अल्फ्रेड वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त (the continental drift theory of wegnor) jpsc और jssc के लिए महत्वपूर्ण
अल्फ्रेड वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त (the continental drift theory of wegnor)
अल्प्रेड वेगनर जर्मनी के एक प्रसिद्ध
जलवायुवेत्ता तथा भूशास्त्रवेत्ता थे जिन्होंने अपने महाद्वीपीय
प्रवाह सिद्धांत का प्रतिपादन 1912 ई. में किया। अपनी इस संकल्पना
में उन्होंने महासागरों एवं महाद्वीपों की स्थिरता की संकल्पना को गलत प्रमाणित करते हुए बताया कि
स्थल भाग का स्थानांतरण होता है।
तथा इन्हीं स्थानांतरण के कारण वर्तमान विश्व की स्थिति निर्मित हुई है।
तथा इस स्थानांतरण के कारण निरंतर परिर्वतन हो रहे है। इनके अनुसार लगभग कार्बोनिफेरस युग में समस्त स्थल भाग
एकदृढ़; भूखण्ड के रूप
में संलग्न था। जिसे 'पैंजिया' कहा जाता है।
इस पैंजिया का उत्तरी भाग लारेशिया एवं दक्षिणी भाग को गोंडवाना लैण्ड के
रूप में जाना जाता है। यह पैंजिया धरातल से केन्द्र की ओर क्रमशः सियाल सीमा एवं नीफे नामक परतों में
विभक्त है, जिसमें सियाल परत
बिना रूकावट के सीमा परत पर तैर रहा है। यह पैंजिया एक विशाल जलीय भाग से घिरा हुआ है। जिसे पैंथालसा नाम दिया गया।
चित्र- महाद्वीपों का पुनः संगठन
वेगनर महोदय के अनुसार कार्बोनिफेरस युग में
पैंजिया का विभंजन होता है एवं यह विखण्डीत स्थल का कुछ भाग भूमध्य रेखा की ओर एवं कुछ भाग का पश्चिम दिशा
की ओर विस्थापन होता है।
ये विस्थापन निम्न कारणों से हुए-
(क) भूमध्य रेखा की
ओर विस्थापन का प्रमुख कारण गुरूत्वबल तथा प्लवनशीलता का बल था।
(ख) महाद्वीप का
पश्चिम की ओर प्रवाह मुख्यतः ज्वारीय बल के कारण। इनके अनुसार महाद्वीपों के प्रवाह से निम्न
वैश्विक भूपटलीय स्थिति निर्मित हुई।
इसका संक्षिप्त वर्णन निम्न है-
- पैंजिया के विभंजन से लॉरेशिया एवं गौंडवानालैण्ड के मध्य टेथीस सागर की उत्पति हुई।
- जुरैशिक काल में गोंडवाना लैड का विभंजन हुआ तथा ज्वारीय बल के कारण प्रायद्वीपीय भारत, मेडागास्कर आस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका स्वतंत्र प्रवाहित होने लगे जिससे हिन्द महासागर का अस्तिव निर्मित हुआ तथा उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी प्रवाह से अटलांटिक महासागर का निर्माण संभव हो सका।
- उत्तरी ध्रुव से युरेशियाई भाग के दक्षिण प्रवाह के कारण आर्केटिक एवं उत्तरी ध्रुव सागर का निर्माण हुआ।
- पैंथालसा पर कई दिशाओं से महाद्वीपों के अतिक्रमण के कारण अवशिष्ट भाग प्रशान्त महासागर कहलाये।
- इस प्रवाह से ध्रुवों एवं भूमध्य रेखा की स्थिति में भी परिवर्तन इत्यादि।
इन्होंने अपने सिद्धांत को सत्यापित करने
हेतु निम्न प्रमाणों को प्रस्तुत किया जिसका
बिन्दुवार वर्णन निम्न है-
- इनके अनुसार वर्तमान महाद्वीपों को जोड़ने पर यह खांचे की तरह जुड़ जाते है।
- भूगर्भित प्रमाणों के आधार पर अटलांटिक महासागर के दोनों तटों के कैलीडोनियन तथा हर्सीनियन पर्वत क्रमों में समानता पायी जाती है।
- उत्तर पश्चिमी अमेरिका पूर्वी ब्राजील के लगभग 550 वर्ष मिलियन वर्ष पूर्व चट्टानों का मिलान करने पर पाया गया है कि इनमें विधमान पुरा जीवाश्म धात्विक निक्षेप लगभग एक काल के है। इसके अलावा इन तटो पर पाई जाने वाली फर्न एवं ग्लोसोप्टरिस वनस्पति में बहुत अधिक साम्यता पायी जाती है। इसी प्रकार के जीवाश्म दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका भारत एवं आस्ट्रेलिया गोंडवाना लैण्ड के तटो पर भी पायी जाती है।
- यूरोप के स्कैण्डिनेविया के उत्तरी भाग में पाये जाने वाले 'लैमिंग' नामक छोटे जीव अधिक संख्या में होने पर पश्चिम दिशा की ओर भागते है। एवं जलमग्न हो जाते है। इसके माध्यम से वेगनर ने यह प्रमाणित करने का कोशिश किया है कि कभी यह भाग एक सम्पूर्ण स्थल खण्ड के रूप में था जिस समय यह लैमिंग जीव पश्चिम की ओर प्रवास करते थे।
- कार्बोनिफेरस युग में जब गोंडवाना लैण्ड दक्षिणी ध्रुव पर थे तो उस समय के हिमानीकरण के प्रमाण गोण्डवाना लैण्ड से विखण्डित सभी स्थल भाग में मिलते है।
- वेगनर के अनुसार ग्रीन लैण्ड लगभग 32 मीटर प्रतिवर्ष की गति से उत्तर अमेरिका की ओर खिसक रहा है।
महाद्वीप एवं महासागरों की उत्पत्ति के संबंध में दिये गये
विभिन्न मतों में वेगनर का सिद्धांत एक विशिष्ट स्थान रखता है तथापि वर्तमान समय में मुख्यत प्लेट
विवर्तनिकी सिद्धांत के आने के उपरांत इनके सिद्धांत में कई विसंगतियाँ पाई गई है।
जिसे निम्न आधारों पर समझा जा
सकता है-
- वेगनर ने महाद्वीपों के पश्चिम की ओर प्रवाह का प्रमुख कारण ज्वारीय बल को माना है परन्तु भौतिक विज्ञान के अनुसार यह ज्वारीय बल के महाद्वीपों का इतने बड़े स्तर पर विस्थापित करने में सक्षम नहीं है।
- गुरुत्वबल के कारण महाद्वीप अलग होने की बजाय आपस में मिल गये होते अगर यह मान भी लिया जाये कि गुरुत्वाकर्षण बल के कारण स्थल भाग अलग हुए है तब भी वेगनर ने इस संबंध में कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है कि यह स्थल भाग अधिक श्यानता वाले अधःस्तर पर कैसे गति कर रहे थे।
- वेगनर ने अपने सिद्धांत में माना है कि सियाल परत सीमा पर बिना रूकावट के तैर रहे है। जबकि पर्वत निर्माण की बात करते समय वेगनर ने विपरीत मत देते हुए कहा कि पर्वतों का निर्माण सीमा के रूकावट डालने से हुई है इस प्रकार वेगनर ने परस्पर विरोधी विचार रखे।
- महाद्वीपों की प्रवाह की दिशा एवं काल पर स्पष्ट साक्ष्य देने में विफल रहे इत्यादि।
निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि कुछ विसंगतियों के
बावजूद वेगनर का
सिद्धांत आनेवाले सिद्धांतों का आधार निर्मित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया इसी कारण
इनके सिद्धांत आज भी बहुत हद तक प्रासंगिक बने हुए है।
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