भारत में आधुनिक शिक्षा के विकास के लिए किए गए अंग्रेजी प्रयास | British efforts made for the development of modern education in India
भारत में आधुनिक शिक्षा के विकास के लिए किए गए अंग्रेजी प्रयास
19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारतीय शिक्षा व्यवस्था निजी संगठनों या मन्दिरों, मदरसों द्वारा संचालित होती थी। इस समय की प्राथमिक शिक्षा मुख्यतः व्यावहारिक थी और उच्च शिक्षा प्रधानत: दार्शनिक, साहित्यिक एवं धार्मिक थी। अतः भारत में प्रारम्भिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं तर्कवाद का अभाव था।
1813 ई० तक कम्पनी शासन भारत में प्रभावी हो चुका था। ऐसे में प्रशासनिक कार्यों के सुगम संचालन हेतु सहयोगी वर्गों की आवश्यकता थी इसलिए शिक्षा विस्तार की नीति अपनाई गई। लेकिन इसके मूल में औपनिवेशिक चरित्र विद्यमान था।
प्रारम्भ में सरकारी तौर पर कम्पनी ने शिक्षा के प्रसार के लिए प्रयास नहीं किये, परन्तु इस समय की कुछ उदार और विवेकशील अंग्रेजों और ईसाई मिशनरियों ने इस दिशा में प्रयास किये। वारेन हेस्टिंग्स ने अपने प्रयासों में 1781 ई० में कलकत्ता मदरसा की स्थापना की, जिसमें अरबी और फारसी की शिक्षा दी जाती थी।
इसी के सहयोग से सर विलियम जोन्स ने 1784 ई० में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना की जिसने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए। इसी प्रकार जोनाथन डंकन ने संस्कृत कॉलेज और लॉर्ड वेलेजली ने 1800 ई० में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की।
इन व्यक्तिगत और निजी संस्थाओं द्वारा किये गए शैक्षणिक प्रयासों के बाद कम्पनी ने भी ब्रिटिश हितों की सुरक्षा लिए भारतीयों के एक शिक्षित वर्ग को तैयार करना प्रारम्भ किया जो, पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का समर्थक हो। फलस्वरूप, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ग्राण्ट और ब्लिवर फोर्स ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार पर बल दिया।
1811 में लॉर्ड मिण्टो ने लैन्सडाउन, हैवेड और कोलब्रुक के साथ मिलकर शिक्षा पर एक घोषणा निकाली, जिसमें भारत में शिक्षा की बुरी अवस्था पर दुःख प्रकट किया तथा इस अवस्था में सुधार लाने के उपाय सुझाए।
इन्हीं प्रयासों का परिणाम था कि 1813 ई० में चार्टर द्वारा सर्वप्रथम कम्पनी के संचालकों ने भारतीयों को शिक्षित करने का उत्तरदायित्व ग्रहण किया। इसके द्वारा गवर्नर जनरल को एक लाख रुपये प्रतिवर्ष शिक्षा व्यय हेतु प्राप्त हुए। यह राशि साहित्य के पुनरुद्धार और उन्नति के लिए और भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहन देने के लिए और अंग्रेजी के प्रदेशों के वासियों मे विज्ञान के आरम्भ और उन्नति के लिए खर्च किया जाना था।
परन्तु यह सुनिश्चित न हो सका इस स्वीकृत राशि को किस प्रकार की शिक्षा के विकास पर खर्च किया जाए। पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति के समर्थकों और प्रबुद्ध भारतीयों का यह विचार था कि, भारतीयों को पश्चिमी ढंग की आधुनिक शिक्षा अंग्रेजी भाषा के माध्यम से दी जाए। जबकि प्राच्यवादी, प्राच्य भाषा और शिक्षा को ही विकसित करना चाहते थे।
लॉर्ड मैकाले अंग्रेजी शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य की आलोचना करते हुए आंग्ल भाषा एवं साहित्य की प्रशंसा की। उनका कहना था कि, “यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की अलमारी भारत और अरब साहित्य से मूल्यवान है।" उन्होंने इस तथ्य पर पर्याप्त बल दिया कि, “हमें ऐसा वर्ग बनाना चाहिए, जो हमारे और उन करोड़ों लोगों के बीच जिन पर हम शासन करते हैं, दुभाषिए का काम कर सकें; यह उन लोगों का वर्ग हो जो रक्त और रंग से भारतीय मगर रुचि, विचारों, आचरण तथा बुद्धि से अंग्रेज हों।”
वस्तुतः वे शिक्षा के निष्यन्दन सिद्धान्त के समर्थक थे। लॉर्ड बैंटिंक ने मैकाले की योजना स्वीकार कर अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम स्वीकार कर लिया और 1844 ई० में इस बात की भी घोषणा की गई कि, सार्वजनिक सेवाओं में केवल अंग्रेजी भाषी योग्यताधारियों को ही नौकरी प्राप्त होगी। इस प्रकार अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार तीव्रता से होने लगा।
कम्पनी के प्रारम्भिक प्रयासों को लोकोन्मुखी प्रयास नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यह नीति वर्ग विशेष की संरक्षण नीति से सम्बन्धित थी। इस नीति के विस्तार से शिक्षा के अधोमुखी निष्यन्दन सिद्धान्त का जन्म हुआ जिसने भारतीयों को शिक्षा के उच्च स्तर से पृथक कर उन्हें सीमित शिक्षा के साथ ही सम्बद्ध रखा।
साथ ही स्त्री शिक्षा के समर्थन के प्रयास अवश्य किये गए परन्तु उनका प्रयास और प्रवाह उतना तीव्र न था जिससे शिक्षा का लोकव्यापीकरण स्थापित हो सके। अतः इन प्रयासों को सार्थक पहल अवश्य कहा जा सकता है परन्तु लोकोन्मुखी नहीं।
1854 ई० का वुड डिस्पैच
(a) सरकार पाश्चात्य शिक्षा, कल्प, दर्शन, विज्ञान और साहित्य का
प्रसार करे।
(b) उच्च शिक्षा का माध्यम
अंग्रेजी हो, परन्तु देशी
भाषाओं को भी प्रोत्साहित किया जाए।
(c) ग्रामों में देशी भाषा के विकास के लिए प्राथमिक पाठशालाएँ, उनके ऊपर एंग्लो
वर्नाक्यूलर हाईस्कूल और कॉलेज खोले जाएं।
(d) अध्यापकों के प्रशिक्षण
के लिए अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाएं स्थापित की जाएँ।
(e) व्यावसायिक एवं प्रावधिक
शिक्षा पर बल दिया जाए।
(f) स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाए।
(g) निजी शैक्षणिक संस्थाओं
को अनुदान दिये जाएँ।
(h) तीनो प्रेसीडेन्सी नगरो
मे सन्दन विश्वविद्यालय के आधार पर विश्वविद्यालय
खोले जाएँ।
(i) शिक्षा के प्रशासन के लिए
एक अलग विभाग की स्थापना की जाए |
इस आधार पर सरकार द्वारा विभिन्न प्रान्तों में शिक्षा-निदेशक बहाल किये गए एवं सहयोग के लिए इन्सपेक्टरों को नियुक्ति की गई। बम्बई, कलकत्ता और मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित किये गए एवं निजी संस्थाओं को अनुदान दिये गए।
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