free jpsc mains exam notes geography impact of liberalisation on indian agriculture in hindi pdf download पेपर 3 भूगोल टॉपिक (उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय कृषि )

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उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय कृषि महत्त्वपूर्ण प्रवृत्तियाँ उभर कर आयी हैं |

(What important trends have been emerged in Indian Agriculture as a result of liberalisation?)


उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय कृषि में निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ उभर कर आयी हैं-

• कृषि का परंपरागत स्वरूप आधुनिकीकृत होता जा रहा है। नई तकनीको का प्रयोग बढ़ा है । आधुनिक मशीनों के प्रयोग से जहाँ एक ओर उत्पादन उत्पादकता एवं रोजगार में निरन्तर वृद्धि हुई है वहीं कई क्षेत्रों में कृषि मशीनरी के अत्यधिक प्रयोग से श्रम प्रयोग से श्रम का विस्थापन भी हुआ है ।

 आधुनिक तकनीकों मशीनों उन क्षेत्रों और बड़े किसानों को सबसे अधिक लाभ मिलता है जो पहले से साधन संपन्न रहे हैं फलतः भौगोलिक सह सामाजिक विषमता में वृद्धि हुई है।

कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग विशेष रूप से उल्लेखनीय है । ट्रांसजेनिक कृषि को प्रोत्साहन मिल रहा है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादित टर्मिनेटर एवं वार्मिनेटर बीज के प्रयोग भी होने लगे हैं। कुछ वर्ष पूर्व बी. टी. कॉटन के कुछ श्रेणियों को भारत में उपयोग की अनुमति दी गई है । 

जैव प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कृषि कार्य की गुणवत्ता में गुणात्मक परिवर्तन आने की विशाल संभावनाएँ हैं लेकिन इसके लिए यह आवश्यक है। कि अपने देश की भौगोलिक जलवाभविक दशाओं के अनुरूप अनुसंधान व विकास को प्रोत्साहन दिया जाय । जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक के प्रयोग भी बढ़े हैं|

नयी-नयी कृषि तकनीकों का भारत में आगमन हो रहा है । कृषि इंजीनियरिंग का महत्त्व बढ़ा है। कई फसलों का एक साथ बोने की ड्रील मशीन, धान की कटाई के बाद बिना जुताई के गेहूँ बोने की ड्रील मशीन, धान, गेहूँ, मूँगफली आदि के थ्रेसिंग के लिए छोटे एवं हल्के चलंत थ्रेसर मशीनों का प्रयोग हो रहे है। 


पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना एवं कृषि इंजीनियरिंग संस्थान ने ऐसे ट्रेक्टरों का विकास किया है जो एक साथ कई फसलों की बुआई में सक्षम है।

उदारीकरण के परिणामस्वरूप प्रतिस्पर्द्धा बढ़ी है। निजीकरण का प्रभाव कृषि क्षेत्र पर भी पड़ा है। अब बड़े निवेश को कृषि क्षेत्र में भी आमंत्रित किया जा रहा है। 

नई कृषि नीति में इस पर बल दिया गया है। निवेश की मात्रा में वृद्धि के लिए सरकार कृषि को उद्योग का दर्जा देने की माँग पर भी विचार कर रही है। उदारीकरण के परिणामस्वरूप कृषि एवं इनसे संबंधित उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है साथ ही आयात भी बढ़ा है।

कृषि-निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कृषि-निर्यात क्षेत्रों की स्थापना की गई है।

निर्यातकों को खाद्यान्न निर्यात के संबंध में सब्सिडी भी दी जाती है। विदेशी-व्यापार नीति में विशेष कृषि उपज योजना को प्रारंभ किया गया| जिसका उद्देश्य फल, शब्जी, फूल, लघु वनोत्पाद, डेयरी, कुक्कुट आदि उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देना है ।

WTO के समझौते के तहत कृषि-सब्सिडी को कम करने के प्रयास तथा नकदी फसलों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है। (उदारीकरण ने कृषि और उद्योगों के परस्पर संबंध को और मजबूत बना दियाँ है।) WTO समझौते के बाद कृषि उत्पादों का पेटेंट भी महत्त्वपूर्ण हो गया । 

उदारीकरण को अपनाने वाला हर देश इन उत्पादों का इस्तेमाल तभी कर सकता है जब वह पेटेंट धारण करने वाले देश को उसकी कीमत चुकाए । इस कारण पेटेंट संरक्षत हो गए, इनकी चोरी संभव नहीं रही ।

अमेरिकी कम्पनियों द्वारा हल्दी, नीम, बैगन,बासमती चावल आदि का चुपके से कराया गया पेटेंट भारत सरकार को मिल गया है। ऐसे कई वनस्पति-उत्पाद जिनका उद्गम भारत को माना जाता है। उसके पेटेंट लाभ भारत के प्राप्त होंगे। इस कारण भारत द्वारा कृषि-उत्पादों के पेटेंट को संरक्षित करने पर ध्यान दिया जा रहा है।

उदारीकरण ने व्यापार के लिए कृषि करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। बाजार-प्रेरणा काफी सक्रिय है। मशीन, नकदी फसल की कृषि के कारण ऋण की माँग बढ़ी है ।

कृषि में सार्वजनिक निवेश की कमी, नकदो फसलों के उत्पादन, असंगठित क्षेत्र के ऋणदाताओं पर निर्भरता, संयुक्त परिवार प्रणाली के टूटने आदि के कारण किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ी है।

• सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का भाग कम हुआ

कृषिगत रोजगार में कमी ।

 खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित हो रही है ।

कृषकों का रुझान कृषि की ओर कम हुआ |संविदा कृषि की प्रवृत्ति बढ़ रही है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ कृषकों से अनुबंध कर अपने शर्तों के अधीन फसल बोने को प्रोत्साहित कर रही हैं।

गन्ना, जटरोफा आदि की कृषि जैव ईंधन के लिए ।

कृषि का विविधीकरण ।

 

खेती के प्रकार एवं प्रणालियाँ (TYPES AND SYSTEMS OF FARMING)

भारत में खेती के प्रकार से अभिप्राय, भूमि के उपयोग, फसलों व पशुधन के उत्पादन का आकार और कृषि क्रियाओं व रीतियों से लगाया जाता है।

खेती के पाँच प्रकार एवं उनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।-

विशिष्ट खेती (Specialised Farming)- विशिष्ट खेती के अन्तर्गत केवल एक ही फसल या उद्यम का उत्पादन बाजार के लिए किया जाता है और किसान अपने आय के लिए केवल उसी एक उद्यम पर निर्भर रहता है। अर्थात् विशिष्ट खेती से अभिप्राय उन जोतों से है जो अपनी कुल आय का कम से कम 50% किसी एक उद्यम अथवा फसल से प्राप्त करें । जैसे- चाय, कहवा, गन्ना, रबर आदि के फार्म ।

बहुप्रकारीय खेती (Diversified Farming)- बहुप्रकारीय खेती से अभिप्राय उस प्रकार की जोतों या फार्मों से है जिन पर आमदनी के स्रोत कई उद्यमों या फसलों पर निर्भर करते हैं और प्रत्येक उद्यम अथवा फसल से जोत की कुल आमदनी का 50% से कम ही भाग प्राप्त होता है। अर्थात् जिस फार्म पर कुल आमदनी के कई स्रोत हों तथा प्रत्येक स्त्रोत से कुल आमदनी का 50% या इससे अधिक न मिलता हो उसे बहुप्रकारीय खेती कहते हैं। ऐसे फार्म को विविध फार्म (General Farm) भी कहते हैं।

मिश्रित खेती (Mixed Farming)- मिश्रित खेती के अन्तर्गत फसलों के उत्पादन के साथ-साथ -पशुपालन या डेरी उद्योग भी किया जाता है । भारतवर्ष में कृषि के साथ पशु वर्ग जुड़ा है, क्योंकि पशु खेतों में शक्ति के मुख्य स्रोत के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं। दूध देने वाली गाय व भैंस प्राय: प्रत्येक किसान के पास होती है। भारत जैसे देश में जहाँ खेती में मशीनों का प्रयोग कम किया जाता है। मिश्रित खेती एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह एक प्रकार की बहुप्रकारीय खेती हैं, जिसमें पशुपालन व फसल उत्पादन एक पर पूर्णतया निर्भर रहते हैं। ऐसी खेती के अन्तर्गत सहायक उद्यम का कुल आय में कम से कम 10% की हिस्सेदारी होती है | सहायक उद्यम उप-पदार्थों (bye-product) का उपभोग करता है।

शुष्क खेती : समस्या एवं समाधान- ऐसी भूमि में जहाँ वार्षिक वर्षा 20 इंच अथवा इससे कम हो, वहाँ बिना किसी सिंचाई साधन के उपयोगी फसलों के आर्थिक उत्पादन को शुष्क खेती कहते हैं। शुष्क खेती के क्षेत्रों में फसल उत्पादन के लिए भूमि में वर्षा के पानी की अधिक से अधिक मात्रा को सुरक्षित रखा जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शुष्क खेती उत्पादन की वह सुधरी प्रणाली है जिसमें किसी निश्चित भूमि पर पानी की अधिकतम मान्ना को सुरक्षित रखकर भरपूर उत्पादन किया जाता है।

रैंचिग खेती (Ranching Farming)- इस प्रकार की खेती में भूमि की जुताई, बुआई गुड़ाई आदि नहीं की जाती और न ही फसलों का उत्पादन किया जाता है, बल्कि प्राकृतिक बनस्पति पर विभिन्न प्रकार के पशुओं जैसे-भेड़, बकरी आदि को चराया जाता है। इस प्रकार की खेती आस्ट्रेलिया, अमेरिका, तिब्बत तथा भारत के पर्वतीय या पठारी क्षेत्रों में भेंड़, बकरी चराने के लिए की जाती है। ज्ञातव्य है कि आस्ट्रेलिया आदि देशों में भेड़, बकरी रखने वालों को रैंचर की संज्ञा दी जाती है।




 

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