भारत में चीनी उद्योग का विकास और भारत में गन्ना उद्योग के स्थानीयकरण | Development of Sugar Industry in India and Localization of Sugarcane Industry in India

भारत में चीनी उद्योग का विकास और भारत में गन्ना उद्योग के स्थानीयकरण/भारत में गन्ना उद्योग के स्थानीयकरण के कारक का वर्णन करें तथा उद्योगों के वितरण व समस्याओं की विवेचना करें ?

भारत में गन्ना उधोग के स्थानीकरण


गन्ना उद्योग भारत में कृषि पर आधारित एक प्रमुख उद्योग है जिसका विकास कुटीर उद्योग के रूप में प्राचीन काल में हुआ था क्योंकि बड़े उद्योग के रूप में इसका विकास 20वीं सदी से माना जाता है।

यह उद्योग न केवल लाखों लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है बल्की अपने सह उत्पादों से भी कई उद्योग इसपर निर्भर है और इनके विकास की संभावनायें बनी हुई है। भारत में आधुनिक तरीके से चीनी बनाने का प्रथम प्रयास 1840 ई. में उत्तरी बिहार में किया गया |

जो असफल रहा था परन्तु 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रिटिश उद्यमीयों द्वारा उत्तर प्रदेश व बिहार के समीपवर्ती से इलाकों में स्थापित मढोरा चीनी मिल पहली सफल मिल थी। सरकार द्वारा 1931 ई. में चीनी के आयात पर शुल्क लगा देने से उद्योगों को काफी प्रोत्साहन मिला |

जिसके कारण आजादी के समय भारत में 139 चीनी मिले कार्यरत थी। अगस्त, 2015 तक देश में कार्यरत चीनी मिलों की संख्या 698 थी जिसमें आधी से अधिक चीनी मिले सहकारी क्षेत्र में कार्यरत थी। चीनी मिलों की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए 1998 में इस उद्योग को लाईसेंस मुक्त कर दिया गया तथा किसानों को उचित मूल्य प्रदान करने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा सांधिविक न्यूनतम मूल्य के अतिरिक्त राज्य सलाहकारी किमते भी राज्यों द्वारा निर्धारित की जाती है।

चीनी मिलों की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि उस क्षेत्र में गन्ना का उत्पादन बेहतर स्थिति में हो तथा किसानों में इसके प्रति आकर्षण और जागरूकता हो। भारत के चीनी मिलों के वितरण को देखे तो हम पाते है कि इसका अधिकांश संकेन्द्रण उत्तर भारत के तराई क्षेत्रों में एवं दक्षिण भारत के समुद्र तटीय इलाकों में मिलता है।

चूंकि गन्ना एक उष्णीयकटिबंधीय पौधा है जिसके लिए सामान्यतः 20-26° का तापमान अच्छा माना जाता है तथा गन्ने के लिए आठ माह की अवधि में वितरीत लगभग 150 सेमी की वार्षिक वर्षा उत्तम होती है। इसके लिए ऐसी गहरी दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है जो न तो अधिक अम्लीय हो और न अधिक क्षारीय हो।

इसके अलावा सागरीय जलवायु से प्राप्त आर्द्रता गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। इन्हीं सब कारणों की उपलब्धता के कारण उपयुक्त क्षेत्रों में गन्ना उद्योग का संकेन्द्रण ज्यादा पाया जाता है। इनके अलावा उचित परिवहनतंत्र, सरकारी नीतियाँ, वक्त पर किसानों को उचित मूल्य प्रदान करना, बिजली की एवं जल की सुविधा इत्यादि अन्य कारक है जो उद्योगों के संकेन्द्रण को प्रभावित करते है।

चीनी मिलों का देश में वितरण-

  • महाराष्ट्र देश में चीनी के उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है यहाँ लगभग कुल 195 चीनी मिल देश के लगभग 35 प्रतिशत चीनी का उत्पादन करते है। यहाँ गोदावरी, कृष्णा, प्रवरा इत्यादि नदियों के सिंचित काली मिट्टी के क्षेत्र में गन्ना का बेहतर उत्पादन किया जाता है।
  • महाराष्ट्र पांच साल बाद एक बार फिर भारत का शीर्ष चीनी उत्पादक राज्य बन गया है। चीनी उत्पादन में इसने उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ दिया है।
  • वर्ष 2021-22 के लिये महाराष्ट्र द्वारा चीनी का कुल उत्पादन 138 लाख टन है।
  • वर्ष 2021-22 में उत्तर प्रदेश द्वारा उत्पादित कुल चीनी 105 लाख टन है।
  • उत्तर प्रदेश का चीनी उत्पादन में द्वितीय स्थान है जहाँ कुल 132 चीनी मिलों के द्वारा उत्पादन प्राय कार्य किये जाते है, मेरठ, मुरादाबाद, सहारणपुर, बिजनोर, गाजीयाबाद, देवघरिया, गोरखपुर, बस्ती, गोण्डा, फैजाबाद जिले राज्य के प्रमुख उत्पादक है।
  • तमिलनाडू के कोयम्बटूर, तीरूचिरापल्ली, रामनाथपुरम, मदुरे, वेल्लोर इत्यादि जिलों में चीनी मिलों का संकेन्द्रण पाया जाता है। कर्नाटक के बेलगाम, बेलारी, सीमोगा, चित्रदुर्ग, बिजापुर इत्यादि प्रमुख चीनी मिल क्षेत्र है।
  • बिहार में चम्पारण, छपरा, सितामढ़ी, दरभंगा प्रमुख चीनी मिल के वितरण क्षेत्र है।
  • इसके अलावा देश के गुजरात, आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं पंजाब में इस उद्योग का विस्तार पाया जाता है। चीनी उद्योग के अलावा गन्ने से स्थानीय आधार पर खाण्डसारी (गुड़) उद्योग भी प्राचीन काल से परंपरा रूप से परिचालित है।

चीनी उद्योग की समस्याएँ-

  • भारत में गन्ने का प्रति हेक्टेयर उपज अन्य विकसित गन्ना उत्पादक देशों की तुलना में कम है।
  • चीनी की मिलों में पेराई की अवधि छोटी होती है और वर्ष के आधे भाग मिलों में कार्य स्थगित रहता है।
  • देश के अधिकांश चीनी मिलों में मशीनें काफी पुरानी जिसका नकारात्मक प्रभाव उत्पादन एवं गुणवता दोनों पर पड़ता है।
  • चीनी उद्योग के सामने खोई, सिरा, आदि उप उत्पादों के संग्रहण, विक्रय एवं निपटान की बड़ी समस्या है, हलांकि सरकार के द्वारा इन उपउत्पादों का ईंधन में समिश्रण के माध्यम से प्रयोग करने की योजना है जिससे इस समस्या से निपटा जा सकता है।
  • चीनी उद्योग में पर्याप्त शोध का अभाव है जिस कारण अच्छी गुणवत्ता के गन्ने के उत्पादन के प्रयास को धक्का लगता है।
  • चीनी मिलो द्वारा कृषकों को गन्ने के मूल्य का उचित समय पर भुगतान न कर पाना इत्यादि ।

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