jpsc मैन्स नोट्स फ्री पीडीएफ डाउनलोड (पेपर 4 ) Q&A टॉपिक (केन्द्र में मिली-जुली सरकार के प्रयोग )
प्रश्न : "केन्द्र
में मिली-जुली सरकार के प्रयोग से न तो लोकतंत्र सुदृढ़ हुआ है और
न ही सहभागी और सहकारी संघवाद के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बन सकी है
।" क्या आप सहमत हैं ?
("The coalition experiment at the Centre has
neither strengthened democracy nor has it made condition
conductive for participatory and cooperative
federation." Do you agree ?)
उत्तर- विगत कुछ दशकों में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिल पाने के कारण केन्द्र में मिली-जुली सरकारों की स्थापना होने लगी है। मिली-जुली सरकार के प्रयोग से एक ओर लोकतंत्र की सुदृढ़ता और सहकारी व सहभागी संघवाद के अनुकूल परिस्थितियाँ बनी हैं तो दूसरी ओर कुछ नकारात्मक पहलू या नकारात्मक परिस्थितियाँ भी उभर कर सामने आई है जिनका बिन्दुवार उल्लेख निम्नरूपेण है :-
- मिली-जुली सरकार के प्रयोग से केन्द्र सरकार की स्वेच्छाचारिता/मनमानापन पर अंकुश लगा है। जब केन्द्र में एक दल की सरकार होती थी तो ऐसी प्रवृत्तियाँ उभर कर सामने आती थी, इस संदर्भ में इंदिरा गांधी के समय 'आपातकाल' की घोषणा का उल्लेख किया जा सकता है |
- वर्तमान में जबकि विभिन्न क्षेत्रीय दलों एवं राष्ट्रीय दल के द्वारा मिल-जुल कर साझा सरकारें बनने लगी हैं तो क्षेत्रीय समस्याएँ एवं मुद्दे भी बेहतर ढंग से उठाए जाने लगे हैं जबकि केन्द्र में एकदलीय सरकार के समय प्रायः क्षेत्रीय/स्थानीय मुद्दों को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था। इससे अलगाववाद की भावना हतोत्साहित होने लगी है ।
- विभिन्न विचारधाराओं एवं मतों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।
- विभिन्न विचारधाराओं की उपस्थिति के कारण दृष्टिकोण ज्यादा व्यापक होता है जबकि एकदलीय सरकार में राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान हेतु विचारधारा एकांगी स्वरूप की होती है ।
- विभिन्न क्षेत्रीय दलों की केन्द्र में बढ़ती भागीदारी से यह भी सिद्ध होता है कि लोकतंत्र की जड़ें काफी गहरी हो चुकी है और व्यावहारिक रूप में लोकतंत्र को सार्वभौम स्वीकृति मिल चुकी है।
- केन्द्र-राज्य संबंधों में रचनात्मक एवं सकारात्मक बदलाव आया है । अनुच्छेद 356 का प्रयोग कम हुआ है । अन्तर्राज्यीय परिषद् की महत्ता बढ़ी है। वित्त आयोग द्वारा राज्यों की वित्तीय हिस्सेदारी बढ़ाई गई है, राज्यों को ऋण-उगाहीका अधिकार दिया गया है। राज्यपालों की नियुक्ति में राज्यों की सहमति ली जाने लगी है। योजना के निर्माण और क्रियान्वयन में राज्यों की भागीदारी बढ़ी है।
उपरोक्त सभी प्रवृत्तियों से भारत में सहभागी एवं सहकारी
संघवाद को बढ़ावा मिल रहा है।
नकारात्मक पक्ष/पहलू :
- साझा सरकार में शामिल दलों में प्रायः वैचारिक एवं दृष्टिकोणगत विषमता होती है। गठबंधन स्वार्थ आधारित होता है। इससे सरकार की कार्यकुशलता, दक्षता और स्थायित्व पर प्रतिकूल असर पड़ता है । मध्यावधि चुनावों की बारम्बारता बढ़ी है जो लोकतंत्र को कमजोर करती है ।
- क्षेत्रीय दलों का राजनीतिक आधार क्षेत्रीय होता है फलतः ये दल क्षेत्रीय समस्याओं एवं मुद्दों को वरीयता देते हैं जिससे राष्ट्रीय समस्याएँ गौण पड़ जाती है ।
- क्षेत्रीय दलों द्वारा राजनैतिक सौदेबाजी को प्रोत्साहन मिलता है ।
- राज्यों की ओर से स्वायत्तता की माँग बढ़ी है।
- कई बार मंत्रिपरिषद् में मतैक्य न होने की स्थिति से लोकतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार मिली-जुली सरकार के प्रयोगों से लोकतंत्र की
सुदृढ़ता और सहकारी संघवाद के अनुकूल परिस्थितियाँ भी बनी हैं तो कुछ प्रतिकूल समस्याएँ भी उभरी
हैं, आवश्यकता है कि क्षेत्रीय
हितों एवं राष्ट्रीय हितों में संतुलन बनाने की ।
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