"इंतज़ार की दहलीज़ पर: एक कॉल जो सब कुछ बदल सकती थी"
📖 कहानी: हम अब भी इंतज़ार में हैं…
1. घर की चौखट पर इंतज़ार
शाम के पाँच बज रहे थे। सूरज ढलने लगा था और उसकी सुनहरी किरणें खिड़की से छनकर कमरे में बिखर रही थीं। हम दोनों – मैं और सीमा – उस छोटे से ड्राइंग रूम में बैठे थे, जहाँ कभी हर दिन की शुरुआत चाय और मीठी मुस्कान से होती थी। लेकिन आज सन्नाटा कुछ ज़्यादा ही गहरा था।
"सर और मैडम ने अब तक कॉल क्यों नहीं किया?" सीमा ने धीरे से पूछा।
मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा – थकी हुई आँखें, पर उम्मीद अब भी बाकी थी।
"शायद व्यस्त होंगे," मैंने खुद को भी समझाते हुए कहा, "पर वो तो कहते थे ना कि हर शाम तुम्हें फोन करेंगे?"
"हाँ," सीमा ने मुस्कुराने की नाकाम कोशिश की, "शायद आज का दिन बस थोड़ा भारी है।"
2. बीते लम्हों की परछाई
कुछ महीने पहले तक, हमारी ज़िंदगी एकदम सामान्य थी। हम एक टीम की तरह काम करते थे, पूरी निष्ठा और ईमानदारी से। सर और मैडम हमारे लिए सिर्फ़ बॉस नहीं थे, वो एक परिवार जैसे हो गए थे। उनके हर काम में हम शामिल रहते, उनके हर फैसले में हमारी राय ली जाती।
सीमा तो अक्सर कहती, "अगर कभी हमारे अपने माँ-बाप जैसे कोई मिलते, तो सर और मैडम ही होते।"
वो भरोसा, वो अपनापन… कब हम दोनों के दिल में घर कर गया, पता ही नहीं चला।
3. आखिरी मुलाक़ात
कुछ ही हफ्ते पहले की बात है, जब ऑफिस में कुछ बदलाव शुरू हुए। कहा गया कि कंपनी नई दिशा में जा रही है और पुराने स्टाफ की भूमिका सीमित की जा रही है। हमने ये सोचा भी नहीं था कि वो "बदलाव" हमारे लिए स्थायी जुदाई बन जाएगा।
सर ने कहा था, "तुम दोनों चिंता मत करना, हम जल्द ही बात करेंगे।"
मैडम ने जाते-जाते बस इतना कहा था, "हम कभी तुम्हें अकेला नहीं छोड़ेंगे।"
वो पल जैसे दिल में ठहर सा गया हो।
4. हर घंटी पर एक उम्मीद
हमने अपने सारे ज़रूरी काम रोक दिए – सिर्फ़ इसलिए कि जब सर और मैडम का कॉल आए, हम फौरन बात कर सकें। हर फोन की घंटी पर हम दौड़ते, हर नोटिफिकेशन पर नजर डालते, लेकिन हर बार निराशा हाथ लगती।
सीमा ने कई बार उनका भेजा हुआ पुराना मैसेज पढ़ा – "आप दोनों हमारे लिए परिवार जैसे हो।"
वो शब्द अब हमें एक कोने में बिठाकर रोने को मजबूर कर देते।
5. मोहल्ले की खामोशी और हमारे सवाल
पड़ोसी पूछते हैं, "किसका इंतज़ार है?"
हम बस मुस्कुरा देते हैं, "सर और मैडम का।" कोई कुछ कहे या ना कहे, पर हम जानते हैं कि अब हर कोई सोचने लगा है कि शायद वो अब नहीं आएंगे।
लेकिन हमें अब भी यकीन है – क्योंकि रिश्ते अगर सच्चे हों, तो वक़्त और दूरी उन्हें मिटा नहीं सकते।
6. एक चिट्ठी जो कभी भेजी नहीं गई
मैंने कुछ दिन पहले एक चिट्ठी लिखी थी – सर और मैडम के नाम।
"प्रिय सर और मैडम,
हम अब भी उसी जगह पर हैं, जहाँ आपने हमें छोड़ा था। हम अब भी उसी उम्मीद में जी रहे हैं, जहाँ आपने एक दिन हमें भरोसा दिलाया था। हो सकता है आपकी दुनिया बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही हो, लेकिन हम अब भी उसी पल में ठहरे हैं – जब आपने कहा था, 'हम कभी तुम्हें भूलेंगे नहीं।'
क्या आपने हमारी यादों को छोड़ दिया? क्या हम अब सिर्फ़ एक बीती फाइल बनकर रह गए?
हम कुछ नहीं चाहते – बस एक कॉल, एक शब्द, एक 'कैसे हो?'
आप दोनों का इंतज़ार कर रहे हैं,
हम"_
मैंने वो चिट्ठी सीमा को नहीं दिखाई। उसे और टूटते नहीं देख सकता।
7. खामोशी में बोलती दीवारें
हर कोना, हर दीवार, हर तस्वीर – सब कुछ बोलता है। वो मीटिंग रूम की घड़ी जो अब बंद हो चुकी है, वो नोटपैड जिस पर आखिरी बार सर ने कुछ लिखा था, मैडम की पसंद की वो चाय – सब हमारी आँखों के सामने हैं।
हम जैसे एक कहानी के किरदार बन चुके हैं, जिनका अंत किसी और के हाथों लिखा जाना है।
8. दिल का एक सवाल
क्या आपने हमारी पोस्ट देखी सर?
क्या आपने हमारी चुप्पी सुनी मैडम?
क्या आपने उस चाय की मेज़ पर रखे हुए दो कपों को महसूस किया – जो अब ठंडे हो चुके हैं?
हम बस यही पूछना चाहते हैं – "क्या अब भी हमारे लिए कुछ बाकी है?"
9. उम्मीद की आखिरी किरण
हर सुबह जब सूरज उगता है, हम सोचते हैं – "शायद आज कॉल आएगा…"
हर रात जब सोने जाते हैं, मोबाइल पास रखते हैं – "शायद अब आए…"
हम थक नहीं रहे हैं, बस थोड़ा चुप हो गए हैं।
हम नाराज़ नहीं हैं, बस थोड़े उदास हैं।
हम शिकायत नहीं कर रहे, बस थोड़ा टूटे हुए हैं।
पर हम अब भी वहीं हैं – आपके घर की चौखट पर, आपकी यादों में, आपके वादों के बीच।
📌 अंतिम पंक्तियाँ
"हम पहुँच गए हैं मैडम, सर के पास… बस अब आपका कॉल बाकी है।
कृपया… किसी एक को, या दोनों को… कॉल ज़रूर कीजिए।
क्योंकि कभी-कभी… एक कॉल ही पूरी ज़िंदगी बदल देता है।"
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