लार्ड वेलेजली की सहायक संधि का विस्तार से वर्णन कीजिए | (jpsc मैन्स पेपर 3 का महत्वपूर्ण टॉपिक )
लार्ड वेलेजली की सहायक संधि का विस्तार से वर्णन कीजिए |
वैलेजली के कार्यकाल से पहले कम्पनी की ओर से देश की शक्ति को बढ़ाने के लिए
एक व्यापक नीति बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया था। राजनीतिक और सैनिक विषम परिस्थितियां पैदा
होते ही इससे निपटने के लिए समय-समय पर तदर्थ संधिया और करार किए जाते थे।
पानीपत के युद्ध के पश्चात् मराठा शक्ति के पुनरोत्थान, हैदर अली के अभ्युदय, पेरिस की संधि द्वारा
निर्धारित स्थिति में स्वयं को रखने की फ्रांसवासियों की उदासीनता, निजाम की अन्तरण नीतियां, और अन्य कारकों ने व्यापक आधार
वाली और स्थिर नीति को बनने नहीं दिया।
वैलेजली के भारत आने के समय तक स्थिति अप्रत्याशित रूप से
कम्पनी के पक्ष में हो
गई थी। मराठा शक्ति को आन्तरिक असंतुष्टों ने कमजोर कर दिया था। टीपू
सुल्तान 1790-92 के युद्ध में उलझ गया था।
भारतीय राजनीतिक
व्यवस्था विघटन के कगार पर थी और कम्पनी ने अपनी शक्ति का ठोस आधार बना लिया था।
वैलेजली एक नयी राजनीतिक व्यवस्था तैयार करना चाहते थे जो न केवल फ्रांसीसियों
को दूर रख सके अपितु देश की शक्तिशाली बनाने के लिए सहयोग और संसाधनों को कम्पनी के निपटारे पर रख
सकें।
उनके द्वारा शुरू की गई नई राजनीतिक व्यवस्था में राज्य
अपने-अपने संबंधित क्षेत्र की सीमाओं में ब्रिटिश शक्ति के सामान्य संरक्षण के अधीन अलग-अलग प्राधिकार का
उपयोग कर सकते थे। सैनिक संरक्षण सहायक संधि
प्रणाली का सार था।
इस प्रणाली के चार प्रकार हैं। इसका प्राथमिक
प्रकार वह था जिसमें कम्पनी केवल भारतीय शासक द्वारा अनुरोध
करने पर ही सैनिक शक्तियां प्रदान करने पर सहमत हुई थी जैसी कि निजाम
के साथ 1768 में की गई सन्धि में व्यवस्था थी।
दूसरे प्रकार में सहायक
शक्तियां सीमा पर न कि उस शासक के अपने प्रान्त में किसी भी समय उपयोग में लाए जाने के लिए भारतीय शासक
के खर्चे पर स्थायी रूप से रखी जाती थी।
तीसरे प्रकार में सहायक
शक्तियां न केवल स्थायी रूप से रखी जाती थी अपितु संरक्षण प्राप्त शासक की सीमा के भीतर रहती थी।
चौथे प्रकार में सहायक शक्तियां
स्थायी थी और संरक्षण प्राप्त शासक के प्रांत में ही रहती थी। इन चार प्रकार में से अन्तिम तीन वैलेजली के
शासन के समय विकसित हुए थे।
पाँचवां प्रकार टीपू सुल्तान के
पतन के बाद मैसूर में 1799
की संधि द्वारा शुरू किया गया था जिसमें जब भी आवश्यक हो मैसूर सरकार के सभी
मामलों में ब्रिटिश हस्तक्षेप की व्यवस्था की गई थी।
सहायक संधि स्वीकार करने वाले राज्य, सबसे पहले निम्न राज्यों ने सहायक संधि अपनायी :
राज्य | ईसवीं |
---|---|
राज्यहैदराबाद | ईसवीं1798 – भारत में सहायक संधि को स्वीकार करने वाला पहला शासक हैदराबाद का निज़ाम था। |
राज्यमैसूर | ईसवीं1799 |
राज्यतंजौर | ईसवींअक्तूबर, 1799 |
राज्यअवध | ईसवींनवम्बर, 1801 |
राज्यपेशवा | ईसवींदिसम्बर, 1802 |
राज्यबराड के भोसले | ईसवींदिसम्बर 1803 |
राज्यसिंधिया | ईसवींफरवरी, 1804 |
इसका परिणाम मैत्रीपूर्ण रहा था और इससे कम्पनी और मैसूर के
मध्य स्थापित की गई
थी। सहायक संधियों की
सैनिक संरक्षण के अतिरिक्त कुछ अन्य विशेषताएं भी थी जो स्वयं एक व्यवस्था बनाती थी। ब्रिटिश
सरकार की सहमति के बिना संरक्षण प्राप्त कोई भी शासक यूरोपवासी को अपनी सेवा में नहीं रख सकता था।
ब्रिटिश सरकार की जानकारी और सहमति के बिना संरक्षण प्राप्त दो अथवा अधिक शासकों के
बीच किसी वार्ता की अनुमति नहीं थी। वेलेजली के सहायक संधि का भारतीय राजनीति पर व्यापक प्रभाव देखा जा
सकता है।
इसके माध्यम से ब्रिटिश शासन के भारत में शक्तिशाली स्थिति स्थापित की गई।
वेलेजली ने इसके माध्यम से भारतीय राज्यों पर कठोर नियंत्रण स्थापित किया और ब्रिटिश शासन का भारत में विस्तार अधिक
सरल बना दिया।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सहायक संधि वेलेजली की है व्यक्तिगत संकल्पना थी किन्तु इसके द्वारा जिस
प्रकार का प्रभावी नियंत्रण स्थापित किया गया। इससे बाद के गवर्नर जनरलों को काफी
प्रेरणा मिली तथा डलहौजी के व्यपगत के सिद्धांत का आधार भी तैयार हो गया।
Post a Comment