Prachin bharat notes in hindi pdf free download (प्राचीन भारत नोट्स हिंदी में पीडीएफ फ्री डाउनलोड )

 

Prachin bharat notes in hindi



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भारत के प्राचीन ऐतिहासिक स्थल


अमरावती- आन्ध्र प्रदेश में विजयवाड़ा नगर के समीप कृष्णा नदी के किनारे स्थित है। यह उस स्तूप के लिए प्रसिद्ध है जो सन् 200 ई० में, सातवाहन काल के उत्तरार्द्ध में बनाया गया। यह साँची स्तूप से बड़ा है तथा इसको नक्काशीदार पट्टी से सजाया गया है जिस पर जातक या बुद्ध के जीवन की कहानियाँ अंकित हैं।

अरिकमेडु- अरिकमेडु पाण्डिचेरी के समीप पूर्व तट पर अवस्थित है जो 'पोडका' के नाम से जाना जाता था। संगम काल में यह प्रसिद्ध बन्दरगाह था। अरिकमेड की खुदाई यह प्रमाणित करती है कि प्राचीन काल में रोम के भारत के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे। यहाँ पर रोम के सोने का  सिक्कों का भण्डार भी मिला है।

अहिच्छत्रयह उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में अवस्थित है। अहिच्छत्र का महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह उत्तरी भारत के महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग में अवस्थित था। प्रसिद्ध बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने भी इस शहर की यात्रा सातवीं शताब्दी में की थी।

अनुपा- नर्मदा घटी में अवस्थित शकों और सातवाहनों के बीच झगड़े का मुख्य कारण था | यदपि प्रारम्भ में यह सातवाहनो के अधिकार क्षेत्र में था, जिसका शकों ने अतिक्रमण कर लिया। महान् सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी ने अनुपा के शकों से वापस पुनः अपने अधिकार क्षेत्र में लिया।

अजन्ता-महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। यहाँ दूसरी सदी से 6ठी तथा 7वीं सदी के मध्य निर्मित बौद्ध गुफाए हैं। इसमें बुद्ध से सम्बन्धित जीवनगाथा और शिक्षाओं का चित्रण है।

अयोध्या-फैजाबाद (उ०प्र०) में सरयू नदी के किनारे स्थित है। 6ठी सदी ईसा पूर्व में महाजनपद कोशल की राजधानी थी। राम की राजधानी, जैन तीर्थंकरों की जन्मस्थली भी थी। यहाँ से धनदेव का स्तम्भ लेख प्राप्त हुआ है।

अपसढ़-बिहार के गया जिले में स्थित। उत्तर गुप्त राजा आदित्यसेन का एक तिथिहीन अभिलेख यहाँ प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख के अनुसार उस राजा ने भगवान विष्णु के सम्मान में एक मन्दिर का निर्माण कराया और उसकी माता ने धार्मिक लोगों के लिए एक मठ बनवाया।

अतरंजीखेड़ा यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एटा जिले में है। यह स्थल आबादी की विचित्र निरन्तरता उद्घाटित करता है जिसकी शुरूआत गैरिक मृद्भाण्ड काल (ईसा पूर्व करीब 1500) से होती है और अन्त मध्यकाल में जाकर होता है। 

लौह-चूने के पिण्ड के साथ-साथ यह लौह भट्टियों के अवशेष की प्राप्ति एक पूर्ण विकसित लौह उद्योग के अस्तित्व का संकेत देते हैं। उत्तरी काले पालिशदार मृद्भाण्ड काल (ईसा पूर्व छठी से दूसरी सदी) में लौह औजारों और उपकरणों जैसे हँसिया, कुदाल, हल आदि का प्रयोग स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

आलमगीरपुर-यह मेरठ स्थित हड़प्पा संस्कृति की पूर्वी सीमा में स्थित है। यहाँ से छिद्रित मर्तबान, धानीदार तश्तरी, मनका, चूड़ियाँ, ज्यामितीय आकृति वाले मृद्भाण्ड प्राप्त हुए हैं।चित्रित धूसर मृद्भाण्ड की ताम्र व लौह वस्तुएँ तथा दूसरी तथा तीसरी ईसा पूर्व का आहत सिक्का भी प्राप्त हुआ है।

इन्द्रप्रस्थ इसका आधुनिक नाम दिल्ली है। यह यमुना नदी के तट पर अवस्थित है।महाभारत के अनुसार इस नगर की स्थापना पाण्डवों ने की और इसे अपनी राजधानी बनाया। यह दिल्ली सल्तनत,मुगलों और अंग्रेजों की भी राजधानी रही और अन्ततोगत्वा यह स्वतन्त्र भारत की राजधानी बनी।

इनामगाँव यह महाराष्ट्र के पुणे जिलान्तर्गत अवस्थित है। यह एक महत्त्वपूर्ण ताम्रपाषाण क्षेत्र है। प्रारम्भिक ताम्रपाषाण काल में यहाँ बड़े-बड़े मिट्टी के बने घर थे। बाद के समय में बड़े-बड़े मकान के प्रमाण मिले जो यह दर्शाते हैं, कि परिवार बड़े थे तथा अधिवास चारों तरफ फैल चुका था।

उज्जैन- मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी के किनारे स्थित, यह अवन्ति की राजधानी थी, जो कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी के महाजनपदों में से एक थी और मगध शक्ति के विकास के कारण, मगध साम्राज्य के अन्तर्गत आ गई। 

उज्जैन, मौर्य के राज्यों की राजधानियों में से एक था तथा अशोक यहाँ का गवर्नर था। यहाँ राजा विक्रमादित्य ईसा पूर्व 58 में शकों को हराने के बाद विक्रम संवत् की शुरूआत की। प्राचीन समय में उज्जैन संस्कृत शिक्षा का केन्द्र था तथा प्रसिद्ध व्यापारिक के लिए जाना जाता था।

उरईयुर-तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली में कावेरी नदी के तट पर स्थित है। यह संगम काल में चोल राजा की राजधानी था, परन्तु तीसरी शताब्दी तक इसका पतन होने लगा। यह प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था तथा मुख्यतः सूती वस्त्रों के लिए जाना जाता था |




उत्तरमेरुरयह तमिलनाडु में अवस्थित एक छोटा-सा गाँव है। यहाँ मन्दिर के ग्रेनाइट पत्थरों पर लेख खुदे हैं जो शिव को समर्पित हैं। यह लेख चोल ग्राम प्रशासन विशेषतः 'सभा' (ब्राह्मणों के गाँव की सभा) के कार्यकलापों पर प्रकाश डालते हैं। यह लेख दर्शाते हैं कि चोल ग्रामों को स्थानीय प्रशासन से सम्बन्धित बहुत स्वायत्तता दी गई थी।

उदयगिरि उदयगिरि मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में बेसनगर के निकट स्थित है।इसमें शिव और विष्णु को समर्पित ब्राह्मण शिला-कट मन्दिरों के प्राचीनतम उदाहरण हैं। उनकी कुल संख्या नौ है और गुप्त संवत् 82/401 ई० के एक अभिलेख के आधार पर उन्हें चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल का माना जाता है।

ये गुफाएं अंशत: शिला-कट और अंशत: पत्थर-निर्मित हैं। मन्दिर के पुराभाग पर वाराह-अवतार की एक विशाल मूर्ति उत्कीर्ण है जो अपनी शैली और निष्पादन दोनों ही में उल्लेखनीय है।

एहोलयह कर्नाटक के बीजापुर में स्थित है। यह पश्चिमी चालुक्यों की राजधानी था। यह दक्षिणी शैली की कोण्टीगुडा वर्ग के मन्दिर जैसे लद्दाखन, मेगुती और दुर्गा मन्दिर भी यहाँ के मन्दिरों में शामिल हैं। सन् 634-350 में पुलकेशिन द्वितीय के राज-कवि रविकीर्ति द्वारा रचित यहाँ की प्रशस्ति, पुलकेशिन द्वितीय द्वारा पड़ोसी राज्यों के शोषण का वर्णन करती है।

एलोरा यह महाराष्ट्र में स्थित है। ईसाई युग के प्रारम्भिक काल में यह बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। एलोरा,द्वितीय और आठवीं शताब्दी के बीच खुदाई में प्राप्त पहाड़ों को काट कर बनाई गई गुफा मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर पाये गए सबसे प्रसिद्ध कैलाशनाथ मन्दिर, जिसकी खुदाई, राष्ट्रकूट राजा कृष्ण (758 ई० -773 ई०) द्वारा की गई।

एलिफैण्टा यह मुम्बई का एक छोटा-सा द्वीप है। प्राचीन काल में यह घासपुरी के नाम से जाना जाता था। एलिफैण्टा की मूर्तिकला में शिव का अर्द्धनारीश्वर रूप, त्रिमूर्ति रूप तथा शिव और पार्वती की मूर्तियाँ शामिल हैं।एलिफैण्टा की गुफाओं में बुद्ध की मूर्तियों के साथ-साथ ब्राह्मणों के भगवान की भी मूर्तियाँ हैं।

एरण / ऐरिकिना- गुप्त और हूण अभिलेखों में ऐरिकिना के नाम से पाए जाने वाला एरण मध्य प्रदेश के सागर जिले में है। यहाँ हुए उत्खननों से यद्यपि यह पता चलता है कि यहाँ पर ताम्रपाषाण काल से ही आबादी थी किन्तु ईसा पूर्व 300 के करीब ही यह एक महत्त्वपूर्ण स्थान के रूप में उदित हुआ प्रतीत होता है।

एरण भारत में सती का प्राचीनतम अभिलेखात्मक प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए भी उल्लेखनीय है। एरण कला और धर्म का भी एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। तोरमाण के समय का एक अभिलेख (आरम्भिक छठी सदी ई०) एक स्थानीय सरदार धन्यविष्णु द्वारा विष्णु के वराह रूप को समर्पित एक पाषाण मन्दिर के निर्माण की चर्चा करता है।

 






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