JPSC MAINS NOTES पेपर 4 लोक प्रशासन और सुशासन टॉपिक ( कार्यपालिका का मुख्य कार्य प्रशासन को नेतृत्व प्रदान करना है।) Q&A हिंदी में फ्री पीडीएफ डाउनलोड
प्रश्न : कार्यपालिका का मुख्य कार्य प्रशासन को नेतृत्व प्रदान करना है।
उत्तर- मुख्य कार्यपालिका का अभिप्राय प्रशासकीय पद-सोपान के शीर्ष बिन्दु पर अवस्थित उस व्यक्ति या उसके समूह से है जिसमें संगठन की समस्त सर्वोच्च शक्तियाँ केन्द्रित रहती हैं। मुख्य कार्यपालिका की स्थिति एक विशेष की राजनैतिक एवं संवैधानिक संरचना पर निर्भर करती है। ब्रिटेन तथा भारत जैसे संसदीय शासन प्रणाली के देश में कार्यपालिका एक संवैधानिक प्रधान या नाम मात्र का प्रधान होता है तथा वास्तविक सत्ता केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् जिसका नेता प्रधानमंत्री होता है में सन्निहित रहता है। लेकिन इसके सर्वथा विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका जिसकी संवैधानिक संरचना अध्यक्षीय शासन पद्धति पर आधारित है, में राष्ट्र का प्रधान तथा शासन का प्रधान ही वास्तविक प्रधान होता है।
जबकि ब्रिटेन तथा भारत जैसे देश में क्रमशः साम्राज्ञी तथा
राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रधान होता है न कि सरकार का लेकिन ब्रिटेन तथा भारत दोनों में एक
महत्त्वपूर्ण अन्तर है कि ब्रिटेन का सम्राट वंशानुगत परम्परा पर आधारित है जबकि भारत का
राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष रुप से निर्वाचित व्यक्ति होता है ।
उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी राष्ट्र की राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य कार्यपालिका की स्थिति उस देश की संवैधानिक संरचना तथा उसके स्वरूप एवं संदर्भ से प्रभावित होती रहती है। मुख्य प्रशासक के दो भेद के अतिरिक्त एक और महत्त्वपूर्ण भेद हैं जो उपर्युक्त दोनों प्रकार के वर्णित लक्षणों के समाहित होने के पश्चात् भी किसी प्रकार का नहीं है। यह है स्विटजरलैण्ड की बहुल कार्यपालिका ।
सात सदस्यों की बहुल कार्यपालिका एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित होती है और इसके सदस्य विधान मण्डल के प्रति उत्तरदायी होते हैं लेकिन इसके निश्चित अवधि के पूर्व न तो किसी प्रकार इसे पदच्युत किया जा सकता है न ही यह कार्यपालिका विधानमण्डल को भंग कर सकती है। अर्थात् स्विटजरलैण्ड की बहुल कार्यपालिका में अध्यक्षीय तथा संसदीय दोनों प्रणाली विद्यमान है ।
जहाँ तक मुख्य शासक के कार्यों का प्रश्न है लोक प्रशासन के विचारकों ने सम्पूर्ण मुख्य कार्यपालिका के कार्यों को दो भागों में बाँटा है- (1) राजनीतिक तथा (2)प्रशासनिक ।
1. राजनैतिक- मुख्य प्रशासक के राजनैतिक कार्यों में नीतियों एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में व्यवस्थापितका का समर्थन हासिल करना होता है । मुख्य प्रशासक अपने सशक्त नीतियों के द्वारा राष्ट्र को सुदृढ़ सबल प्रधान करता है । वह राष्ट्र की नीतियों का निर्माता, प्रवक्ता, संरक्षक भी होता है । वस्तुतः राष्ट्र के राजनैतिक नेतृत्व का वह सफल संवाहक होता है । इस तथ्यों के सही होने के उपरान्त भी राष्ट्र का प्रधान नाम मात्र का प्रधान होता है । लेकिन राष्ट्र के प्रथम नागरिक होने के उपरान्त भी राष्ट्र का प्रधान नाम मात्र का प्रधान होता है। लेकिन राष्ट्र के प्रथम नागरिक होने के कारण उसको गरिमा, मर्यादा और प्रतिष्ठा का प्रतिनिधि भी माना जाता है ।
2. प्रशासनिक- जहाँ तक मुख्य
कार्यपालिका के प्रशासकीय कार्यों का प्रश्न है तो इस कार्य को तो हम लूथर गुलिक" के विचार (POSDCORB) के सिद्धान्त से हम व्यक्त कर सकते हैं ।
Planning Organization, Staffing, Directing, Co-ordination, Reporting, Budgeting etc. जैसे कार्यों को मुख्य प्रशासक के कार्यों में स्वीकार कर सकते हैं । वस्तुतः प्रशासकीय पद-सोपान के शीर्ष बिंदु पर होने के कारण वह प्रशासकीय नीतियों का निरीक्षण करता है साथ ही संगठन के संरचना को गत्यात्मकता प्रधान करते हुए राष्ट्र के लिए अपने प्रशासकीय दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन करता है ।
कार्मिक-प्रशासन के क्षेत्र में तो मुख्य प्रशासक की शक्तियाँ अत्यन्त ही व्यापक हैं। वह लोक-सेवाओं के कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण तथा बर्खास्तगी जैसे महत्त्वपूर्ण शक्तियों से सम्पन्न है । संविधान ने उसे कार्यपालिका के प्रमुख होने के कारण उसे तमांम महत्त्वपूर्ण शक्तियों से सन्निहित किया है। यह सही है कि इस अधिकार का क्षेत्र संवैधानिक संरचना के स्वरूप और संदर्भ से प्रभावित होता रहता है फिर भी जिन राष्ट्रों में भर्ती की प्रणाली दक्षता पर आधारित है, इसके प्रमुखा नियुक्तियों में मुख्य कार्यपालिका की भूमिका व्यापक व निर्णात्मक होती है। भारत में राज्यपाल, राजदूत, उच्चायुक्त एवं सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति में मुख्य प्रशासक की भूमिका निर्णायक होती है।
लोक-सेवकों का चुनाव यद्यपि लोक-सेवा आयोग करता है, तथापि तकनीकी दृष्टि से उनकी नियुक्ति मुख्य प्रशासक ही करता है और उनकी बर्खास्तगी तथा स्थानान्तरण का अधिकार भी उसमें निहित होता है ।
मुख्य प्रशासक प्रशासनिक गतिविधियों को सुनिश्चित करने हेतु
विभिन्न नीतियों,निर्देशों, आदेशों एवं उद्घोषणाओं को
भी सुनिश्चित करता है ।
वस्तुत: उपरोक्त विश्लेषण के अतिरिक्त मुख्य प्रशासक के गुणवत्ता पर ही प्रशासन की दक्षता और कार्यकुशलता निर्भर करती है। मुख्य प्रशासक का वित्तीय अधिकार भी व्यापक है । वह वर्ष का वित्तीय बजट विधानमण्डल के समक्ष प्रस्तुत करता है, तत्पश्चात् अनुमोदन के बाद उसका क्रियान्वयन भी करता है।
मुख्य प्रशासक के रूप में उसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका संगठन में संचार और समन्वय को स्थापित करना | मुख्य प्रशासक अपने अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों के मध्य एक सशक्त समन्वय तथा संचार स्थापित करने का माध्यम है। संगठन में परस्पर विश्वास और भावना का संचार स्थापित करने का माध्यम है । संगठन में परस्पर विश्वास और भावना का वह प्रतिबिंब होता है । एक-दूसरे की समस्याओं और भावनाओं का आदान-प्रदान करवाता है तथा विस्तुस्थिति से अवगत होने के पश्चात् उस समस्या का संवैधानिक समाधान भी करता है। उसके इस प्रकार के कार्य से ही प्रशासकीय कार्यकुशलता की तत्परता जैसे तत्त्व प्रशासकीय कर्मचारियों को प्रोत्साहित करते हैं। इस संदर्भ में मुख्य प्रशासक अपने कर्मचारियों एवं अधीनस्थ अधिकारियों के मध्य अभिप्रेरणा का केन्द्रबिन्दु होता है।
उपरोक्त तथ्यों के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुख्य प्रशासक संगठन के पद-सोपान के शीर्ष बिन्दु पर होने के कारण वह इसका नेतृत्व ही सफलतापूर्वक नहीं करता अपितु वह योजना, संगठन, कार्मिक, निर्देशन, नियंत्रण, निर्देश, प्रतिवेदन, समन्वय,संचार तथा वित्त जैसे मामलों का सफल संचालक होता है ।
यह सही है कि संवैधानिक संरचना में इसका स्वरूप राष्ट्र विशेष की राजनैतिक पद्धति पर आधारित होती है। फिर भी शासन के शीर्ष बिन्दु पर स्थित होने तथा राष्ट्र के प्रथम नागरिक होने के कारण वह इसकी मर्योदा, गरिमा तथा प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है ।
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