वो यहां क्यों काम करता है?"

रवि वहीं सड़क किनारे बैठा रहा। कोई पास नहीं आया, कोई पानी तक देने नहीं रुका।

वो दो दिन... बस दो दिन, ऐसे थे जैसे ज़िंदगी खत्म हो गई हो।
तब उसे समझ आया –

"दो दिन की ज़िंदगी भी बहुत लंबी लगती है, अगर उसमें कोई अपना न हो।"

🫥 और फिर...

तीसरे दिन, रवि के पास न काम था, न रहने की जगह। लेकिन तब उसे मिल गई एक 90 साल की बूढ़ी अम्मा, जो मंदिर के बाहर बैठती थीं। उन्होंने कहा –
"बेटा, मैं तुझसे बात कर सकती हूं। तुझे अपना बना सकती हूं।"

रवि उनके साथ रहा, खाना बनाया, मंदिर में सेवा की। लोगों ने उसकी अच्छाई देखी और एक NGO से जुड़ गया।

अब रवि अनाथ बच्चों को पढ़ाता है। और रोज रात को बच्चों से कहता है –

"कभी किसी को ये मत कहो कि वो अकेला है। क्योंकि दो दिन की जिंदगी, अकेले नहीं कटती।"

💔 कहानी का भाव

इस कहानी का हर हिस्सा ये बताता है कि:

  • अकेलापन इंसान को तोड़ देता है।

  • सच्चे रिश्ते वही होते हैं, जो बिना शर्त अपनाते हैं।

  • दो दिन की जिंदगी भी एक पूरी किताब होती है, अगर कोई हो जो उसे पढ़े।

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