"मेज़ पर बिखरी हुई अधूरी किताबें – एक अधूरी ज़िंदगी की मुकम्मल कहानी"

                                                                            


 

"मेज़ पर बिखरी हुई अधूरी किताबें"

🔹 प्रस्तावना

वक़्त किसी की नहीं सुनता, न ठहरता है और न ही पलटकर देखता है। मगर कुछ निशानियां छोड़ जाता है — जैसे मेज़ पर बिखरी हुई अधूरी किताबें। हर अधूरी किताब एक अधूरी कहानी है, और हर अधूरी कहानी किसी अधूरे इंसान की पहचान।


🔹 किरदार की पहचान

नाम था अर्जुन वर्मा, उम्र 45 साल। एक समय के मशहूर लेखक, जिनकी कहानियां देशभर में पढ़ी जाती थीं। लेकिन अब...

  • ना अखबारों में नाम छपता था,

  • ना किताबों की दुकानों में उनका ज़िक्र होता था,

  • और ना ही कोई उनसे मिलने आता था।

बस बचा था — एक पुराना लकड़ी का टेबल, जिस पर ढेर सारी किताबें बिखरी पड़ी थीं। कुछ अधूरी, कुछ बिना शीर्षक के, और कुछ तो आधे पन्नों में ही रुकी हुई।

🔹 अकेलापन और किताबें

अर्जुन का कमरा किसी लाइब्रेरी से कम नहीं था, मगर वहाँ किताबें कम और कहानी की तड़प ज़्यादा थी। हर पन्ना जैसे चिल्ला रहा था:

"हमें पूरा करो..."

पर अर्जुन हर कहानी को शुरू करता और फिर छोड़ देता।

उसकी पत्नी नीरा उसे छोड़ चुकी थी, बेटा आदित्य अब विदेश में था और कभी-कभार "Hi Dad" कहने के लिए एक व्हाट्सएप मैसेज भेज देता।

बस अर्जुन के पास बचा था — समय, सन्नाटा, और मेज़ पर बिखरी हुई अधूरी किताबें

🔹 एक दिन कुछ बदल गया...

उस शाम की बात है जब बारिश हो रही थी। बिजली गई हुई थी। अर्जुन एक पुरानी डायरी पलट रहा था। अचानक उसे एक अधूरी कहानी दिखी — जिसका शीर्षक था:

"आखिरी चिट्ठी"

पढ़ते-पढ़ते उसकी आंखें भर आईं। वो कहानी किसी और की नहीं, उसकी अपनी थी। उसकी नीरा के लिए लिखी गई आखिरी चिट्ठी — जो कभी भेजी ही नहीं गई।

🔹 एक अनजानी दस्तक

दूसरे दिन दरवाजे पर एक दस्तक हुई। दरवाज़ा खोला तो एक लड़की खड़ी थी — सिया, 22 साल की, पत्रकारिता की छात्रा।

सिया ने कहा,
"सर, मैं आपकी कहानियाँ पढ़ती थी। क्या आपसे इंटरव्यू ले सकती हूँ?"

अर्जुन थोड़ा चौंका, फिर धीरे से बोला —
"अब कौन पढ़ता है मेरे जैसे बूढ़े लेखक को?"

सिया मुस्कराई,
"जो अधूरी कहानियाँ आपने छोड़ी हैं, शायद वही आज की सबसे ज़रूरी कहानियाँ हैं सर।"

🔹 कहानी का पुनर्जन्म

सिया के आने के बाद अर्जुन की जिंदगी जैसे धीरे-धीरे रंग पकड़ने लगी। वह रोज़ उसकी पुरानी किताबों को पढ़ती, सवाल पूछती, नोट्स बनाती। और एक दिन, उसने अर्जुन से कहा:

"सर, चलिए मिलकर अधूरी कहानियाँ पूरी करते हैं।"

अर्जुन मुस्कराया — पहली बार सालों बाद।

🔹 फिर हुआ चमत्कार

अर्जुन और सिया ने मिलकर एक किताब निकाली —
📖 "मेज़ पर बिखरी हुई अधूरी किताबें"
जिसमें अर्जुन की सारी अधूरी कहानियों को पूरा किया गया।

वो किताब सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। कॉलेजों, साहित्यिक मेलों और बुक फेयर में अर्जुन का नाम फिर से गूंजने लगा।

और सबसे खास बात — एक दिन नीरा भी वापस लौटी, किताब हाथ में लिए, आंखों में आंसू लिए।

🔹 अंतिम पंक्तियाँ

अब अर्जुन की मेज़ पर किताबें तो हैं...
मगर अब वे अधूरी नहीं हैं।
अब वहां एक कप चाय, सिया की हँसी, और पुरानी यादों की महक है।


🔹 कहानी की सीख

  • कभी-कभी हमारी अधूरी चीजें ही सबसे सुंदर होती हैं, क्योंकि उनमें कुछ कहने की गुंजाइश बाकी होती है।

  • जिंदगी में जब सब साथ छोड़ दें, तब भी आपकी कहानियाँ आपके साथ रहती हैं।

  • हर इंसान की ज़िंदगी में कोई न कोई "सिया" आता है, जो हमें हमारे अधूरेपन से बाहर निकालता है।


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