राज्य सभा की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालें। ( jpsc मैन्स के लिए इम्पोर्टेन्ट free pdf के साथ )

राज्य सभा की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालें।

rajya sabha ki prasangikta pr prakash daliye


अनुच्छेद 79- के तहत संघीय विधायिका का निर्माण संसद तथा राष्ट्रपति से मिलकर होगा। संसद लोक सभा एवं राज्य सभा से मिलकर बनेगी। राज्यसभा राज्यों की सभा है। इसे उच्च सदन/द्वितीय सदन, वरिष्ठों का सदन कहा जाता है

राज्य सभा की पहली बार गठन 03 अप्रैल 1952 को हुआ राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है। स्थायी सदन होने के कारण यह कभी विघटित नहीं होता। यह एक स्थायी सदन है, जिसके प्रत्येक एक तिहाई सदस्य दो वर्ष पश्चात रिटायर्ड हो जाते हैं।

अनुच्छेद 80- के अनुसार राज्य सभा गठन 250 सदस्यों द्वारा होगी। जिसमें 238 विभिन्न राज्यों से तथा 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होगें। वर्तमान में यह 245 सदस्यों वाली है जिसमें 28 राज्यों से 229 केन्द्र शासित प्रदेशों से 4 तथा 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत है।

वर्तमान समय में राज्य सभा की कार्यप्रणाली व चुनाव को लेकर काफी विवाद हो रहा है। 80-90 के दशक में राज्य सभा की उपयोगिता पर यह कहकर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता था कि यह संस्था चुनाव में हारे हुए राजनीतिज्ञों तथा वफादार नौकरशाहों की शरणस्थली है |

तथा इसमें सत्तारूढ़ दलों के पसंदीदा व्यक्ति सम्मिलित किए जाते हैं। वर्तमान समय में राज्य सभा की चुनाव प्रणाली तथा चुने जाने वाले सदस्यों को लेकर विवाद है। राज्य सभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग आम बात हो चुकी थी, जिससे राजनीतिक नैतिकता का ह्यस हो रहा था |

 जिसके फलस्वरूप राज्य सभा चुनाव में खुली मतदान प्रणाली को अपनाया गया तथा यह सोचा गया कि अब क्रॉस वोटिंग पर रोक लगेगी, परंतु ऐसा नहीं हो सका। वर्तमान समय में राज्य सभा चुनाव की प्रक्रिया ने नए प्रश्नों को जन्म दिया है।

अब राज्य सभा चुनाव में जीतने के लिए पैसे का बोलबाता होता जा रहा है, जिसके पास पैसे हैं, वे आसानी से राज्य सभा की सदस्यता प्राप्त कर रहे हैं, क्योंकि वे छोटे राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को प्रलोभन में ले लेते हैं।

इसके अतिरिक्त आज नव-कॉरपोरेट जगत अपनी प्रसिद्धि व दलों को प्रदान किए गये चन्दे के बल पर राज्य सभा की सदस्यता प्राप्त कर रहा है। अतः राज्य सभा जिस उद्देश्य से गठित की गयी थी, उस पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है।

उपरोक्त घटनाओं के बावजूद राज्य सभा का महत्व कम नहीं होता और अब भी राज्य सभा महत्वपूर्ण कार्यों का केंद्र है तथा कई महत्वपूर्ण विधेयकों के संदर्भ में इसके सुझाव उपयोगी होते हैं।

यह संस्था लोक सभा की कार्यवाहियों पर समीक्षक की तरह कार्य करती है। अब भी कई विशेषज्ञ इन सदन के माध्यम से अपनी विशेषज्ञता का लाभ विधि निर्माण हेतु प्रदान करते हैं तथा इस संस्था के माध्यम से विधायन के अंतर्गत् कुछ तद तक नीतियों की निरंतरता बनी रहती है, क्योंकि इसका विघटन नहीं होता। राज्य सभा में कुछ सदस्यों के गलत ढंग से चयन से पूरी संस्था बेकार नहीं साबिह हो जाती।


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