JPSC MAINS NOTES पेपर 4 लोक प्रशासन और सुशासन टॉपिक (लोक प्रशासन केवल सरकार के दैनिक प्रशासकीय कार्यों से संबंधित नहीं ) Q&A हिंदी में फ्री पीडीएफ डाउनलोड

 

JPSC MAINS NOTES PUBLIC ADMINISTRATION IN HINDI



झारखण्ड लोक सेवा आयोग (JHARKHAND PUBLIC SERVICE COMMISSION (JPSC)



प्रश्न :आज लोक प्रशासन केवल सरकार के दैनिक प्रशासकीय कार्यों से संबंधित नहीं है, अपितु यह सामाजिक न्याय एवं सामाजिक परिवर्तन का उपकरण है । टिप्पणी कीजिए ?

उत्तर- आज लोक प्रशासन संरक्षक की भूमिका में है। इसका मुख्य जोर दैनिक प्रशासकीय कार्यों की अपेक्षा सामाजिक न्याय एवं सामाजिक परिवर्तन पर है। सामाजिक न्याय का अभिप्राय वर्ग रहित समाज की स्थापना अथवा असमानता को दूर करना है।

लोक प्रशासन के सामाजिक न्याय एवं सामाजिक परिवर्तन के उपकरण के रूप में इसकी भूमिका विकासशील समाजों में कहीं ज्यादा प्रासंगिक है। चूँकि विकासशील समाजों में निर्धनता, बेरोजगारी, संसाधनों का असमान वितरण तथा पुनर्वितरण की समस्या एवं सामाजिक स्तरीकरण की समस्या अत्यधिक है।

विकसित देशों में वर्गीय असमानता तुलनात्मक रूप से बहुत कम है विकासशील देशों में लोक प्रशासन की सामाजिक न्याय एवं सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित भूमिका की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। नवीन लोक प्रशासन का उद्भव सामाजिक न्याय तथा सामाजिक परिवर्तन की दिशा में लोक प्रशासन की भूमिका को ही सुनिश्चित करने के लिए हुआ। नवीन लोक प्रशासन के चार उद्देश्य सामाजिक समता, मूल्य, परिवर्तन तथा प्रासंगिकता निर्धारित किये गये । 

नवीन लोक प्रशासन के प्रवर्तकों का यह मानना था कि नौकरशाही ही परिवर्तन का मुख्य यंत्र है। इसके अतिरिक्त परिवर्तन के मुख्य यंत्र के रूप में कार्यक्रम नियोजन बजट की अनुशंसा भी की गयी । नवीन लोक प्रशासन में नवोदित विकासशील राष्ट्रों की समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया गया, जहाँ सामाजिक न्याय एवं परिवर्तन की आवश्यकता अधिक थी। कार्यकुशलता तथा तकनीकी दिशा में प्रशासन के विकास ने सामाजिक समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया था । 

कार्य-कुशलता से सामाजिक न्याय सुनिश्चित नहीं किया जा सकता । सामाजिक न्याय नितांत रूप से मूल्यों का प्रश्न है और इसके प्राप्ति क्रम में कार्यकुशलता से समझौता करना पड़ता है। अतः सामाजिक न्याय की भूमिका ने लोकप्रशासन की प्रतिबद्धता, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं प्रशासनिक मूल्यों के प्रति है ।

यह पिछड़ी के कल्याण, वितरण की समानता, भेदभाव-रहित व्यवहार तथा संवेदनशीलता को सुनिश्चित करता है । भारत जैसे विकासशील समाज में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय को संविधान के उद्देश्यों के अन्तर्गत रखा गया है । इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु नियोजित अर्थ-व्यवस्था, कल्याण कार्यक्रम तथा आरक्षण जैसे उपकरणों का प्रयोग किया गया है । सामाजिक न्याय प्राप्त करने के प्रमुख उपकरणों में आर्थिक नियोजन है ।

आर्थिक नियोजन के माध्यम से आर्थिक समानता प्राप्त की जा सकती है। आर्थिक विकास में ही समस्त विकास सन्निहित है। भारत में आर्थिक नियोजन हेतु पंचवर्षीय योजनाओं को अपनाया गया है। जहाँ पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी हटाओ का नारा दिया गया, वर्तमान में चल रही ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना में 'समावेशी विकास' का लक्ष्य रखा गया है। इन पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से निर्धनता, बेरोजगारी निरक्षरता दूर करने के लिए विविध शृंखलाबद्ध कार्यक्रम चलाये जाते हैं। इस क्रम में नियोजन कार्यक्रम प्रणाली तथा निष्पादन बजट की प्रयुक्ति भी की गयी । 

आरक्षण के माध्यम से विविध सरकारी पदों पर पिछड़े वर्गों को आरक्षण प्रदान किया गया । आरक्षण की व्यवस्था का जहाँ भारतीय संविधान में प्रावधान था, वहीं इस दिशा में मण्डल आयोग की सिफारिशों को स्वीकार किया गया । आज यह आरक्षण सरकारी पदों के अलावा राजनैतिक पदों एवं निजी क्षेत्रों में भी दिया जा रहा है। सामाजिक कार्यक्रमों को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए केन्द्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड का गठन किया गया। इसमें जातिगत तथा आर्थिक आधारों पर पिछड़े वर्गों को सहायता प्रदान करने के लिए विविध कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं । 

आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक तरफ जहाँ सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्रों के विस्तार को प्रश्रय दिया, वहीं निजी क्षेत्रों के विस्तार पर पर्याप्त अंकुश की व्यवस्था की गयी । साथ ही, संसाधनों के पुनर्वितरण की दिशा को आर्थिक न्याय प्राप्त करने के अनुकूल बनाया गया, जिसमें प्रत्यक्ष करों को प्रतिगामी बनाया गया और परिवर्तन की भूमिका प्राप्त करने के लिए विकासशील देशों में विकास प्रशासन की संकल्पना का उद्भव हुआ।

यह एक लक्ष्य अभिमुखी, परिणाम अभिमुखी, ग्राहक अभिमुखी, सुधार अभिमुखी तथा परिवर्तन अभिमुखी अवधारणा है। यह यथास्थिति बनाये रखने का विरोध करता है तथा परिवर्तन का पक्षधर है। परिवर्तन हेतु यह अनुसंधान परक दृष्टिकोण को अपनाता है। यह उत्कृष्ट परिणामों को प्राप्त करने हेतु नयी प्रविधियों की खोज करता है। जॉन माण्टगोमरी के शब्दों में आर्थिक क्षेत्र में लाये जाने वाले नियोजित परिवर्तन और एक सीमा तक राज्य द्वारा की जाने वाली सामाजिक सेवाएँ विकास प्रशासन का पर्याय है। पाइपनन्दीकर के मतानुसार योजनाबद्ध परिवर्तन का प्रशासन ही विकास प्रशासन है जो विभिन्न नियोजित प्रयासों से परिवर्तन एवं समृद्धि लाने का प्रयास करता है।

विकास प्रशासन अपने लक्ष्यों की प्राप्ति 4P के माध्यम से करता है जिस Plan, Policy, Programme तथा Project सम्मिलित हैं।

 उपरोक्त सामाजिक न्याय तथा सामाजिक परिवर्तन की भूमिका लोक प्रशासन के नवीन स्वरूप का परिचायक हैं। वे व्यक्ति के सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक मानसिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है । यह परम्परागत नियामकी प्रशासन का संशोधित लक्ष्योन्मुखी, सुधारोन्मुखी तथा ग्राहकोन्मुखी है । यह सामाजिक न्याय तथा परिवर्तन का संस्करण है जो अपेक्षाकृत अधिक जनोन्मुखी है। यह मूल्य का संवाहक, कार्योन्मुखी,प्रमुख साधक है ।

उपरोक्त विवेचनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन को एक नयी भूमिका प्राप्त हुयी है और वह है सामाजिक न्याय तथा सामाजिक परिवर्तन के यंत्र के रूप में कार्य करना । आज यह केवल सरकार के दैनिक प्रशासकीय कार्यों से हो सम्बन्धित नहीं है ।

 

 

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