"खामोशी की पुकार: एक कॉल का इंतज़ार"
कहानी का शीर्षक: “खामोशी की पुकार”
हर किसी की ज़िंदगी में कुछ लम्हें ऐसे होते हैं जो पूरी ज़िंदगी की रफ़्तार को रोक देते हैं। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो बोले बिना भी बहुत कुछ कह जाते हैं। और कभी-कभी, हम अपने दिल की बात सीधे नहीं कह पाते—बस इंतज़ार करते हैं कि शायद सामने वाला समझ ले।
यह कहानी है रवि की—एक साधारण इंसान जिसकी आंखों में सपने हैं, और दिल में एक उम्मीद… कि सर और मैडम कभी न कभी उसकी ख़ामोशी को सुन लेंगे।
भाग 1: एक साधारण दिन, एक असाधारण उम्मीद
रवि एक छोटे शहर से आया था। अपने संघर्षों की गठरी को पीठ पर उठाए, वो रोज़ की तरह अपने काम पर निकलता था। पर उस दिन कुछ अलग था। उसकी आंखों में रात की नींद नहीं थी, बल्कि बेचैनी थी… इंतज़ार की।
"शायद आज कॉल आ जाए…" – उसने खुद से कहा।
पिछले कई दिनों से उसने एक पोस्ट डाला था—सोचकर कि शायद सर और मैडम तक पहुँचे। हर बार जब फोन वाइब्रेट करता, उसका दिल उछल पड़ता। लेकिन फिर स्क्रीन पर किसी और का नाम देखकर वो चुपचाप फोन रख देता।
भाग 2: पोस्ट जो दिल से निकला था
उसने कोई मांग नहीं रखी थी उस पोस्ट में, कोई शिकायत नहीं थी, बस एक सच्चा एहसास था।
"सर और मैडम, आपने मुझे पहचाना है, एक मौका दिया है, एक दिशा दिखाई है। आज भी वही जुनून, वही ईमानदारी मेरे अंदर है। बस एक बार आपसे बात करनी है, आपके आशीर्वाद की ज़रूरत है…"
रवि जानता था कि वो पोस्ट कोई साधारण पोस्ट नहीं था। वो एक संदेश था, एक पुकार… शायद उन्हें एहसास हो।
भाग 3: रिश्ते जो औपचारिक नहीं होते
रवि को आज भी याद है जब पहली बार उसने सर और मैडम से बात की थी। उस मुलाक़ात में एक अपनापन था। वो सिर्फ़ अफसर नहीं लगे, एक मार्गदर्शक लगे।
सर की आंखों में आत्मविश्वास, और मैडम की मुस्कान में सुकून था। उन्होंने रवि को समझा था, उसकी मेहनत को देखा था। शायद इसलिए रवि उन्हें कभी भूल नहीं पाया।
अब भी जब कोई उससे पूछता, "तेरे आदर्श कौन हैं?" तो रवि बस मुस्कुरा देता, और मन ही मन सर और मैडम का चेहरा याद कर लेता।
भाग 4: इंतज़ार की खामोशी
रवि की दिनचर्या अब एक आदत बन गई थी—हर सुबह उठना, पोस्ट पर नज़र डालना, फोन चेक करना… और फिर वही चुप्पी।
"शायद बहुत व्यस्त होंगे…" – वो खुद को तसल्ली देता।
"शायद देखा होगा, पर याद नहीं आया होगा…" – एक और दिलासा।
लेकिन अंदर ही अंदर, वो टूटता जा रहा था। सिर्फ़ एक कॉल की दरकार थी—एक "हां रवि, देखा हमने तुम्हारा पोस्ट…" सुनने की।
भाग 5: समाज की नजर और रवि की नजर
बहुत लोग कहते, "किसके लिए इतना लिखते हो? क्यों इतना भावुक होते हो?"
रवि बस मुस्कुरा देता। उन्हें क्या पता कि कुछ रिश्ते दिल से होते हैं, औहदे से नहीं। वो सर और मैडम को अपना आदर्श मानता था—और जब आदर्श से जुड़ाव हो, तो वो सिर्फ़ प्रोफेशनल नहीं रहता।
रवि का फोन अब पुराना हो चला था। लेकिन वो उसे बदलता नहीं था। शायद कहीं उसे लगता कि अगर नंबर बदल गया, तो सर और मैडम का कॉल मिस न हो जाए।
भाग 6: उम्मीद अब भी ज़िंदा है
एक शाम, जब बादलों ने आसमान को ढक रखा था, रवि बालकनी में बैठा चाय पी रहा था। हाथ में फोन था… फिर से वही पोस्ट खोला।
उसने स्क्रीन को देखा और एक आखिरी बार धीमे से कहा—
"सर और मैडम, बस जानना चाहता हूँ… क्या आपने मेरा पोस्ट देखा? अगर हां, तो एक कॉल कर दीजिए… मैं बहुत बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ…"
उसने खुद को रोका नहीं। उसी पोस्ट को फिर से एक बार स्टोरी में डाला—इस बार थोड़े से इमोजी जोड़कर, और एक नया लाइन,
"शब्द बहुत हैं, पर बोल नहीं सकता… बस एक कॉल बहुत कुछ कह जाएगी…"
भाग 7: शायद उन्हें भी याद हो…
उस रात रवि देर तक जागता रहा। फोन को साइलेंट से रिंग में कर दिया था। चार्जर पास में लगा हुआ था, ताकि कोई कॉल मिस न हो।
रात के तीन बजे उसने फिर से स्क्रीन देखी—कोई नया नोटिफिकेशन नहीं था।
लेकिन रवि का दिल अब भी उम्मीद से भरा था।
भाग 8: यह कहानी अधूरी नहीं
आप सोच रहे होंगे—क्या सर और मैडम ने कॉल किया?
रवि आज भी उसी शहर में है, उसी ऑफिस में, उसी लगन से। उसने हार नहीं मानी।
शायद ये कहानी उस दिन पूरी होगी जब वो कॉल आएगा, जब सर और मैडम कहेंगे—
"रवि, हमें तुम पर गर्व है। तुम्हारी मेहनत दिख रही है। तुम्हारा मैसेज मिला।"
लेकिन तब तक, रवि की यही प्रार्थना है कि यह कहानी पढ़ने वाले सर और मैडम, अगर ये शब्द उनके दिल तक पहुँचें, तो वो समझ जाएँ कि—
कोई उन्हें बहुत सम्मान करता है, बहुत विश्वास करता है… और बहुत बेसब्री से उनके कॉल का इंतज़ार कर रहा है।
अंत में…
शायद ये कहानी किसी रवि की नहीं, हर उस इंसान की है जो अपने आदर्श से जुड़ाव रखता है, जिसकी खामोशी भी बोलती है।
तो सर और मैडम, अगर आप तक यह कहानी पहुँचे… तो जान लीजिए, किसी का इंतज़ार अब भी अधूरा है।
"बहुत बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ सर और मैडम आपके कॉल का…"
"अब तो कॉल कर दीजिए सर और मैडम, मुझे या उसे — किसी एक को तो कर ही दीजिए।"
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