jpsc मैन्स नोट्स फ्री पीडीएफ डाउनलोड (पेपर 4 ) Q&A टॉपिक भारतीय संघवाद
प्रश्न: भारतीय संघवाद में उभरती हुई
प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए ।
(Analyse the emerging trend in Indian Federalism.)
उत्तर- (1)संघवाद
व्यवस्था-इसका निर्माण सामान्यतः राज्यों के मध्य समझौता जो संविधान के रूप में
होता है, के द्वारा होता
है।
दो स्तर की सरकारें-केन्द्र एवं राज्य
केन्द्रीय महत्त्व के विषय जैसे- विदेश, रक्षा, यातायात संचार आदि पर
केन्द्र का अधिकार होता है अन्य मामलों के राज्यों का स्वायत्तता । USA का संविधान प्रथम स्पष्ट उदाहरण है
भारत में अमेरिका के संविधान से कुछ अलग हटकर शक्तिशाली
केन्द्र और उस पर निर्भर राज्यों की व्यवस्था की गई कारण-
(i) साम्प्रदायिक
विभाजन से मिली आजादी के अनुमान
(ii) तीव्र विकास की
आकांक्षा ।
इस प्रकार उभरी नयी संघीय व्यवस्था को कई नाम जैसे- सहकारी
संघवाद, अर्द्धसंघात्मक व्यवस्था, केन्द्रीय संघवाद आदि दिए
गए जिनमें केन्द्रीय संघवाद/केन्द्रीकृत संघवाद सबसे उपयुक्त माना जाता है कारण-
(i) शक्तियों का
विभाजन का केन्द्र की ओर झुकाव
(ii) अनुच्छेद 356
(iii) राज्यपाल का पद
(iv) राज्यों के
आर्थिक स्रोतों का न्यून होना
(v) अखिल भारतीय सेवा
(vi) गैर संविधानिक तत्त्व - राजनीतिक दल एवं
योजना आयोग का प्रावधान ।
1950 से 1967 तक केन्द्र और राज्य
दोनों ही स्तरों पर कांग्रेस दल का एकाधिपत्य सामान्य अध्ययन रहा, परिणामतः केन्द्र राज्य के मध्य विवाद की स्थिति सतह पर न आ
पाई, शक्तियों के विभाजन से असंतुष्ट होते
हुए भी राज्यों का स्वर मुखर नहीं हो सका, अतः इस काल को केन्द्रीय संघवाद का नाम देना उपयुक्त होगा क्योंकि इस काल
में केन्द्र व राज्य सरकारों के अधिकांश निर्णय कांग्रेस नेतृत्व द्वारा होते थे ।
पिछले दशकों में राजनीतिक स्तर पर दो बातें उभर कर आई
पहला-गठबंधन सरकारों के बनने से शक्तिशाली केन्द्र की अवधारणा का ह्रास हुआ दूसरा, राज्य स्तरीय/क्षेत्रीय
दलों द्वारा केन्द्र
सरकार को दिए गए समर्थन के कारण ये दल सौदेबाजी की स्थिति में आ गए
इस प्रकार व्यवहारिक राजनीति में क्रमशः राज्यों की स्थिति
मजबूत होती चली गई।
उपरोक्त स्थिति के बावजूद भारतीय संघवाद में एकात्मकता की
प्रवृत्ति के दर्शन होते
कारण :-
(i)
विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी का विकास–वर्तमान युग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास का आधार है और यह
संघीय व्यवस्था में एकात्मकता को बल प्रदान करता क्योंकि किसी भी वैज्ञानिक शोध या प्रौद्योगिक
का विकास और उसका वितरण सम्पूर्ण क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए किया जाता है और यह कार्य केन्द्रीय
सरकार ही कर सकती है।
(ii)
अर्थव्यवस्था
की नूतन प्रवृत्ति—निजीकरण, उदारीकरण, वैश्वीकरण की आर्थिक प्रवृत्ति के केन्द्र को और भी अधिक शक्तिशाली बना दिया है।
समस्त आर्थिक नीतियाँ केन्द्रीयस सरकार द्वारा बनायी जाती है साथ भारत सरकार द्वारा की गई किसी भी
संधि का प्रभाव क्षेत्र उसका सम्पूर्ण क्षेत्र होता है।
(iii) राज्य की केन्द्र
पर बढ़ती आर्थिक निर्भरता-राज्यों को आर्थिक जरूरतें पूरी करने के लिए प्रायः केन्द्रीय
ऋण एवं अनुदान पर निर्भर रहना पड़ता है।
(iv)
अलगाववादी
प्रवृत्तियाँ,
जैसे- क्षेत्रवाद, भाषावाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद आदि जो राष्ट्रीय एकीकरण में
बाधक हैं और इन पर नियंत्रण होते हैं अतः उसकी शक्ति मेकंविस्तार स्वाभाविक है।
उपरोक्त विवरण से यह सिद्ध है कि भारत के संघवाद की दो
प्रवृत्तियाँ वर्तमान में कार्यरत हैं-एक ओर राजनीतिक कारणों से केन्द्रीय शक्ति
का ह्रास हो रहा है दूसरी ओर राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में शक्तिशाली केन्द्र
की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
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