न्यायिक पुनर्विलोकन से आप क्या समझते हैं ? इसकी महत्ता पर प्रकाश डालें ? ( jpsc mains पेपर 4 के लिए महत्वपूर्ण टॉपिक )
न्यायिक पुनर्विलोकन से आप क्या समझते हैं ? इसकी महत्ता पर प्रकाश डालें ?
न्यायिक पुनर्विलोकन का तात्पर्य उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान
तथा उसकी सर्वोच्चता की रक्षा करने की व्यवस्था से है। यदि संघीय या राज्य
विधानमंडलों द्वारा संविधान का अतिक्रमण किया जाता है अर्थात् अपनी निश्चित सीमाओं के बाहर कानून का
निर्माण करता हो तो संघीय या राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि को अन्ततः सर्वोच्च न्यायालय
असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
राज्य विधानमंडल के द्वारा बनाये गये कानून को असंवैधानिक घोषित उच्च
न्यायालय करता है लेकिन इसके विरुद्ध कोई अपील हो तो अंतिम निर्णय उच्चतम् न्यायालय की होती है।
सर्वोच्च न्यायालय की यही शक्ति को ही न्यायिक पुनर्विलोकन
की शक्ति कहा जाता है।
न्यायिक पुर्नविलोकन अमेरिका के संविधान से लिया गया है और यह हमारे संविधान का प्रमुख लक्षण माना जाता है जो इस प्रकार है:-
(1) न्यायिक
पुनर्विलोकन की शक्ति उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय दोनों को है
लेकिन उच्च न्यायालय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील दायर हो तो ऐसी स्थिति में
उच्चतम न्यायालय का ही निर्णय
अंतिम होगा।
(2) साधारण कानूनों
के द्वारा संविधान संशोधन अधिनियमों का भी न्यायिक पुनर्विलोकन
सम्भव है।
(3) न्यायिक
पुनर्विलोकन की प्रक्रिया में सिर्फ कानून की संवैधानिकता पर विचार किया जाता है।
अर्थात् न्यायालय यह देखता है कि क्या वह कानून संसद या विधान मंडल के कार्य
क्षेत्र के अधीन आता है कि नहीं। और यदि नहीं आता है तो उसे न्यायालय निरस्त कर देता है।
(4) न्यायिक पुनर्विलोकन की प्रक्रिया में
न्यायपालिका द्वारा लिये गये निर्णय को निरस्त करने के
लिए कानूनों में संशोधन किया जाता है।
(5) न्यायालय कानून
की वैधता को मानकर आगे बढ़ती है और इस कानून को चुनौती देने वाले व्यक्ति का दायित्व होता है कि उसे असंवैधानिक सिद्ध करे।
भारतीय न्यायपालिका समानता का अधिकार का पालन करती है। इस अधिकार के अनुसार
अगर कानून एक ही हिस्सा असंवैधानिक हो
तो न्यायालय यह कोशिश करता है कि सिर्फ उस हिस्से को ही असंवैधानिक
घोषित करे, शेष कानून को वैधानिक मानकर उसे लागू करे। भारतीय न्यायपालिका बदली
हुई सामाजिक, आर्थिक
परिस्थितियों को ध्यान में रखते
हुए कानूनों की व्याख्या करती है और कानूनों की व्याख्या के लिए न्यायालय 'प्रगति
संरक्षण अधिनियम' का सहारा लेती
है।
न्यायालय को न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार पृथक् अनुच्छेद 131, 132 में संघीय तथा
राज्य सरकारों के द्वारा निर्मित विधियों पर पुनर्विलोकन का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट को है। संविधान के अनु० 32 मौलिक अधिकारों के सम्बंध
में सुप्रीम कोर्ट को न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार
देता है।
जबकि अनुच्छेद-246 के तहत राज्य के
द्वारा निर्मित कानून पर परीक्षण
का अधिकार हाई कोर्ट को दिया गया है। इस प्रकार न्यायिक पुनर्विलोकन का
अधिकार हमारे संविधान में सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट दोनों को है और जब
भी संघीय एवं राज्य विधान मण्डल अपने कार्यक्षेत्र से बाहर करते हैं तो न्यायिक पुनर्विलोकन के
तहत न्यायपालिका इन पर अंकुश
लगाता है।
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