jpsc मैन्स नोट्स फ्री पीडीएफ डाउनलोड पेपर 3 मध्यकालीन भारत टॉपिक (मौर्यकालीन मूर्त्तिकला के विशिष्ट लक्षण )
झारखण्ड लोक सेवा आयोग (JHARKHAND PUBLIC SERVICE COMMISSION (JPSC)
सेलेबस पर आधारित क्वेश्चन आंसर राइटिंग ( syllabus based mains question answer writing )
प्रश्न : मौर्यकालीन मूर्त्तिकला के विशिष्ट लक्षण क्या हैं ?
उत्तर- मौर्यकालीन मूर्त्तिकला का विकास राजाश्रय एवं लोकाश्रय के अन्तर्गत दो अलग-अलग दिशाओं में हुआ दोनों प्रकार की मूर्त्तिकलाओं की अपनी-अपनी विशिष्टताएँ हैं:-
राजाश्रय में निर्मित मूर्त्तिकला की प्रमुख विशेषताएँ :
(i) इस शैली के तहत पशु-मूर्त्तियाँ बनाई गईं। ये पशु मूर्त्तियाँ मुख्यतः स्तम्भ लेखों के शीर्ष एवं आधार पर उकेरी गईं हैं। इनमें सारनाथ की सिंह मूर्त्ति एवं रामपुरवा की ललित मुद्रा में निर्मित नटुआ बैल की आकृति विशिष्ट हैं |
(ii) मूर्त्तियों की जीवंतता विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके अंग-प्रत्यंक को उभारकर स्वाभाविकता लाई गई है ।
(iii) मूर्त्तियाँ चिकनी तथा चमकदार पॉलिश युक्त हैं एवं इनकी चमक आज तक कायम है।
(iv) ये मूर्त्तियाँ बड़े-बडे बलुआ पत्थरों को काटकर या तराशकर बनाई गई हैं। सारनाथ, रामपुरवा, लौरिया अरेराज, लौरियानंदनगढ़ की मूर्त्तियाँ इसके स्पष्ट प्रमाण हैं।
(v) सारनाथ की सिंहमूर्त्ति अनुपम कृति है इसकी शालीनता, यथार्थता एवं शांतमुद्रा अशोक की जीवननीति, धम्मनीति के अनुरूप है |
लोक मूर्त्तिकला की विशेषताएँ :
(i) इस शैली के अन्तर्गत प्रायः बलुए पत्थर की मानवाकार मूर्त्तियाँ (यक्ष-यक्षिणी एवंअन्य) बनायी गईं है|
(ii) मूर्त्तियों में विचित्र जड़ता एवं आकृतियों में सरलता है|
(iii) मूर्त्तियाँ नग्न भी हैं एवं वस्त्रों-आभूषणों से सुसज्जित भी हैं।
(iv) लोहानीपुर (पटना) से दो नग्न पुरुष मूर्त्तियाँ मिली हैं जिनका निर्माण जैन कला शैली के कायोत्सर्ग मुद्रा में हुआ है ।
(v) मूर्त्तियों की विशिष्ट चमक इन्हें प्राणमय एवं सजीव बनाती हैं ।
(vi) कुछ मूर्त्तियों में नारी सौंदर्य की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पायी गयी है साथ ही शरीर के अगले भाग की प्रस्तुति पर अधिक ध्यान दिया गया है ।
(vii) कलात्मक दृष्टि से मूर्त्तियों में बेडौलपन है। पैर लंबे एवं भारी हैं ।अंगुलियाँ असमान और अस्वाभाविक हैं ।
(viii) परखम के यक्ष, दीदारगंज की चामरग्राहीणी एवं बेसनगर की यक्षिणी की मूर्त्तियाँ उल्लेखनीय हैं। ये अतिमानवीय महाकाय मूर्त्तियाँ खुले आकाश के नीचे स्थापित की जाती थीं । मांसपेशियों की बलिष्ठता और दृढ़ता उनमें जीवंत रूप में व्यक्त हुई । उनके दर्शन का प्रभाव सम्मुखीन है, मानो शिल्पी ने उन्हें सम्मुख दर्शन के लिए बनाया है।
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