मृदा निर्माण प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए (JPSC,JSSC,BPSC,BSSC) exam के लिए आवश्यक

 

मृदा निर्माण प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए

मिट्टी भू-तल की पतली परत है जिसमें जैविक तथा अजैविक तत्वों की प्रधानता होती है एवं पेड़-पौधों के वृद्धि में सहायक है। यह प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जो मानव सभ्यता के विकास के लिए अति आवश्यक है।

इसकी उत्पति चट्टानों के टूटने एवं पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं के अवशेषों के मिश्रण के फलस्वरूप होता है।

मृदा निर्माण प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए

मिट्टी की उत्पति में निम्न कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है-

1.मूल पदार्थ/जनक पदार्थ : मिट्टी के निर्माण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि इसका निर्माण मूल चट्टानों के भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय के परिणाम स्वरूप होता है। इसकी संरचना रंग एवं उसकी उर्वरता पर इसका स्पष्ट प्रभाव होता है।

जिस प्रकार के चट्टानों के टूटने से मिट्टी का निर्माण होता है और उस चट्टान में जिन खनिजों की मात्रा अधिक होती है। मिट्टी में भी उसकी मात्रा अधिक होती है। इस प्रकार जनक पदार्थ की प्रकृति मिट्टी की प्रकृति तथा उसकी उर्वरता को निर्धारित करती है।

2.जलवायु : मिट्टी के निर्माण में जलवायु एक महत्वपूर्ण घटक है, इसका प्रभाव लम्बी अवधि में प्रतिलक्षीत होता है। एक ही प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र में दो विभिन्न प्रकार के जनक पदार्थ एक ही मिट्टी का निर्माण कर सकते है। उदाहरण पश्चिमी राजस्थान में बलुआ पत्थर तथा ग्रेनाईट दो भिन्न जनक पदार्थ परन्तु शुष्क जलवायु के प्रभाव में एक ही प्रकार की बलुई मिट्टी का प्रकार करती है।

जबकि एक ही प्रकार के जनक पदार्थ दो विभिन्न जलवायु प्रदेशों में दो विभिन्न प्रकार की मिट्टी का निर्माण करते है। उदाहरण ग्रेनाईट चट्टान से राजमहल की पहाड़ियों की आर्द्र जलवायु में लेटेराईट मिट्टी का निर्माण होता है। जबकि आंध्र प्रदेश की शुष्क जलवायु में चिका मिट्टी का निर्माण किया जाता है।

मिट्टी की उत्पति के  कारक


3.जैविक पदार्थ : इसके अंतर्गत वनस्पति तथा किटानुओं को सम्मिलित किया जाता है। वनस्पति तथा किटानुओं के अवशेष मिट्टी में मिलकर ह्यूमस का निर्माण करती है। जो मिट्टी की उर्वता को बढ़ाती है।

साथ-ही-साथ मिट्टी में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु धरातलीय मिट्टी को निरंतर ऊपर-नीचे करते रहते है। जिससे मिट्टी की गुणवता प्रभावित होती है। उदाहरण स्वरूप केचुआ जिसे प्राकृतिक हलधर कहा जाता है

4.स्थलाकृति : स्थलाकृति के प्रमुख घटक जैसे ऊंचाई- उच्चावच तथा ढाल मिट्टी के जमाव तथा अपरदन पर विशेष प्रभाव डालते है, जिससे मिट्टी की प्रकृति एवं प्रकार निर्धारित होती है। तेज ढाल वाले क्षेत्रों में अपरदन के विभिन्न कारकों द्वारा मिट्टी का अपरदन होता है। जिससे अवशिष्ट मृदा का निर्माण होता है।

जबकि अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में ऊँचे स्थानों से निचले भाग में अवसादों के जमाव से उत्तम गुणवता की गहरी रंग वाली मिट्टी का निर्माण होता है।

5.विकास की अवधि अथवा समय: मिट्टी के विकास की प्रक्रिया में विकास की अवधि का महत्वपूर्ण योगदान होता है, क्योंकि मिट्टी का निर्माण कार्य अत्यंत मंद होता है। अनुकुल परिस्थिति में भी 1-2 सेंटीमीटर मिट्टी की परत बनने में कई शताब्दीयाँ लग जाती है। समय बितने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता एवं गुणवता दोनों में लगातार परिवर्तन होता रहता है।

विश्व मृदा दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर वर्ष 5 दिसंबर को मनाया जाता है। दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 68वीं सामान्य सभा की बैठक में पारित संकल्प के द्वारा 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का संकल्प लिया गया था।

खाद्य और कृषि संगठन के अंतर्गत मृदा दिवस मनाया जाता है। इस साल मृदा दिवस की थीम 2021 'हॉल्ट सॉइल सैलिनाइजेशन, बूस्ट सॉइल प्रोडक्टिविटी' (मृदा लवणीकरण को रोकें, मृदा उत्पादकता को बढ़ावा दें) है।





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