आदिवासी आन्दोलन में मुण्डा विद्रोह का महत्व (JSSC,JPSC MAINS के लिए अति आवश्यक टॉपिक )


आदिवासी आन्दोलन में मुण्डा विद्रोह का महत्व

आदिवासी आन्दोलन में मुण्डा विद्रोह का महत्व



बिरसा मुण्डा विद्रोह को उलगुलान के नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजों तथा बाहरी लोगों जिन्हें दिकू कहा जाता था, ने इन क्षेत्रों में आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक हस्तक्षेप किया। जिससे विद्रोह की भावनाएं लोगों में जगीं।

प्रारंभ में यह विद्रोह न होकर एक समाजवादी सुधारवादी आन्दोलन था। जो अंग्रेजों के कुचलने की नीति के कारण एक विद्रोह के रूप में बदल गया। मुण्डा विद्रोह एक सशक्त एवं विस्तृत विद्रोह था। इस विद्रोह का करिश्माई नेतृत्व बिरसा मुण्डा कर रहे थे।

इस विद्रोह के निम्नलिखित कारण थे -

इन क्षेत्रों में खूँटकट्टी भूमि व्यवस्था थी। इस व्यवस्था में भूमि का स्वामित्व सामूहिक होता था। अंग्रेजों की नीति ने इस व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास किया। भूमि बंदोबस्त व्यवस्था के तहत मुंडाओं की जमीन का हस्तांतरण गैर आदिवासियों को किया जाने लगा।

जिससे मुंडाओं की आर्थिक स्थिति दयनीय होती गई। मुण्डाओं की स्थिति दयनीय होने के कारण सेठ-साहूकार, महाजनों से ऋण लेते थे एवं उनके ऊपज से काफी अधिक ब्याज अदा करना पड़ता था। जिससे इनकी स्थिति और बदतर होती गई। साहूकार एवं महाजनों को जब ये ब्याज अदा नहीं कर पाते थे, तब जबरन उनकी जमीन पर अधिकार कर लिया जाता था।

जिसमें सरकारी अधिकारी भी सहयोग करते थे | बाहरी लोगों के आगमन से मुण्डाओं की सामाजिक व्यवस्था प्रभावित होने लगी। ये प्रकृति पूजक थे। परंतु बाहरी लोगों के हस्तक्षेप से उनमें बाधा होने लगी। मुण्डाओं की सांस्कृतिक व्यवस्था भी बाहरी लोगों के आगमन से बुरी तरह प्रभावित होने लगा।

इनकी सामाजिक व्यवस्था में शराबखोरी व्यवस्था व्याप्त थी, जिससे इनकी स्थिति दयनीय होती गई। फलतः बिरसा मुण्डा के नेतृत्व में 1890 के दशक के शुरुआती दौर में सामाजिक एवं धार्मिक सुधारवादी आंदोलन शुरू हुआ। बिरसा मुण्डा का बचपन मिशनरियों से प्रभावित था, बाद में वे वैष्णव धर्म से प्रभावित हुए। इनके धार्मिक गुरू आनंद पॉड़ थे। इन्होंने एक नया धर्म बिरसाइत के नाम से चलाया।

इन्होंने कहा कि इनके देवता सिंग बोंगा के दर्शन हुए हैं तथा वे उनके दूत हैं। 

इनके उपदेश में तीन महत्वपूर्ण बातें थीं।

1. आत्म सुधार

2. आचरण में शुद्धता

3. एकेश्वरवाद

इसके तहत इन्होंने शराब पीने का विरोध किया। साथ ही साथ ये चिकित्सीय औषधियों का लाभ अपने अनुयायियों को देते थे। जिससे इनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। ये मिशनरियों के द्वारा धर्मान्तरण के कटर विरोधी थे।

बिरसा के प्रभाव को देखकर अंग्रेजों को विद्रोह होने की संभावना नजर आने लगी। फलतः अग्रेजों ने 1895 में 21/½ वर्षों के लिए जेल भेज दिया। 1897 में विक्टोरिया के हीरक जयंती के उपलक्ष्य में इन्हें कैद से मुक्त किया गया। जिसके बाद ये सशक्त विद्रोही बनकर उभरे। इन्होंने डोम्बारी, सीम्बिया तथा अन्य स्थानों में सभाएं की।

इनके सहयोगियों में 'गया मुण्डा' प्रमुख थे। मुण्डा विद्रोहियों ने राँची खूंटी, बसिया, तोरपा, बुंडू, तमाड़ इत्यादि क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था को ठप्प कर दिया। इनका मुख्य निशाना अंग्रेजों के सरकारी कार्यालय, थाना तथा साहूकार-महाजन थे। परंतु बाहरी लोगों में निम्न मध्यवर्गीय लोगों को कभी इन्होंने निशाना नहीं बनाया।

परंतु राँची उपायुक्त स्ट्रीट फील्ड के आदेश से अंग्रेजों ने शक्ति से मुंडा विद्रोहियों को कुचल दिया तथा जून 1900 में बिरसा मुण्डा को कैद कर लिया। जिनकी मृत्यु जेल में ही हो गई। मुण्डा विद्रोह एक सुसंगठित सशक्त विद्रोह था।

इस विद्रोह के निम्नलिखित परिणाम हुए -

(i) आयुक्तफोबर्स के आदेश से इन क्षेत्रों में भूमि सर्वेक्षण कराया गया। छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 में अपनाया गया। इस अधिनियम के तहत आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों में हस्तान्तरण करना गैर कानूनी घोषित किया गया।

(ii) खूँटकट्टी व्यवस्था को मान्यता प्रदान की गई।

(iii)अंग्रेजों ने प्रशासनिक सुविधा के लिए 1902 में खूंटी एवं गुमला अनुमंडल बनाये।

(iv)इस विद्रोह के उपरांत मुंडाओं में व्याप्त नशा के आदत पर एक हद तक नियंत्रण पाया जा सका। जिससे सामाजिक व्यवस्था सुदृढ़ हुई।

(v)इस विद्रोह में बिरसा मुण्डा के करिश्माई नेतृत्व ने अन्य विद्रोहों के लिए एक प्रेरणा रखी।








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