उर्जा के गैर परम्परागत स्रोतों की भारत में स्थिति ,वितरण एवं सरकार के प्रयासों का वर्णन करें ? |ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत का वर्णन कीजिए?
उर्जा के गैर परम्परागत स्रोतों की भारत में स्थिति ,वितरण एवं सरकार के प्रयासों का वर्णन करें ?
गैर परम्परागत या नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों से तात्पर्य
ऐसी ऊर्जा से है
जिसका पूर्ण प्रयोग के लिए नवीकरण किया जा सकता है। वर्तमान समय में जीवाश्म ईंधन के भंडार में
होते कमी एवं इसके दुष्प्रभावों के कारण नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास की प्रवृति का
तेजी से विकास हुआ है |
इस ऊर्जा स्रोतों में मुख्य
रूप से सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, वायोमास, बायोगैस, ज्वारीय
ऊर्जा,
भूतापीय ऊर्जा, हाइड्रोजन
ऊर्जा, इत्यादि को
सम्मिलित किया जाता है।
जिनका वर्णन निम्न है-
1. सौर ऊर्जा- सूर्य ऊर्जा का
सबसे अधिक प्रत्यक्ष एवं विशाल स्रोत है। जो पृथ्वी पर वायु प्रवाह, जल चक्र के नियंत्रण बनाये रखने के लिए आवश्यक शक्ति प्रदान करता
है तथा समस्त जीवन को समपोषित करता है।
एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी की वायुमण्डल की ऊपरी सतह का प्रत्येक वर्ग मीटर लगभग 1.36
जूल सौर ऊर्जा प्रति सेकण्ड प्राप्त करता है। चूंकि भारत एक उष्णकटिबंधीय प्रदेश है जहां के अधिकांश भागों में वर्ष के 300 दिनों तक पर्याप्त सौर ऊर्जा उपलब्ध रहती है।
अतः भारत के भविष्य के ऊर्जा स्रोतों में बेहतर विकल्प के रूप में इसका प्रयोग संभव
है। सौर ऊर्जा को मुख्यत दो भिन्न माध्यमों से उपयोग में लाया जा
रहा है।
(क) सौर तापीय ऊर्जा - सौर ऊर्जा को
तापीय ऊर्जा में बदलने के लिए सौर संग्रहकों एवं रिसीवरों का सहयोग लिया जाता है एवं
इससे निर्मित सौर ताप
यंत्रों का प्रयोग पानी गर्म करने, भोजन पकाने, पानी को लवण मुक्त करने, रेफ्रिजेशन प्रणाली के परिचाल इत्यादि में की जाती है।
राजस्थान के जोधपुर जिले में मथानिया गांव
में 140
मेगावाट की एक समन्वित सौर संयुक्त चक्र बिजली सहित 35 मेगावाट की पहली सौर ताप ऊर्जा
प्रणाली की स्थापना की गई है। इसके अलावे आंध्र प्रदेश के तिरूमाला में लगभग 15000 लोगों का भोजन प्रतिदिन इस ऊर्जा के माध्यम से
बनाया जाता है।
(ख) सौर फोटो वोल्टाइक ऊर्जा- सौर ऊर्जा को फोटो वोल्टाइक सेलो द्वारा
सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है तथा ये सेल सिलिकोन से
बने होते है। वर्तमान में सरकार द्वारा अपेक्षाकृत
इस महंगी तकनीक के
विकल्प खोजे जा रहे हैं ताकि उपभोगताओं को सस्ती दरों पर बिजली मुहैया करायी जा सके तथा जिसका लाभ देश के आर्थिक विकास पर भी
पड़े।
इन सौर सेलो पर आधारित कई यंत्रों के निर्माण किये जा रहे है जिनमें सौर लालटेन, घर एवं सड़क पर प्रकाश व्यवस्था, सौर पम्प, समुदायिक प्रकाश व्यवस्था, रेल सिंग्नल,ग्रामीण दूरभाष प्रणाली, प्रतिरक्षा के क्षेत्र
में ऊर्जा को सुनिश्चित करना इत्यादि महत्वपूर्ण है।
भारत सरकार ने सोलर इंडिया ब्राण्ड नाम के
तहत 11
जनवरी 2010 को
जवाहर लाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन का उद्घाटन किया गया जिसका प्रमुख उद्देश्य
भारत को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व के अग्रणी देशों में सुमार करना है |
तथा इस मिशन के अंतर्गत 13वीं
पंचवर्षीय योजना में वर्ष 2022
तक 20
हजार मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य है। वर्तमान सरकार के द्वारा
इस लक्ष्य में वृद्धि करते हुए 100 गीगावाट का
लक्ष्य 2022 ई. तक रखा गया
है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के रोकथाम के लिए 2008 ई. को घोषित राष्ट्रीय कार्य योजना के
आठ प्रमुख मिशनों में राष्ट्रीय सोलर मिशन भी एक प्रमुख योजना है।
2. पवन ऊर्जा- यह एक प्रकार की गतिज ऊर्जा है, जिसके वेग से टरबाईनों को चलाकर
विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। भारत में पवन ऊर्जा के विकास की बेहतर संभावनायें है
क्योंकि भारत के पास लगभग 7516 किमी तटीय रेखा
एवं पर्वतीय क्षेत्र है जहाँ ऊर्जा के निर्माण के अनुकूल पवनों का वेग पाया जाता है।
तात्कालिन केन्द्रीय सरकार के द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के अन्तर्गत पवन
ऊर्जा के द्वारा 2022 ई. तक 60 गीगावाट बिजली उत्पादन
का लक्ष्य रखा गया है।
वर्तमान समय में भारत विश्व का तीसरा सर्वाधिक पवन ऊर्जा उत्पादक
राष्ट्र है, इस उत्पादन में तमिलनाडू, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान
जैसे राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
3. समुद्री ऊर्जा- इस ऊर्जा दो
प्रमुख स्रोत है-
(क) समुद्री ज्वार
(ख) समुद्री लहरें
भारत में खंभात की खाड़ी, कच्छ
की खाड़ी, हुगली तट क्षेत्रों में
आने वाले ज्वार अन्य
तटीय क्षेत्रों से ज्यादा प्रबल है जिस कारण ज्वारीय ऊर्जा के उत्पादन की सर्वाधिक संभावना इन्हीं
क्षेत्रों में है।
अनुमानत देश में ज्वार ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की कुल संभावित
क्षमता लगभग 9 हजार मेगावाट
है। पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र में इससे
संबंधित संयंत्र की स्थापना की गई है। समुद्री ऊर्जा के
अन्तर्गत तरंग ऊर्जा के माध्यम से भी विद्युत उत्पादन के प्रायोगिक प्रयोग हो रहे है।
यह ऊर्जा समुद्र की लहरों से उत्पन्न तरंगों के दबाव पर आधारित होती है। जिसके
अन्तर्गत समुद्र में एक चेम्बर लगाया जाता है जिसमें तरंगों की गति से टरबाईन को चलाकार पानी एवं हवा के परस्पर
दबाव से विद्युत उत्पन्न की जाती है।
4. बायोगैस- ये
गैस जीवों के उत्सर्जित पदार्थों से प्राप्त की जाती है जिसे सामान्य
भाषा में गोबर गैस के नाम से जाना जाता है इस गैस में 55-65 प्रतिशत तक मिथेन, 35-40 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड महत्वपूर्ण होती है।
इसके निर्माण के लिए एकत्रित अवशिष्ट पदार्थों को कम ताप पर विशेष
प्रकार से निर्मित डाइजेस्टर में चलाकर ऊर्जा निर्मित की जाती है। चूंकि भारत में मवेशियों
की संख्या विश्व में ज्यादा है अतः यहाँ बायोगैस की विकास की बहुत अधिक संभावना है।
केन्द्र सरकार के द्वारा 1981-82 ई. में
राष्ट्रीय बायोगैस विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया था
जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ तथा
सस्ते ऊर्जा स्रोत उपलब्ध कराना था।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत निर्मित बायोगैस संयंत्रों का निर्माण, वितरण, रख-रखाव इत्यादि से संबंधित सुविधायें सरकार
के द्वारा प्रदान की जाती है।
5. बायोमास- देश के ग्रामीण
इलाकों में ईंधन के प्रमुख स्रोत लकड़ी तथा कृषि अवशिष्ट पदार्थ है ये सभी बायोमास के अन्तर्गत आते
है जिन्हें जलाने से
ऊर्जा की प्राप्ति होती है अर्थात् बायोमास जैव ऊर्जा का एक स्रोत है।
बायोमास के अधिक कुशल व वैज्ञानिक तकनीक से ऊर्जा उत्पादन के लिए बायोमास ब्रिकेटिंग और बायोमास
गैसीकरण की प्रक्रिया अपनाई जाती है। नवीकरणीय
ऊर्जा विभाग के अनुसार लगभग 20 हजार मेगावाट
ऊर्जा का उत्पादन इस माध्यम से संभव है।
6. भू-तापीय ऊर्जा- भू-तापीय ऊर्जा भूगर्भ से प्राप्त ऊर्जा का एक संभाव्य स्रोत है भूतापीय
ऊर्जा प्रणाली के अन्तर्गत भूगर्भीय ताप एवं जल के अभिक्रिया से गर्म वाष्प उत्पन्न करके
ऊर्जा उत्पादन का प्रयास किया जा सकता है।
भारत में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ राज्यों में
भूतापीय ऊर्जा की संभावना का मूल्यांकन जारी है। छत्तीसगढ़
के तत्तापानी में 300 किलोवाट क्षमता का भूतापीय बिजली
संयंत्र एन.एच.पी.सी. के द्वारा लगाया जा रहा है।
झारखण्ड के हजारीबाग के सूरजकुण्ड में भी राष्ट्रीय भूगर्भीय अनुसंधान संस्थान के द्वारा ऊर्जा उत्पादन की संभावना की खोज की जा रही है।
उपर्युक्त नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में हाइड्रोजन ऊर्जा, शहरी तथा औद्योगिक कचरो से ऊर्जा, गैसोहॉल, फ्यूलसेल, क्लेथरेट इत्यादि महत्वपूर्ण है, जिनपर अनुसंधान कार्य गतिशील है ताकि उचित मूल्य पर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सके एवं जीवाश्म ईंधनों से होने वाले नुकसान का यथोचित भरपाई की जा सके।
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