राष्ट्रपति के अधिकार और कार्य (President's powers and functions) jssc ,jpsc pt & मैन्स के लिए important free pdf

राष्ट्रपति के अधिकार और कार्य (President's powers and functions)

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राष्ट्रपति के अधिकार और कार्य


भारतीय संविधानिक व्यवस्था में राष्ट्रपति का पद संवैधानिक प्रमुख का है। भारत का राष्ट्रपति भारत की संस्कृति, रीति-नीति और संविधान का प्रमुख संरक्षक प्रतीक और उच्च प्रतिमान होता है। वह विश्व में हमारा सर्वोच्च प्रतिनिधि और राष्ट्र का प्रथम महामहिम नागरिक होता है।

वह विविध आयामी असहमतियों, सहमतियों, पंथों, वर्गों, दलों से ऊपर होता है। वह भारतीय जनगणमन का राजमुकुट होता है। राष्ट्रपति दलपति नहीं होता है। वह राजनीतिक दलतंत्र के अलावा समूचे राष्ट्र का भी महामहिम प्रतिनिधि होता है।

हालाकि जैसा कि डॉ. अम्बेदकर कहते है-"हमारा राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है, परंतु शासन नहीं करता। वह राष्ट्र का प्रतीक है। उसका शासन में वह स्थान है कि उसके नाम पर राष्ट्र निर्णय घोषित किए जाते हैं।"

भारत राष्ट्रपति के कार्यपालिकीय,विधायी एवं क्षमतादान शक्तियाँ निम्नलिखित है:-

(A) राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्ति : भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।

अनुच्छेद 74- (A)- के अनुसार राष्ट्रपति को कार्यों में सहायता देने हेतु एक मंत्रिपरिषद होगी, और राष्ट्रपति इसकी सलाह पर कार्य करेगा।

सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ राष्ट्रपति करता है, जैसे- प्रधानंमत्री, मंत्रिपरिषद्, महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के समस्त न्यायधीश, राज्यपाल, चुनाव आयुक्त एवं इसके सदस्य, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य, वित आयोग के अध्यक्ष व सदस्य, अंतराज्जीय परिषद् का गठन, राजभाषा आयोग का गठन, पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष व सदस्य, अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों इत्यादि।

अनुच्छेद 98- के तहत राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से मंत्रिपारिषद् के निणर्यो को प्राप्त करता है।

विदेशों में राजदूतों की नियुक्ति, स्थानान्तरण तथा उसे पदमुक्त करता है। अगर लोक सभा में किसी दल का बहुमत न हो, तो स्वविवेक से प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है।

(B) राष्ट्रपति की विधायी शक्ति : राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है। यह संसद के सत्र को आमंत्रित करता है, सत्रावसान करता है तथा लोकसभा को भंग करता है। वह प्रत्येक आम निर्वाचन के बाद प्रथम सत्र के आरंभ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में दोनों सदनों में प्रथम अभिभाषण देता है।

राष्ट्रपति का अभिभाषण मंत्रिमंडल द्वारा तैयार किया जाता है। दोनों सदनों में किसी विधेयक पर मतभेद उत्पन्न होने पर अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त अधिवेशन बुलाता है। अनुच्छेद 331- के तहत लोकसभा में 2 एंग्लो इंडियन तथा अनुच्छेद 80(3) के तहत राज्य सभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करता है। संविधान के अनुच्छेद 111 के अन्तर्गत जब किसी विधेयक को राष्ट्रपति के समक्ष उसकी अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति को वीटो शक्ति प्राप्त हैं-

(i) आत्यंतिक वीटो

(ii) निलम्बनकारी वीटो तथा

(iii) जेबी वीटो

(i) आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto)- इस वीटो शक्ति के तहत् राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अपनी अनुमति नहीं देता है, अर्थात् वह अपनी अनुमति को सुरक्षित रख सकता है।

(ii) निलम्बनकारी वीटो (Suspension Veto )- इस वीटो शक्ति के अन्तर्गत राष्ट्रपति किसी विधेयक को संसद के पास पुनर्विचार हेतु भेज सकता है।

(iii) जेबी वीटो (Pocket Veto )- इस वीटो शक्ति के तहत राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनिश्चित काल के लिए अपने पास सुरक्षित रख सकता है। भारतीय संविधान में राष्ट्रपति द्वारा किसी विधेयक पर अनुमति देने हेतु कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, अतः इस समय सीमा के अभाव में राष्ट्रपति किसी विधेयक पर न तो अनुमति देता है, न ही अनुमति देने से इनकार करता है और न ही पुनर्विचार हेतु संसद के पास भेजता है।

विवादास्पद भारतीय डाक (संशोधन) विधयक 1986 के सम्बन्ध में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा जेबी वीटो का प्रयोग किया गया। भारत में किसी राष्ट्रपति द्वारा जेबी वीटो का यह प्रथम प्रयोग था।

अध्यादेश जारी करने का अधिकार- संविधान के अनुच्छेद 123 (1) के अनुसार जब संसद का अधिवेशन न हो रहा हो तो राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी किया जा सकता है। यह अध्यादेश उतना ही प्रभावपूर्ण एवं शक्तिशाली होता है, जितना कि संसद द्वारा पारित किया गया कानून, परन्तु ये अध्यादेश संसद का अगला अधिवेशन आरम्भ होने के छह सप्ताह पश्चात् स्वतः समाप्त समझे जाएँगे।

यदि संसद चाहे तो इस अवधि के पूर्व भी इन अध्यादेशों को समाप्त कर सकता है। राष्ट्रपति केवल उन्हीं मामलों से सम्बन्धित अध्यादेश जारी कर सकता है जिनके बारे में संसद विधियाँ बना सकती है। कुछ विधेयक राष्ट्रपति के अनुमति प्राप्त कर ही संसद में प्रस्तुत किये जाते हैं।

जैसे-

(i) धन विधेयक

(ii) राज्यों के नाम, सीमा या क्षेत्र परिवर्तन से जुड़े विधेयक

(iii) वित आयोग की सिफारिशें

(iv) संघ लोक सेवा आयोग की रिर्पोट इत्यादि ।

(C) राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद-72 ) : राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, उसका प्रविलम्बन, विराम या परिहार करने की अथवा दण्डादेश के निलम्बन या लघुकरण की शक्ति प्राप्त है।

( i )क्षमा (Pardon )- इसके तहत दोषी को दिया गया दण्ड पूरी तरह समाप्त हो जाता है तथा व्यक्ति सभी आरोपों एवं दण्ड से मुक्त हो जाता है।

(ii) प्रतिलम्बन (Reprieve )- प्रतिलम्बन से अभिप्राय विधि द्वारा निर्धारित दण्ड को अस्थायी रूप से टालना है। इसका प्रयोग दण्ड के अनुपालन में विलम्ब हेतु किया जाता है।

(iii) विराम (Respite )- विराम से अभिप्राय दण्ड के क्रियान्वयन को भविष्य के लिए विलम्बित करना है। इसके अन्तर्गत किसी विशेष परिस्थिति को देखते हुए दिए गए दण्ड के स्थान पर कोई छोटा दण्डादेश दे दिया जाता है। उदाहरणस्वरूप- किसी स्त्री अपराधी का गर्भवती होना।

(iv) परिहार ( Remission )- परिहार से अभिप्राय दण्ड के स्वरूप में परिवर्तन किए बिना उसकी मात्रा में परिवर्तन करना है।

उदाहरणस्वरूप- आजीवन कारावास को दस वर्ष के कारावास में परिवर्तित करना।

(v) लघुकरण ( Commutation )- लघुकरण से अभिप्राय दण्ड के स्वरूप में परिवर्तन कर उनकी मात्रा में कमी करना है।

उदाहरणस्वरूप - मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में परिवर्तित करना।

उच्चतम न्यायालय ने केहर सिंह बनाम भारत संघ राज्य वाद- 1984 के मामले में राष्ट्रपति का क्षमादान शक्ति का विभिन्न मामलों में अध्ययन कर निम्नलिखित सिद्धांत दिये - जिनके आधार पर राष्ट्रपति को मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।

1. दया याचना करने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति से मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।

2.राष्ट्रपति प्रमाणी (साक्ष्य) का पुनः अध्ययन कर सकता है और उसका विचार न्यायालय से भिन्न हो सकता है।

3. राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग केंद्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श पर करेगा।

4. राष्ट्रपति अपने आदेश के कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है।

5.राष्ट्रपति न केवल दंड पर राहत दे सकता है, बल्कि प्रमाणिक भूल के लिए भी राहत दे सकता है।

6.राष्ट्रपति को अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा कोई भी दिशा-निर्देश निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है।

7. राष्ट्रपति की इस शक्ति पर कोई भी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती सिवाए वहां जहां राष्ट्रपति का निर्णय स्वेच्छाचारी, विवेकरहित,दुर्भावना अथवा भेदभावपूर्ण हो ।

8.जब क्षमादान की पूर्व याचिका राष्ट्रपति ने रद्द कर दी हो, तो दूसरी याचिका नहीं दायर की जा सकती।

 

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