वर्साय की संधि अपमानजनक थी (history)

 

"वर्साय की सन्धि में आरम्भ से ही नैतिक मान्यता का अभाव था।"

varsay ki sandhi ka photo

वर्साय की सन्धि जर्मनी के साथ की गई थी। मित्र राष्ट्रों द्वारा की गई सभी सन्धियों में यह महत्त्वपूर्ण थी। जर्मनी पर इस सन्धि को स्वीकार करने हेतु दो सप्ताह का समय दिया गया। जर्मनी की आम-जनता, अखबार और राजनीतिज्ञ सन्धि की शर्तों से असन्तुष्ट थे।

क्योंकि यह सन्धि कठोर एवं प्रतिशोधात्मक सन्धि थी। इस सन्धि में नैतिक मान्यताओं का अभाव था जिसका परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत था। जर्मनी पर यह सन्धि लाद दी गई थी, प्रादेशिक क्षति, निःशस्त्रीकरण और आर्थिक उपबन्धों का फल उसे ही भुगतना पड़ा।

इसके परिणामस्वरूप जर्मनी की सार्वभौमिकता विजयी राष्ट्रों के हाथ में चली गई। वर्साय की सन्धि को आरोपित सन्धि' की संज्ञा दी जाती है जिसको स्वीकार करने के अलावा जर्मनी के पास कोई चारा नहीं था। वर्साय की सन्धि द्वारा जर्मनी को छिन्न-भिन्न कर दिया गया था, उसके उपनिवेशों को छीन लिया गया, आर्थिक रूप से उसे पंगु बना दिया गया, उसके आर्थिक संसाधनों पर दूसरे राष्ट्रों का स्वामित्व स्थापित कर दिया गया तथा सैनिक दृष्टि से उसे अपंग बना दिया गया।

यह कठोर सन्धि किसी स्वाभिमानी राष्ट्र के लिए मान्य नहीं हो सकती थी। इस सन्धि की शर्तों से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये प्रतिशोधात्मक सन्धि थी फ्रांस की जनता जर्मनी को कुचलने की माँग कर रही थी। जर्मनी पर जिस प्रकार कठोर शर्तों को लाद दिया गया, उनसे इंग्लैण्ड और फ्रांस की प्रतिशोधात्मक प्रवृत्ति का आभास मिलता है।

 जर्मनी का एल्सास-लोरेन प्रान्त फ्रांस को दे दिया गया। राइनलैण्ड को तीन भागों में विभक्त कर दिया गया जहाँ मित्र राष्ट्रों की सेनाएँ तैनात रहेंगी तथा जर्मनी किसी प्रकार की किलेबन्दी नहीं कर सकता था। सारे प्रदेश की व्यवस्था की जिम्मेदारी राष्ट्र संघ को सौंपी गई तथा उसकी खानों को फ्रांस के जिम्मे कर दिया गया। जर्मनी की पूर्वीय सीमा डेन्जिंग पर UN का अधिकार स्थापित करके सीमित किया गया।

सैनिक रूप से तीन से अधिकतम एक लाख सेना रखने की इजाजत दी गई। जर्मन सैनिक कार्यालय समाप्त कर दिया गया। ऐसे अनेकों सैनिक प्रतिबन्ध लगाये गए। उसे आर्थिक क्षतिपूर्ति के तौर पर पाँच अरब डॉलर देने की शर्त लाद दी गई। कुल मिलाकर इस सन्धि में आरम्भ से ही नैतिक मान्यताओं का अभाव था।

कोर्ट भी स्वाभिमानी राष्ट्र एक लम्बे समय तक ऐसी सन्धियों को बर्दाश्त नहीं कर सकता था। जर्मनी जैसे स्वाभिमानी राष्ट्र के लिए इस तरह की आरोपित सन्धि बाध्य नहीं हो सकती थी। इसलिए यह स्वाभाविक था भविष्य में युद्ध द्वारा इसका प्रतिशोध लेने का प्रयत्न करें।

इसी का परिणाम रहा कि सन्धि के 21 वर्ष बाद ही जर्मनी इसके उपबन्धित समझौतों को तोड़कर (जैसे पोलिश तथा डेन्जिंग गलियारों को) पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया तो द्वितीय विश्व युद्ध का बीजारोपण हो गया और सम्पूर्ण मानवता एक बार पुन: महाविनाश की ओर अग्रसर हुई।





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