एक शासक के रूप में हर्षवर्धन का मूल्यांकन कीजिए | ( JSSC और JPSC के लिए महत्वपूर्ण टॉपिक )

एक शासक के रूप में हर्षवर्धन का मूल्यांकन कीजिए | या हर्ष का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए | 

सातवीं शताब्दी में गुप्तों के पतन के बाद जिस शक्तिशाली राजवंश का उत्थान हुआ, वह वर्धन वंश था। उत्तरी भारत का एक शक्तिशाली साम्राट क रूप में हर्षवर्द्धन का उदय हुआ। जिसमें एक महान साम्राज्य निर्माता कुशल प्रशासक धर्म, साहित्य और शिक्षा के संरक्षक के सारे गुण विद्यमान थे।


सातवीं शताब्दी में गुप्तों के पतन के बाद जिस शक्तिशाली राजवंश का उत्थान हुआ, वह वर्धन वंश था। उत्तरी भारत का एक शक्तिशाली साम्राट क रूप में हर्षवर्द्धन का उदय हुआ। जिसमें एक महान साम्राज्य निर्माता कुशल प्रशासक धर्म, साहित्य और शिक्षा के संरक्षक के सारे गुण विद्यमान थे।

परंतु दरबारी कवि बाणभट्ट और चीनी यात्री व्हेनसांग के साहित्यिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि विभिन्न पारिवारिक चुनौतियों और अपने साम्राज्य को स्थापित करते हुए उसने एक महान साम्राट का गौरव प्राप्त किया।

हर्षवर्धन 606 ई. में थानेश्वर का शासक बना। हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानांतरित की। इसके साथ ही कन्नौज उत्तरी भारत की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। हर्षवर्द्धन एक महान विजेता था।

उसने सातवीं शताब्दी में अपने सैनिक अभियानों के फलस्वरूप एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। उसने असम से कश्मीर तक तथा हिमालय से विंध्याचल तक अपनी साम्राज्य का विस्तार किया। वह संपूर्ण उत्तरी भारत का स्वामी था।

डॉ. राधा कुमुंद मुखर्जी के अनुसार हर्ष के साम्राज्य के अंतर्गत सीधे नियंत्रण वाले क्षेत्र बहुत कम थे, परंतु उसके प्रभाव के अंतर्गत बड़ा क्षेत्र था। पश्चिम में जालंधर में पूर्व में आसाम तथा दक्षिण में नर्मदा नदी की घाटी एवं वल्लभी के साथ उड़िसा में गंजाम तक के क्षेत्र तथा उत्तर भारत में नेपाल और कश्मीर के प्रदेश विदित थे।

अभिलेखों एवं एहोल प्रशस्ति के अनुसार हर्ष सकलोउतरापथेश्वर (तक्षशिला से श्रावस्ती तक के क्षेत्र का मालिक) था। इसके अलावा हर्ष ने पूर्वी राज्य पंजाब के कुछ भाग पर, संपूर्ण उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और उड़िसा तक के क्षेत्रों को विजित किया था। हर्षवर्द्धन एक महान तथा सुदृढ़ प्रशासक था।

उसने एक परिसंघीय राजव्यवस्था का स्वरूप प्रस्तुत किया। राज्य की समस्त शक्ति राजा के हाथों में केंद्रित थी। सैद्धांतिक रूप से वह एक सर्वशक्तिशाली एवं निरंकुश शासक था, जिसपर कोई भी संवैधानिक प्रतिबंध नहीं था परन्तु इसके बावजूद वह प्रजावात्सल्य शासक था।

हर्ष का साम्राज्य सामंती संगठन पर आधारित था। उसके साम्राज्य में ग्रहराज्य, भोगराज्य, अधीन राज्य, अधीनमित्र सम्मिलित थे। हर्ष ने विभिन्न उपाधियाँ धारण की थी- जिसमें परमभट्टारक, महाराधिराज, सकलोउतरापथेश्वर, एकाधिराज, चक्रवर्ती, परमेश्वर आदि।

हर्षवर्द्धन में दैवीय गुणों का समावेश था तथा उसके अधीन अनेक शासक (कुमार, लोकपाल, नृपति, नरपति, सामंत, महासामंत एवं महाराजा थे) उसने एक मंत्रीपरिषद की स्थापना की थी।

जिनमें मण्डी, आवंती (युद्ध और शांति का मंत्री), सिंहनाद (सेना का प्रधान), कुंतल (घुड़सवार सेना का प्रधान) आदि सम्मिलित थे। हर्षवर्द्धन ने विभिन्न राजकीय अधिकारियों को भी नियुक्त किया था- महासंधिविग्रहक, संधि विग्रहक (युद्ध एवं शांति के कार्यों को देखनेवाला) महाबलाधिकृत, बलाधिकृत, सेनापति, वृहद, कटुक

हर्षवर्द्धन ने प्रशासन की देखभाल के लिए राजधानी में एक केंद्रीय सचिवालय एवं अभिलेखागार था। वेतन नकद और जमीन के रूप में दिया जाता था। अधिकांश पदों पर राजा की इच्छानुसार नियुक्ति तथा अनेक पद वंशानुगत भी थे। हर्षवर्द्धन एक महान सेनापति भी था।

व्हेनसांग ने इसकी सेना को चतुरंगिणी कहा जाता था। इसकी सेना चार टुकड़ियों में विभक्त थी-पैदल, घुड़सवार, रथ और हाथी। जलबेड़े का उल्लेख मधुबन और बांसखेड़ा अभिलेख में मिलता है। उसके पास सामंती सेना तथा अधीनस्थ शासकों की सेना भी थी। (उसने पूरे देश से सैनिकों को बहाल किया।

जिसमें 5000 हाथियाँ, 2000 घुड़सवारों और 50,000 पैदल सैनिकों की सेना तैयार की, परन्तु इसके बाद बढ़ाकर उसने गजसेना 60,000 तथा घुड़सवारों की संख्या 5000 कर दी। सेना में उसने महाबलाधिकृत तथा कटुक (राजसेना) को प्रधान नियुक्ति किया। हर्षवर्द्धन एक महान न्यायप्रिय शासक था।

हर्ष के साम्राज्य में शांति व्यवस्था थी, व्हेनसांग के विवरणानुसार राज्य में अपराध कम होते थे तथा अपराधियों की संख्या छोटी थी। अपराधियों को कड़ी सजाएँ दी जाती थी। इसकी जाँच हेतु अग्नि, जल, परीक्षा की व्यवस्था की गई थी।

आजीवन कारावास से लेकर अंग-भंग तक की सजाएँ दी जाती थी। विशेष अवसरों पर अपराधियों को मुक्त भी किया जाता था। सम्राट द्वारा इन अपराधियों को मुक्त भी किया जाता था। राजा के अंतर्गत महापरमात्र, परमात्री, मीमांसक, दंडिक, दंडपाशिक, दंडिवा, चौरोद्धरमिक, दुःसाध्यसाधनिक तथा चट्ट-भट्ट जैसे अधिकारी थे।

अतः राज्य में शांति सुव्यवस्था मौजूद थी। हर्षवर्द्धन एक महान आर्थिक व्यवस्था का सुधारक भी था। राज्य को विभिन्न स्रोतों से आय होती थी। सबसे अधिक आमदनी का स्रोत जमीन था। उससे विभिन्न प्रकार के कर वसूला जाता था।

जिनमें उद्रंग, उपरिकर, धान्य और हिरण्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। प्रमुख कर था- तुल्यमेय, भाग, भोग, भूत प्रत्तय इत्यादि। भौगिक कर वसूलने वाला तथा पुस्तपाल जमीन का हिसाब रखने वाला पदाधिकारी था। उपज का 1/6 भाग राजस्व के रूप में किसानों से वसूला जाता था।

वनपाल (वनों की सुरक्षा) नियुक्त किए थे। व्हेनसांग के मतानुसार राजकीय आय सरकारी तथा आर्थिक कार्यों, सार्वजनिक अधिकारियों और विद्वानों को सहायता एवं पुरस्कार देने तथा दान-पुण्य की मदों पर व्यय होती थी। हर्षवर्द्धन एक महान जनकल्याण प्रिय शासक था।

व्हेनसांग हर्ष के प्रशासन की प्रशंसा की तथा कहा है कि-"सरकारी माँगे कम थी।" उसने चैत्यों, बिहारों तथा मंदिरों और सरायों का निर्माण करवाया। शिक्षा और साहित्य में गहरी रूचि थी। नालंदा विश्वविद्यालय भी उसके दांन से लाभान्वित था। हर्षवर्द्धन एक महान धर्मनिरपेक्ष एवं धर्मसहिष्णु शासक था।





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