"लक्ष्य: अंडरवर्ल्ड का वो नाम जिससे पूरी मुंबई कांपती है | हिंदी थ्रिलर कहानी"
💥 "लक्ष्य: अंडरवर्ल्ड का ऐसा नाम जिससे मौत भी कांपे"
(एक थ्रिलर और एक्शन से भरपूर कहानी)
🕶️ कहानी का सारांश:
ये कहानी है "लक्ष्य" की — एक ऐसा किरदार, जिसकी खामोशी मौत से ज़्यादा खतरनाक मानी जाती है। अंडरवर्ल्ड के सबसे बड़े नाम भी उसका नाम सुनकर कांप जाते हैं। उसका अतीत धुंधला है, लेकिन उसका हर कदम दुश्मनों के लिए आखिरी बनता है।
🕶️ अध्याय 1: वो कौन है?
मुंबई की सड़कों पर रात के सन्नाटे में सिर्फ दो चीज़ें गूंजती थीं — गोली की आवाज़ और "लक्ष्य" का नाम।
"लक्ष्य आ गया?"
ये तीन शब्द अंडरवर्ल्ड के सबसे बड़े गैंगस्टरों की नींद उड़ाने के लिए काफी थे।
कहा जाता है, जो एक बार लक्ष्य की आंखों में देख लेता है, उसकी ज़िंदगी या तो बदल जाती है… या खत्म।
💣 अध्याय 2: शुरुआत मौत से
कोलीवाड़ा इलाके में जब पहली बार एक गैंग वार हुआ, तब पुलिस को एक ही लाश मिली — और पास में पड़ा था एक पुराना खोखला लिफाफा, जिस पर सिर्फ एक नाम लिखा था:
"L"
पुलिस ने समझा ये कोई आम गैंग लड़ाई है, पर असली खेल शुरू होने वाला था।
अगले 7 दिनों में मुंबई के 3 बड़े माफिया मारे गए — बिना किसी सुराग, बिना किसी आवाज़।
🔥 अध्याय 3: अतीत की राख
लक्ष्य का असली नाम लक्ष्मण राव था। एक समय पुलिस विभाग में सबसे तेज दिमाग वाला अफसर, पर भ्रष्ट सिस्टम ने उसे अपना ही दुश्मन बना दिया।
जब उसके माता-पिता को एक राजनेता ने जिंदा जला दिया और केस दबा दिया गया, तब से लक्ष्मण राव, लक्ष्य बन गया।
अब उसके पास न वर्दी थी, न अदालत — बस इंसाफ का अपना तरीका।
🕵️♂️ अध्याय 4: इन्वेस्टिगेशन vs लक्ष्य
ACP अरुण ठाकुर, जिसे सरकार ने सिर्फ एक काम सौंपा था — "लक्ष्य को पकड़ो, या खत्म कर दो।"
पर जैसे ही ठाकुर ने पहला कदम बढ़ाया, उसे अपने ही घर के दरवाजे पर एक चिट्ठी मिली:
"तुम्हारी बेटी सुरक्षित है… आज तक।
– लक्ष्य"
ठाकुर समझ गया, लक्ष्य सिर्फ गोली नहीं चलाता, वो दिमाग भी पढ़ता है।
💀 अध्याय 5: लक्ष्य का उसूल
लक्ष्य कभी किसी मासूम को नहीं मारता।
उसके टारगेट सिर्फ वो होते हैं, जो सिस्टम का मज़ाक उड़ाते हैं — रेपिस्ट, ड्रग माफिया, बच्चों के तस्कर और करप्ट अफसर।
लोग कहते हैं, वो "काल का फरिश्ता" है। पुलिस उसे क्रिमिनल मानती है, पर आम लोग उसे हीरो कहते हैं।
🩸 अध्याय 6: मुंबई का ब्लैक नाइट
एक रात, अंडरवर्ल्ड डॉन "रहमान भाई" के अड्डे पर हमला हुआ।
CCTV कैमरे सिर्फ धुआं और आग दिखा रहे थे।
सुबह तक 18 बॉडी मिलीं और दीवार पर एक खून से लिखा वाक्य:
"लक्ष्य आया था"
उस दिन से रहमान भाई के नाम के आगे एक और नाम जुड़ गया — "भूतपूर्व"।
🔐 अध्याय 7: सरकार की बेचैनी
सरकार को डर था कि अगर लक्ष्य को न रोका गया, तो लोग कानून से भरोसा हटाकर "लक्ष्य न्याय" पर आ जाएंगे।
एक सीक्रेट मिशन के तहत उसे मारने के लिए एक प्राइवेट स्क्वाड भेजा गया।
पर अगले दिन मीडिया में जो वीडियो वायरल हुआ, उसने सबके रोंगटे खड़े कर दिए:
लक्ष्य – अकेला – 12 लोगों को हराकर निकला और बोला:
"अब मुझे मत ढूंढो, मैं तभी आता हूँ जब इंसाफ मरा होता है।"
🎯 अध्याय 8: अंतिम वार
2025 की गर्मियों में, जब पूरे शहर को गैंग वॉर से जलाया जा रहा था, लक्ष्य एक बार फिर सामने आया।
इस बार उसका निशाना था – "नेता जी सुरेश मिश्रा" – वही जिसने बचपन में उसके माता-पिता को मारा था।
पूरे विधानसभा के सामने लक्ष्य ने मिश्रा को गिरफ्तार नहीं, नंगा करके सच्चाई सबके सामने रख दी।
कोई गोली नहीं चली, पर मिश्रा खुद शर्म से मर गया।
📢 पोस्ट का निष्कर्ष:
"लक्ष्य कोई नाम नहीं, एक सोच है।
जो वहां आता है जहां कानून हार जाता है।
वो न हीरो है, न विलेन।
वो बस इंसाफ है — बिना यूनिफॉर्म वाला इंसाफ।"
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