सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख कारण बताइए ? इस आंदोलन में गांधीजी के प्रमुख मांगे क्या थी ?
सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख कारण बताइए ? इस आंदोलन में गांधीजी के प्रमुख मांगे क्या थी ?
सविनय अवज्ञा आंदोलन गांधीवादी राजनीति का मध्यस्थ बिंदु है परंतु एक महत्वपूर्ण
पड़ाव भी। जिसका उद्देश्य था, सरकारी
कानूनों की अवज्ञा कर उन परिस्थितियों का
निर्माण करना जिससे ब्रिटिश हुकुमत भारत
छोड़ने के लिए विवश हो जाए।
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में यह आंदोलन गांधीवादी राजनीतिक सिद्धांतों, कार्यप्रणाली की सर्वाधिक
मजबूती से प्रयोग के रूप
में भी, स्मरण किया जाता
है। 'सत्याग्रह', 'बहिष्कार', 'स्वदेशी', 'धरना' की राजनीति इस आंदोलन के दौरान खुब फली-फूली। इस आंदोलन के
संकेत से भावी राजनीति की दशा-दिशा निर्धारित होना इस आंदोलन का निर्णायक तत्व है।
1925 के बाद भारतीय
राजनीति का वह दौर समाप्त हो गया जो 1915 के चरण में उभरा
था। कांग्रेस में नव युवा वर्ग का प्रभाव बढ़ना तथा समाजवादी राजनीति का तीव्र विकास के बीच
ब्रिटिश हठधर्मिता ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि निर्मित की।
इस आंदोलन के लिए जिम्मेवार कारक निम्न थे-
1. 1928 में कांग्रेस का
वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। जिसमें नेहरू रिपोर्ट को
मंजूरी मिली, परंतु कांग्रेस का युवा नेतृत्व
नेहरू, सुभाष तथा
सत्यमूर्ति ने इस पर असंतोष व्यक्त किया।
वे डेमिनियन स्टेटस की माँग से बिल्कुल सहमत नहीं थे तथा पूर्ण
स्वराज्य को लक्ष्य बनाकर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे।
2. 1919 के भारत सरकार अधिनियम
की समीक्षा हेतु 1927 में साइमन कमीशन
भारत आया। इसके सातो सदस्य अंग्रेज होने के कारण भारतीयों ने इस आयोग को काले झण्डे
दिखाए तथा गो बैक का नारा दिया।
इसी प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय का निधन भी हुआ। कमिशन की गतिविधियों ने अंग्रेजी
हुकुमत के खिलाफ रोष उत्पन्न किया।
3. 1929-30 की आर्थिक मंदी विश्व के
अन्य देशों के साथ-साथ भारत को भी प्रभावित कर रही थी। आर्थिक मंदी के प्रभाव से धनी और निर्धन-दोनों वर्ग
क्षुब्ध था। मंदी का ही असर हुआ की समकालीन बड़े पूंजीपति घनश्याम दास बिड़ला, ठाकुर दास लालजी, राष्ट्रवादियों से जुड़ने लगे। पूंजीपति वर्ग और धनी कृषकों का राष्ट्रवादी
शक्तियों से जुड़ना आंदोलन को नई ऊर्जा से भर दिया।
4. 1925 के बाद भारतीय राजनीति
में अत्यंत तेजी से समाजवादी शक्तियों का विकास हुआ। रूसी साम्यवादी क्रांति की सफलता पूंजीवादी व्यवस्था के
आर्थिक शोषण से मुक्ति का पर्याय माना जाने लगा।
भारत में मजदूर एवं श्रमिक वर्ग तेजी से संगठित हुए। वे हर समय आंदोलन के लिए उद्धत
थे। सरकार ने जब इनपर दमन चक्र चलाया तो सरकार के खिलाफ यह क्रोध और बढ़ा।
5. 1925 के बाद भारत में
चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सूर्यसेन जैसे राजनेताओं ने जिस
क्रांतिकारी राजनीति को आगे बढ़ाया फिर उनका दर्दनाक अंत हुआ इससे भारतीय युवा वर्ग में एक
अजीब सी बेचैनी उत्पन्न हुई।
6. 1928 में बारदोली सत्याग्रह, 1925 के बाद सुभाष-नेहरू का
कृषक और मजदूर वर्ग के
नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरना, इंडिपेंडेंस फॉर इंडिया लिग द्वारा पूर्ण
स्वराज्य के नारे को लोकप्रिय बनाना भी वे घटक थे, जो आंदोलन के लिए उपयुक्त
माहौल तैयार किए।
7. 1929
में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। गांधीजी से प्राप्त संकेतों के आधार
पर जवाहर लाल नेहरू अध्यक्ष बनें जो एक युवा नेतृत्व के हाथों कांग्रेस की कमान सौंपने का संकेत था
और इसका असर अधिवेशन
के निर्णयों पर भी दिखा।
जब 26 जनवरी 1930
को प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस मनाने का संकल्प पारित हुआ। पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव भी पारित हुआ और
गांधी जी को सविनय अवज्ञा आंदोलन किसी भी समय आरंभ करने के लिए अधिकृत किया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की आरंभिक गतिविधियाँ, सफलताएँ एवं स्वरूप- महात्मा गांधी ने
एक सुनियोजित रणनीति के तहत सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।
इसके तहत उन्होंने पर्याप्त संयम दिखाते हुए लार्ड
इरविन के समक्ष ग्यारह सूत्री माँग 2 मार्च 1930
को रखी। जिनपर अगर वायसराय
विचार करें तो आंदोलन स्थगित भी किया जा सकता था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की मुख्य माँग -
1. सिविल सेवा और सेना के खर्च में 50 प्रतिशत की कमी हो ।
2. नशिली वस्तु के विक्रय पर
रोक लगे।
3. भारतीयों को आत्मरक्षार्थ हथियार रखने का लाइसेंस मिले।
4. सभी राजनीतिक बंदी रिहा हो ।
5. सी.आई.डी. विभाग पर
सार्वजनिक नियंत्रण हो ।
6. डाक आरक्षण बिल पास हो
7. रूपये का विनिमय दर घटाकर एक सिलिंग के चार पेंस किया
8. रक्षात्मक शुल्क लगाकर विदेशी कपड़ों का आयात नियंत्रित किया जाए।
9. तटीय यातायात तथा रक्षा विधेयक पास हो ।
10. लगान में 50 प्रतिशत की कटौती हो ।
11. नमक कर समाप्त किया जाए।
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