"जब घर वाले ही पराए हो जाएं: रंजन की अधूरी मोहब्बत की सच्ची कहानी"

✨ अध्याय 7.5: रंजन का प्यार - एक सपना, एक संघर्ष
रंजन की ज़िंदगी में एक रोशनी की किरण थी—"पूनम"।
सीधी-सादी, समझदार और भावुक। वो रंजन के हर दर्द को बिना बोले समझ जाती थी।
जब घर से कोई नहीं सुनता था, पूनम बस एक "तुम ठीक हो?" कहकर रंजन की सारी तकलीफें हल्की कर देती थी।
एक दिन रंजन ने माँ-पापा से बात की:
"मैं पूनम से शादी करना चाहता हूँ।"
पापा ने थाली ज़ोर से मेज़ पर पटक दी।
"अपनी पसंद से शादी करेगा? फिर हमारा क्या मतलब?"
"घर छोड़ और जहाँ मर्जी है वहाँ जा के बसा ले!"
रंजन की ज़िंदगी जैसे थम गई।
पूनम को खोना उसे मंज़ूर नहीं था, लेकिन अपने परिवार का ये रवैया तोड़ कर रख गया।
💔 अध्याय 8.5: दोहरा मापदंड
कुछ हफ्तों बाद, रंजन को एक फ़ोन आया—माँ की आवाज़ थी:
"बेटा, 1 जून को तुम्हारे छोटे भाई राजनिश की सगाई है। आ जाना।"
रंजन सन्न था…
"जब मैंने आपसे कहा था कि मैं किसी से प्यार करता हूँ, तो आपने घर से निकालने की बात की… और अब राजनिश की सगाई हो रही है?"
माँ बोली,
"लोग क्या कहेंगे अगर तू नहीं आया?"
रंजन की आँखें भर आईं।
"तो अब मैं सिर्फ समाज के लिए ज़रूरी हूँ?"
"जिस बेटे को आपने ठुकरा दिया, उसी को आज समाज के डर से बुला रहे हैं?"
💭 अध्याय 9: दिल का फैसला
रंजन ने पूनम का हाथ थामा और बोला—
"तुम्हें छोड़कर जाना मेरे बस में नहीं… लेकिन घरवालों को समझाना भी अब मेरा फर्ज़ नहीं।"
उन्होंने तय कर लिया—शादी करेंगे।
शायद दुनिया के खिलाफ, लेकिन अपने प्यार के साथ।
💔 अध्याय 10: समाज की आँखें, दिल की खामोशी
रंजन 1 जून को नहीं गया।
पर उस दिन उसकी एक ब्लॉग पोस्ट वायरल हुई:
"माँ-बाप के लिए समाज की इज़्ज़त ज़रूरी होती है,
और बच्चों के लिए माँ-बाप की इज़्ज़त।
जब दोनों में से कोई एक न मिले, तो रिश्ते टूट जाते हैं।"
📝 पोस्ट का निष्कर्ष (Emotional Ending)
हर माँ-बाप से ये सवाल:
"क्या समाज का डर, आपके बच्चे के प्यार से बड़ा हो गया?"
"क्या आपने कभी अपने बेटे की आँखों में देखा कि वो कितनी बार आपके इंकार से टूटा है?"
रंजन की कहानी लाखों दिलों को छू गई।
और कई माँ-बाप ने अपने बच्चों से माफ़ी माँगी।
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