भारत का विदेशी व्यापार और पत्तनों का महत्व | (India's Foreign Trade and Importance of Ports)

भारत का विदेशी व्यापार और पत्तनों का महत्व | (India's Foreign Trade and Importance of Ports)

भारत का विदेशी व्यापार और पत्तनों का महत्व

स्थानिक, प्रादेशिक अथवा राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले वस्तुओं के क्रय विक्रय को व्यापार कहते है। जब व्यापार एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र से होता है तो उसे विदेश व्यापार या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। विदेश व्यापार से देश के आर्थिक विकास में गति तथा स्थिरता प्राप्त होती हैं। इसे आर्थिक विकास का संवाहक माना जाता हैं।

विदेश व्यापार मुख्य रूप से पत्तनों के माध्यम से किया जाता हैं। आंतरिक भाग के व्यापारिक नगर भी अपना अंर्तराष्ट्रीय व्यापार पत्तनों के माध्यम से ही करते हैं। इस प्रकार पतन विदेश व्यापार के प्रमुख केन्द्र बिन्दु होते हैं। एक ओर तो ये अपने पृष्ठ प्रदेश से विदेशों को भेजी जाने वाली वस्तुओं के संकलन केन्द्र होते हैं |

वहीं दूसरी ओर देश में आने वाली वस्तुओं को प्राप्त करके देश के आंतरिक भागों में उनका वितरण करने वाले केन्द्रों के रूप में भी कार्य करते हैं। भारत के लंबे तट पर 13 मुख्य पत्तन तथा 184 छोटे व मध्यम दर्जे के पोताश्रय हैं। केन्द्र सरकार के द्वारा पश्चिम बंगाल एवं आंध्र प्रदेश में दो नये अन्तर्राष्ट्रीय पोताश्रय को स्थापित करने का निर्णय लिया गया है।

सन् 1951 में भारतीय पोताश्रयों की क्षमता 2 करोड़ टन थी जो बढ़कर इस समय 30 करोड़ टन हो गई हैं। भारत के कुल व्यापार का 93 प्रतिशत आयात-निर्यात् वृहत् एवं लघु बंदरगाहों द्वारा किया जाता है। जिनमें बड़े पत्तनों के माध्यम से ही 90 प्रतिशत विदेशी व्यापार होता है।

बड़े समुद्री पत्तनों में- कॉडला, मुम्बई, मर्मगोआ, न्हावाशेवा, न्यूमंगलोर, कोचीन, तुतीकोरीन, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पाराद्वीप, कोलकाता हल्दिया प्रमुख हैं। चेन्नई के निकट एक और बड़ा बंदरगाह विकसित किया जा रहा हैं। इन बंदरगाहों का पृष्ठ प्रदेश मध्य एवं आंशिक उत्तरी भारत तक विस्तृत हैं।

भारत का विदेशी व्यापार और पत्तनों का महत्व


इनके पृष्ठ प्रदेशों में कपास, मूँगफली, कहवा, तम्बाकु, अनाज, फल एवं सब्जियाँ तथा औद्योगिक उत्पादन आदि सभी के लिए प्रसिद्ध हैं। इन वस्तुओं का निर्यात पश्चिमी तट के बन्दरगाहों से किया जाता हैं। इसके अतिरिक्त हल्के इलेक्ट्रानिक, मध्यम स्तर के इंजीनियरिंग सामान तथा चमड़े से बनी वस्तुओं का भी निर्यात इन्हीं बन्दरगाहों द्वारा किया जाता हैं।

ये सभी पत्तन भारत के आयात-निर्यात व्यापार में धुरी की भाँति कार्य करते हैं और विश्व व्यापार के केन्द्र का भी कार्य करते है। इनमें समुद्री मार्ग तथा आन्तरिक मार्ग चारों दिशाओं में विकसित होते है। पूर्वी तट के बन्दगाहों के पृष्ठ प्रदेश भी विभिन्न उत्पादों के मामलों में धनी है।

इन बन्दगाहों में निर्यात होने वाली प्रमुख  वस्तुओं में वसत्र,  इंजीनियरिंग सामान, जूट का सामान, लौह अयस्क, कोयला तथा अन्य सामग्रियाँ प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त दक्षिण भारत के बन्दगाहों से संसाधित मछली एवं अन्य समुद्री उत्पाद तथा चमड़े एवं चमड़े के बने सामान का निर्यात किया जाता है।

स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के विश्व व्यापार में तीव्र परिवर्तन हुए। आज भारत के व्यापारिक संबंध कुछ देशों तक ही सीमित न रहकर विश्व अधिकांश देशों के साथ स्थापित हो गए हैं। इनमें समुद्री पत्तनों का विशेष महत्व बढ़ा हैं।

इन पत्तनों के आधुनिकीकरण एवं अन्य सुविधाओं के विकास ने भारत के आयात एवं निर्यात दोनों में ही मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन लाये हैं। आज भारत के निर्यातक वस्तुओं की संख्या 7500 से अधिक हो गई हैं। जबकि स्वतंत्रता के समय यह मात्र 50 के आस-पास थी।

स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय बन्दरगाहों के आयात निर्यात् में लगातार वृद्धि हुई हैं, लेकिन 1980-81 ई. के बाद यह वृद्धि काफी तीव्र है। सन् 1950-51 ई. में भारत के बन्दरगाहों का कुल व्यापार मात्र 192 लाख टन था, जो सन् 1980-81 ई. में बढ़कर 813 लाख टन हो गया। 1991 की उदारीकरण नीति के पश्चात् विश्व व्यापार में तीव्र वृद्धि हुई

भारत औद्योगिक रूप से विकसित देशों में दसवाँ स्थान प्राप्त कर लिया है तथा अर्थव्यवस्था के रूप में विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका आयात एवं निर्यात दोनों ही दृष्टियों से अनेक परिवर्तन हुए है। कच्चे तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों के आयात के लिए पत्तन अनिवार्य माध्यम हैं।

विदेशी व्यापार के संचालन के लिए जहाँ सुसज्जित उत्तम बन्दरगाहों की आवश्यकता पड़ती हैं, वहीं व्यापार संचालन के लिए समुद्री जलपोतों की भी आवश्यकता पड़ती हैं। भारत का जलपोतों की दृष्टि से विश्व में देशों में दसवाँ स्थान हैं। यहाँ सन् 1951 ई. में मात्र 3.9 लाख रजिस्टर्ड टन जहाजी बेड़े की क्षमता थी, जो वर्तमान में बढ़कर 71 लाख रजिस्टर्ड टन हो गया।

इस प्रकार विगत 65 वर्षों में जहाँ भारत के बंदरगाहों के विदेश व्यापार में वृद्धि हुई हैं, वहीं जहाजी बेड़े की क्षमता में भी वृद्धि हुई है। प्रमुख बंदरगाहों में मुंबई द्वारा अधिकतम यातायात का वहन किया जाता है। यह एक प्राकृतिक पोताश्रय है। यह बंदरगाहों के कुल यातायात का पांचवा भाग संभालता है, जिसमें अधिकांशतः पेट्रोलियम उत्पाद एवं शुष्क नौ-भार शामिल है।

कांडला एक ज्वारीय बंदरगाह है। यहाँ उक मुक्त व्यापार क्षेत्र भी स्थापित किया गया है। महत्वपूर्ण यातायात की वस्तुओं के खाद्य तेल पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्यान्न, नमक, कपड़ा, कच्चा तेल इत्यादि शामिल हैं। मर्मागोवा यातायात के कुल-परिमाण की दृष्टि से पांचवां स्थान रखता है।

न्यू मंगलौर से लौह-अयस्क (कुद्रेमुख से प्राप्त) का निर्यात किया जाता है। कोचीन एक प्राकृतिक प्रोताश्रय है, जहाँ से उर्वरक, पेट्रोलियम उत्पाद एवं सामान्य नौ-भार का परिवहन होता है। तूतीकोरिन से मुख्यतः कोयला, नमक, खाद्य तेल, शुष्क नौ-भार एवं पेट्रोलियम उत्पादों का आयात-निर्यात किया जाता है।

चेन्नई माल परिवहन की दृष्टि से दूसरा सर्वाधिक बड़ा बंदरगाह है, जहाँ पेट्रोलियम उत्पादों का आयात-निर्यात किया जाता है। चेन्नई माल परिवहन की दृष्टि से दूसरा सर्वाधिक बड़ा बंदरगाह है, जहाँ पेट्रोलियम उत्पाद, कच्चा तेल, उर्वरक, लौह-अयस्क। विशाखापत्तनम सबसे गहरा बंदरगाह है।

लौह-अयस्क के निर्यात हेतु यहां कि बाहरी पोताश्रय का विकास किया गया है। साथ ही कच्चे तेल के लिए भी एक बर्थ यहां स्थापित है। कोलकाता एक नदीमुख बंदरगाह है, जो विविध जरूरी वस्तुओं का आयात-निर्यात करता है। पारादीप पर लौह-अयस्क, कोयला तथा शुष्क नौभार का परिवहन होता है।

जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह को आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है। यहां भारी मात्रा में आने-जाने वाले नौ-भार को ध्यान में रखकर यांत्रिक कंटेनर बर्थ एवं सर्विस बर्थ की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। प्रमुख बंदरगाहों द्वारा अखिल भारतीय बंदगाहों के 90 प्रतिशत यातायात का वहन किया जाता है।

उन्नीस सौ अठानवे-निन्यानवे के दौरान प्रमुख बंदगाहों द्वारा कुल 251.7 मिली टन नौ-भारत का नियंत्रण, प्रबंधन एवं संचालन किया गया। मौजूदा बंदरगाह आधारित संरचना, व्यापार के प्रवाह को नियंत्रित कर पाने की दृष्टि से अपर्याप्त है। इस कारण पूर्व-बर्थिंग विलंब तथा जहाजों के आवागमन में देरी जैसी समस्याएं सामने आती हैं।

लक्षित यातायात जरूरतों को पूरा करने के लिए और अधिक क्षमता के निर्माण की जरूरत हैं। भारतीय बंदरगाह श्रम एवं उपकरण उत्पादकता मानदंडों के संदर्भ में एशिया के अन्य बंदरगाहों की तुलना में निम्न उत्पादकता दर्शाते है।



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