मैस्लो का अभिप्रेरणा या आवश्यकताओं के पदसोपान का सिद्धान्त pdf with mind map( लोक प्रशासन)


मैस्लो का अभिप्रेरणा या आवश्यकताओं के पदसोपान का सिद्धान्त

(ये लोक प्रसाशन का बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है जो की कई बार UPSC ,BPSC(39th) में ये आया है और हो सकता है की आने वाले JPSC exam के लिए ये महत्पूर्ण हो |  इसमे किस प्रकार का प्रश्न बनेगा वो निचे दिया गया है | क्वेश्चन आंसर फोर्मेट में चीजें ज्यादा स्पष्ट होती है इसी कारण हमने भी उसे ऐसे ही दिया है | जिससे की छात्रों को अच्छी तरह से समझ में आ जाये |)

"मास्लो ने प्रेरणा की प्रकृति को समझने में महान योगदान दिया है । "इस कथन के संदर्भ में प्रेरणा और प्रबंध के प्रति आधुनिक दृष्टिकोण के उपागमों के ऊपर मास्लो के आवश्यकता सोपान के सिद्धान्त के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए ?

अभिप्रेरणा सिद्धान्त के तहत 'आवश्यकताओं के पदसोपान का सिद्धान्त' आब्राहम मास्लो द्वारा दिया गया। मास्लो ने मानव प्रेरणा सिद्धान्त के विभिन्न आवश्यकताओं को अभिप्रेरण का आधार बनाया । मानव व्यवहार का विश्लेषण कर मास्लो ने आवश्यकताओं को एक क्रम में रखा जो व्यक्ति को एक-एक करके अभिप्रेरित करती है । इस प्रकार अभिप्रेरण हेतु आवश्यकताओं का एक व्यवस्थित क्रम सर्वप्रथम मास्लों द्वारा ही दिया गया ।

इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही कार्य करता है । जैसे ही एक आवश्यकता पूर्ण हो जाती है, अगली उच्च स्तर की आवश्यकता पुनः क्रियाशील हो जाती है। प्रारम्भ में मास्लो ने प्रमुख पाँच आवश्यकताओं को अभिप्रेरण के साधन के रूप में लिया किन्तु बाद में इसमें तीन अन्य आवश्यकताओं को जोड़ दिया। परिणामस्वरूप मास्लो की आवश्यकता का पदसोपानिक सिद्धान्त इस प्रकार के स्वरूप में सामने आया-

मैस्लो का आवश्यकताओं के पदसोपान का सिद्धान्त पिरामिड


मास्लो के अनुसार मानव प्रेरणा हेतु समस्त आवश्यकताएँ वरीयता क्रम से एक के
बाद एक आती हैं। दूसरी आवश्यकता तभी सामने आती है जब पहली निम्न कोटि की पूरी हो जाती है इस प्रकार व्यक्ति अपने जीवन में लगातार अभिप्रेरणा के चक्रों में क्रियाशील होता है । मास्लो का मत है कि शारीरिक आवश्यकताएँ व्यक्ति की यौनाकांक्षा आदि प्राथमिक आवश्यकताएँ होती हैं जिसमें हवा, पानी, भोजन, वस्त्र, मकान, सम्मिलित हैं।

मनुष्य को इन आवश्यकताओं की अनुभूति बार-बार होती है। ये आवश्यकताएँ मनुष्य को सर्वाधिक प्रेरित करती हैं और जब तक ये पूरी नहीं हो जाती हैं, मनुष्य अन्य आवश्यकताओं के बारे में सोच भी नहीं सकता । उदाहरणार्थ किसी भूखे व्यक्ति के लिए उसकी भोजन की आवश्यकता सर्वोपरि होती है और जब तक उसकी भूख नहीं मिटती है वह केवल खाने के बारे में ही सोचता रहता है।

एक बार ये आवश्यकताएँ पूरी हो जाये तो व्यक्ति को अधिक अभिप्रेरित नहीं करती हैं। अब व्यक्ति अपनी उत्तेजना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयास करता है जो उसे किसी कार्य को करने के लिए तीव्र उत्साह प्रदान करती हैं। जैसे चाय, कॉफी या कोई व्यक्ति उत्तेजना हेतु नशे की वस्तुओं का प्रयोग करता है । इसके बाद व्यक्ति को अपनी सुरक्षा की आवश्यकता होती है। सुरक्षा की आवश्यकताओं को छोटे बच्चों में स्पष्टतः देखा जा सकता है। ये आवश्यकताएँ मूलतः भौतिक तथा भावनात्मक संतुष्टि से सम्बद्ध होती हैं।

इसमें व्यक्ति अपनी सुरक्षा के साथ-साथ अपनी सम्पत्ति की सुरक्षा भी चाहता है और इसके लिए वह सुरक्षित कैरियर, बचत खाता, बीना आदि की सुविधाएँ लेता है। इनकी पूर्ति के बाद व्यक्ति समाज से जुड़ना चाहता है और वह समाज से प्यार, स्नेह, आत्मीयता, लगाव आदि प्राप्त करने की अपेक्षा करता है। इसके निमित्त वह माँ-बाप, भाई-बहन, दोस्त, पत्नी, बच्चे, पड़ोसियों आदि से संबंध स्थापित करता है।

मास्लो का मत है कि यदि व्यक्ति की आवश्यकताएँ संतुष्ट नहीं होती हैं तो उसके कार्य में बाधा उत्पन्न करने लगती है। ये इच्छाएँ चेतन और अवचेतन रूप से उसके व्यवहार को प्रेरित करती हैं। व्यक्ति समाज के बीच में रहते हुए अपनी प्रतिष्ठा बनाना चाहता है। अपने आत्मसम्मान की आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए वह अपने कार्यक्षेत्र, परिवार, मित्रमण्डली के बीच पहचान, प्रसिद्धि,स्वतंत्रता,नेतृत्व पाने की लालसा रखता है।

मनुष्य के इन आवश्यकताओं की पूर्ति उसे आत्मविश्वास से परिपूर्ण, पर्याप्त व महत्ता प्रदान करती है। वास्तव में मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में सम्मान की आवश्यकता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। समाज में अपनी पहचान सुनिश्चित करने के बाद व्यक्ति अपनी समग्र आवश्यकताओं एकीकृत कर संतुष्टि का चरम हासिल करने का प्रयास करता है । इस समय उसकी समस्त आवश्यकताओं की पर्याप्त पूर्ति हो रही होती है।

अपनी भौतिक एवं सभी प्राथमिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के बाद उसमें उच्चतम स्तर की आवश्यकता जन्म लेती अब वह आत्मविकास अथवा आत्मसिद्धि को प्राप्त करना चाहता है। (आत्मसिद्धि' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 'कुर्ट गोल्डस्टाइन' ने किया था |जीवन में सार्थकता और उद्देश्य की खोज की इस आवश्यकता का प्रमुख लक्ष्य होता है। किसी सामान्य व्यक्ति के लिए आत्मसिद्धि की अभिलाषा उसकी सबसे बड़ी अभिलाषा होती है जो सभी निम्न स्तर की आवश्यकता की संतुष्टि के बाद ही जन्म लेती है।

मास्लो के मतानुसार आत्मसिद्ध व्यक्ति अपराध भावना से दूर होता है, वह परमानंद की खोज करने वाला, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मर्यादित रहने वाला, बेईमानों की पहचान करने वाला, स्वतंत्रता चाहने वाला, समस्या केन्द्रित, सहानुभूति युक्त, लोकतांत्रिक एवं बर्हिमुखी होता है। मास्लो के अनुसार इस आवश्यकता की पूर्ति के बाद व्यक्ति अभिप्रेरित होना बन्द नहीं कर देता बल्कि उसकी महत्वाकांक्षा उसे अभिप्रेरित करती है।

मास्लो का मानना है कि "उनके लिए प्रेरणा महज चरित्र का विकास है, चारित्रिक अभिव्यक्ति, प्रेरणा और विकास, इनके लिए ये सब एक ही शब्द आत्मसिद्धि में निहित है।" आत्मसिद्ध व्यक्ति अब अध्यात्म से जुड़ने लगता है और आध्यात्म की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए वह टेलीपैथी का सहारा लेता है यह व्यक्ति की आन्तरिक पहचान से सम्बंधित होता है। बाह्य पहचान तो क्षणिक होता है जबकि आत्मा शाश्वत होती है। व्यक्ति के अस्तित्व की पहचान आध्यात्म के द्वारा ही हो पाती है। जब व्यक्ति की ये आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पाती हैं तो वह कई व्याधियों से घिर जाता है जिसे 'Meta Pathology' कहते हैं ।

मास्लो के अनुसार व्यक्ति के जीवन में प्रत्येक आवश्यकता क्रमिक रूप से आती है किन्तु प्रत्येक व्यक्ति के लिए इसकी क्रमिकता एक समान नहीं हो सकती है। मास्लो इसे स्वयं स्वीकार करते हुए कहते हैं कि आवश्यकताओं की क्रमिकता प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति परिवेश व प्राप्यता द्वारा निर्धारित होता है।

मास्लो का मानना है कि क्रमिकता का यह परिवर्तन 'अभाव और प्रभाव सिद्धान्त' के अनुसार होता है । जिन आवश्यकताओं का जीवन में अभाव रहा है, वह अधिक प्रभावी रहती है और पदसोपान की क्रमिकता में प्राथमिकता ग्रहण करती है। यह प्राथमिकता प्रभाव की मात्रा पर निर्भर करता है उदाहरणार्थ ऐसे लोग जिनका जीवन हमेशा भोजन की समस्या ही से ग्रस्त रहा हो, उनके लिए से ग्रस्त रहा हो, उनके लिए क्षुधा ही सर्वप्रमुख आवश्यकता बनी रहती है। जो लोग अपने जीवन में प्यार, स्नेह, जुड़ाव आदि से वंचित रहे हों, उनके लिए उसको प्राप्त करने की तीव्रता सदैव बनी रहती है |

इस प्रकार से अभाव ही प्रभाव को सुनिश्चित करता है। जिन आवश्यकताओं की पूर्ति का जितना अभाव रहा होगा, उतने ही तीव्रता से वे प्राथमिकता को सुनिश्चित करेंगी। इस तरह क्रमिकता का निर्धारण 'घटने की प्रायिकता पर निर्भर करता है अर्थात् जिसके घटने की सम्भावना सबसे ज्यादा है, वह पहले स्थान पर होगा।

इसके अलावा क्रमिकता व्यक्ति की स्वयं की प्रकृति पर निर्भर करती है। कोई व्यक्ति अपने निम्न स्तर की आवश्यकताओं की पूर्ति ही करने से संतुष्ट हो जाता है, उसके लिए उच्च स्तर की आवश्यकताएँ निरर्थक होती हैं। इसके विपरीत कुछ व्यक्तियों के लिए उनकी प्रतिष्ठा सबकुछ होती है चाहे उनकी अन्य भौतिक आवश्यकताएँ अपूर्ण हों, जैसे महाराणा प्रताप ।

इसके अलावा मास्लो के सिद्धान्त में व्यक्ति को सदैव अभिप्रेरित करने के लिए ही आवश्यकताएँ एक के बाद एक करके आती हैं। क्योंकि सारी आवश्यकताओं का एक साथ आना और उनकी एक साथ पूर्ति असंभव है । अतः यह एक क्रमिक घटना है। एक औसत व्यक्ति में उसकी सभी आवश्यकताएँ उसके अवचेतन में होती है जो तीव्रता के आधार पर क्रियाशील होती है।

मास्लो का मानना है कि व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएँ समाज और संस्कृति से निरपेक्ष होती है। चूँकि मानवीय व्यवहार बहुप्रेरित होती है इसलिए व्यक्ति किसी एक आवश्यकता की पूर्ति से सदैव के लिए संतुष्ट नहीं हो जाता और यही कारण है कि ये आवश्यकताएँ उसे जीवन भर एक के बाद एक अभिप्रेरित करती जाती है |

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अब्राहम मास्लो ने मानव अभिप्रेरणा की प्रकृति को समझने में अहम् भूमिका निभायी है और इसीलिए अभिप्रेरणा सिद्धान्त में मास्लो का योगदान अद्वितीय है। मास्लो में अपनी विशिष्ट क्रमिकता को मनुष्य के सम्पूर्ण समुच्चय के प्रतिनिधित्व की तरह पहचाना । मास्लो ने न केवल व्यक्ति को अभिप्रेरित करने वाली आवश्यकताओं की पहचान की बल्कि आवश्यकताओं के संदर्भ में अभिप्रेरणा को मनोवैज्ञानिक तरीके से विश्लेषित किया। उनके सिद्धान्तों ने अभिप्रेरणा एवं प्रबंध के क्षेत्र में शोधकार्य को बढ़ावा दिया और उन्हें नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाने में मदद की अभिप्रेरणा के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ने संगठन में नेतृत्व और कार्यक्षमता के मध्य बेहतर सौहार्द्रपूर्ण संबंध विकसित होने की संभावना दी।

किसी भी संगठन में व्यक्ति के व्यक्तिगत स्तर तक आवश्यकताओं और मनोभावों को समझने में इस सिद्धान्त ने एक मजबूत माध्यम प्रदान किया। संगठन में व्यक्ति का विकास और उसकी आवश्यकता को निम्न स्तर से उच्च स्तर तक आने में बदलते प्रेरकों के निर्धारण में सहायता मिली।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि मास्लो के अभिप्रेरण सिद्धान्त ने ही वह मजबूत नींव दी जिस पर अभिप्रेरणा के नये उपागमों जैसे हेमबर्ग के द्विघटकीय सिद्धान्त, एल्डफर के ERh सिद्धान्त, मैक्लीलैण्ड के तीन आवश्यकता सिद्धान्त, आऊची के Z सिद्धान्त, मैकग्रेर के x &y सिद्धान्त ने व्यवस्थित दीवार खड़ी की और आगे चलकर अभिप्रेरण के प्रक्रिया सिद्धान्त का सूत्रपात हुआ

अतः मास्लो ने न केवल मान व्यवहार के आधार के रूप में मानवीय आवश्यकताओं को लेकर मानव प्रेरणा का सरल व सुबोध विश्लेषण किया बल्कि प्रेरणा व प्रबंध के क्षेत्र में नयी संभावनाओं के लिए द्वार खोला।





कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.
close