उस पार (कहानी ) | Beyond (story)

उस पार

उस पार (कहानी )


यह कहानी शुरू होती है बिहार के छोटे-से गाँव गोविंदपुर से | एक रौनक नाम का लड़का रहता था | यह चार भाई –बहनों में दूसरे नम्बर पर था | वो संयुक्त परिवार में रहता था , जहाँ उसके दादा ,दादी , चाचा , 👤👤चाची , बहुत से भाई – बहन रहते |

उसका बचपन मस्ती 💫 में गुजरा |उसके पिताजी लकड़ी का बिजनेस करते थे , दुकान थोड़ी दूर पर शहर में था  |

रोज उनका आना –जाना लगा रहता था | रौनक के दादा जी 👴 बिजली विभाग में काम करते थे | रोज शाम को ऑफिस के बाद बच्चों के लिए मिठाई लाना उनकी आदत थी |

रौनक को वो बहुत प्यार 💝 करते थे , उनको उससे अलग ही लगाव था | रौनक की आदत थी कि मिठाई वो खुद सबको बटेगा | छोटे से रौनक को क्या पता था की बटवारा कैसे किया जाता है |

सबको देने के बाद उसके पास हमेशा कम मिठाई या कभी –कभी कुछ बचता ही नही था |

ये सब देखकर उसके दादा जी हंसते और अपने पास से कुछ बची मिठाई उसकों दे देते |

संयुक्त परिवार की अच्छाई के साथ – साथ खराबी ये है की अक्सर भाइयों के बीच कुछ न कुछ विवाद होते रहते है | यहाँ भी कुछ वैसा ही था , रौनक के पिताजी ने ये निर्णय लिया की अब वो लोग शहर में जाकर रहेंगे | बच्चों की पढ़ाई और बिजनेस के लिए वहाँ रहना जरूरी है |

छोटा रौनक अपने दादा –दादी को छोड़ के नही जाना चाहता था | लेकिन उसको जाना पड़ा ,भरी मन से उनको अलविदा बोल  सात साल का रौनक शहर आया |

यहाँ उसको मन नही लग रहा था , वो अपने दादा – दादी को याद करता | कभी –कभी उसके दादा –दादी गाँव से उससे मिलने आते थे | दादा जी ने उसे एक पीला साईकिल खरीद दिए ,जिससे की वो स्कूल आराम से आये जाये |

कोमल मन का बच्चा हमेशा किसी ना किसी चीज को दिल से बहुत चाहने लगता है | छोटा रौनक की पहली चाहत थी वो पीला साईकिल जिसे वो अपने जान से भी ज्यादा प्यार 💓 करता था |

उसे साफ सुथरा रखना उसका हर दिन का काम था | उसके भाई उसको चिढ़ाने के लिए उसको गन्दा कर देते थे | रौनक गुस्सा होता फिर वो उसको साफ करता ऐसा हर बार होता |

समय बीतता गया वो बड़ा हुआ ,पहली बार वो अपनों को छोड़ कर आगे की पढ़ाई के लिए वो पटना आया | नया शहर अपनों से दूर उसे यहाँ मन नही लग रहा था | लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के लिए उसे यहाँ रहना जरूरी था | उसने यहाँ बी.सी.ए. में एडमिशन लिया |

धीरे –धीरे नए दोस्त बन गये और पूरा दिन कंप्यूटर में गुजरता | हर महीने घर से पैसे आते उसके खर्च के लिए |

लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया घर से पैसों से साथ पिता के तानें भी आने लगे | तब इसे पहली बार पता चला जीवन में पैसों का क्या महत्व है |

दादा जी के साथ गुजरा वक्त उसे याद आता | फ़ोन पर दादा –दादी से बात करके अपना  मन बहलाता | लेकिन कहते है न कि गुजरा वक्त कब वापस आता है ,बस  यादें रह जाती है |

मध्यमवर्गीय परिवार में लडकों पर ये दवाब होता है कि अगर वो बाहर पढ़ने गये है तो उनको तुरंत नौकरी मिल जाये | पैसे ज्यादा खर्च न करना पड़े |

घर में वो पैसे देने लगे , लेकिन शायद माता –पिता में खासकर पिता को यह पता ही नही चलता है की बाहर की दुनिया में कितना कॉम्पटीशन है |

रौनक ने एक कॉल सेंटर में काम करना शुरू कर दिया ,साथ ही वो पढ़ाई भी करता | घर से उसने पैसे लेने बंद कर दिए | बी.सी.ए. खत्म करके एमसीए करने वो दिल्ली चला गया | इधर उसके प्यारे दादा जी इस दुनिया छोड़ कर चले गये |

रौनक को ये बात जब पता चली वो अंदर से टूट 💔 गया ,लेकिन इधर कॉलेज का एग्जाम था इस कारण वो नही जा पाया |

उनके जाने के तीन – चार  दिन बाद उसकी दादी भी  इस दुनिया को अलविदा कह गई | शायद पति का वियोग उनसे सहन नही हुआ |

रौनक के जिन्दगी से उसके दो करीबी लोगों का चला जाना ,उसको अंदर तक हिला डाला |

क्योंकि उनदोनों से इतना गहरा लगाव था जितना किसी से नही था | दुनिया में उनदोनों के अलावा उसको कोई समझता ही नही था |

दिल्ली से घर आकर शायद वो यही सोच रहा होगा कि अगर वो यहाँ से उनदोनों को छोड़ कर नही गया होता | तो शायद वो दोनों उसके  पास होते |

उसको पता नही था की असली जिन्दगी तो अब शुरू हुई है | इन्सान को अपने आसू को छिपा कर अपना काम करना होता है |

क्युकी अगर ज्यादा रोया तो लोग बोलेगे की लड़की है क्या जो रोता है | भरी मन से वो दादा –दादी की अंतिम यात्रा का काम खत्म कर | अगले दिन वो दिल्ली जाने को तैयार हो रहा था |

परिवार वालो ने बोला कि रुक जाओ कुछ दिन लेकिन वह मन –ही –मन सोचा रहा था कि रुकू अब किसके लिए , जो धागा बांध कर रखता था वो तो अब टूट गया |

वो अब रेलवे स्टेशन पहुच गया | दूर से आती -जाती सारी शोर करती ट्रेने एक एक करके पटरी से गुजर रही थी | इतना शोर से कोई भी इन्सान उब जायेगा लेकिन रौनक स्टेशन पर बैठे –बैठे बचपन की यादों में खो गया कि कैसे दादा जी के साथ खेतों में जाकर खेलता|

दादी के आंचल को पकड़ कर अंधेरे में सोता | एक –एक करके फिल्म की तरह सारे दृश्य आखों से सामने से गुजर रही थी | अचानक उसे याद आया उसकी ट्रेन का टाइम हो गया वो आने वाली है | वो उठा और अपना बैग लेकर ट्रेन में चढ़ा |

ट्रेन आगे बढ़ने लगी , उसके आगे बढ़ने के साथ –साथ छुट गया उसका बचपन वो मासूमियत वो प्यारी हँसी वो वक्त जो उसने अपने दादा –दादी 👵 के साथ गुजरे | शायद कहीं न – कहीं वो दोनों भी रौनक को अलविदा कह कही खो गये फिर कभी न मिलने के लिए |

रौनक की आँखों से बहता आशु ये बता रहा था कि रिश्ता वाकई में कितना गहरा था |

जिस जमाने में लोग बाहर जाकर सब कुछ भूल जाते है ,वो उनसे हर वक्त जुड़ा रहा | ट्रेन दिल्ली पहुच गई , वो भरी मन से होस्टल पहुचा |

जिन्दगी की भाग –दौड़ 💨 अब शुरू हो चुकी थी | एमसीए का फाइनल एग्जाम दे कर वो बंगलौर अपने बड़े भाई के पास पहुचा |

ये सोच कर की बड़ा भाई कही न कही उसको कोंई नौकरी लगा देगा | लेकिन बचपन का वो भाई ये शहर के चकाचौंध में बदल चुका था |

रौनक को खुद से इस अजनबी शहर में बिना किसी मदद से नौकरी ढूढना था | घर से अलग ही दवाब था की जल्दी नौकरी करो |

पैसे  जेब में थे नही घर से ताना बार बार मिल रहा था ,बड़ा भाई को कोई मतलब नही था | हर दिन नई -नई कंपनी में इंटरव्यू देना था ,पैदल चल चल कर जूता भी जवाब दे दिया |

फटे जूते भी आखिर कितना साथ देते | हाथ में फटे जूते को लेकर रोड के किनारे बैठ वो  बंगलौर  की भीड़ को देखते हुए सोच रहा था की कितने लोग है यहाँ  पर लेकिन मेरा अपना कोई नही है |

किसी शायर ने क्या खूब लिखा है ...

अंधेरों से कह दो ,

 बचपन बीत चुका है ,

 अब तुझसे डर नहीं सुकून मिलता है ।

बहुत दिनों  के बाद एक कंपनी में जॉब लगी टाइम था सुबह से रात के सात बजे तक | रूम में आकर खाना बनाना फिर खाना , सोना यानि की कोई टाइम ही नही बचता था |

उसने जॉब करते हुए नई जॉब खोजना शुरू किया इंदौर में उसे एक जॉब मिली |

वो यहाँ आकर काम करने लगा | लेकिन अगर किस्मत ही एग्जाम ले रही हो तो आखिर इन्सान क्या करे | वहाँ के सारे काम करने वालो की  सैलरी रोक दिया गई  | बिना पैसों का कौन इन्सान काम करता है |

उसने सोचा की अब बहुत हो गया वो खुद अपना बिजनेस शुरू करेगा | वो पटना आकर होटल खोलने का प्लान बनाया | पटना में आकर वो रूम किराया पर लिया और होटल के लिए जगह खोजने लगा |

जहाँ वो किराये पर रहता था उसका मालिक खुद उसको पैसे देने का वादा किया | होटल के लिए उसने दुकान किराये पर लिया और अपना काम शुरू किया | भाग्य और समय ने फिर साथ नही दिया | पुरे देश में लॉक डाउन लग गया ,इधर होटल बंद हो गया |

उधर सबका स्वभाव बदल गया जो पहले प्यार से बात करता था | अब वो तीखे आवाज में बात करने लगा | रूम का मालिक जिसने पैसा दिया अब वो दवाब बनाने लगा की मेरा पैसा वापस दो |

किसने सच कहा है जिसका परिवार साथ नही देता है न बाहर वालों के तब तानें और बाते सुननी पड़ जाती है |

इधर रौनक के परिवार वाले अलग से तानें दे रहे थे की तुम हर जगह हमलोगों को बदनाम करते हो | कोई मदद तो छोडिये कोई प्यार से बात भी नही कर रहा था उससे  |

                      जीवन में गिरना भी अच्छा है

                      औकात का पता चलता है

                      बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को

                      तो अपनों का पता चलता है.

अंत में उसके परिवार वाले आकर रौनक को अपने साथ घर ले गये  और उसको मानसिक और शाररिक रूप से पड़ताड़ित करने लगे | 💦  यहाँ तक की रौनक का छोटा भाई भी उसे मारने लगा था | 💥


ये बात बिलकुल सटीक बैठती है कि .....

👇

किस्मत और हालात दोनों जब साथ ना दे तो उनकी 

भी सुननी पड़ती है जिनकी कोई औकात नहीं होती ।


कुछ दिनों बाद रौनक फिर पटना आया और खुद का वेबसाइट बनाया और इस बार आखिर उसे कमयाबी मिल ही गई |

                          ऐसी कोई मंजिल नहीं,

                     जहां तक पहुंचने का कोई रास्ता ना हो..!!


ये काम उसका चलने लगा और अंत में वो सारे घरवाले जो पहले सिर्फ और सिर्फ तानों से बात करते थे |

अब प्यार से बात करने लगे रौनक अब 😔 मन –ही-मन सोचने लगा ..

👉 बड़े तमाशे से गुजरी जिन्दगी हमारी ....!

    जज्बात मरते गये और हम पत्थर होते गए .....!!!

 




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