JPSC MAINS EXAM NOTES पेपर 4 भारतीय राजव्यवस्था टॉपिक(संसदीय संप्रभुता) Q & A हिंदी में फ्री पीडीएफ डाउनलोड

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प्रश्न : संसदीय संप्रभुता क्या है ? क्या आप भारतीय संसद को 'प्रभुत्वसम्पन्न' या 'गैर प्रभुत्व सम्पन्न' या दोनों समझते हैं ? आप अपने विचार दीजिए।

(What is the meaning of "Parliamentary Sovereignty" ? Do you consider Indian Parliament a 'Sovereign' or a 'non-sovereign' or both ? Give your views.)

उत्तर-"संसदीय संप्रभुता" का तात्पर्य है देश के आंतरिक एवं बाह्य मामले में संसद की स्थिति का सर्वोच्च होना । ऐसी स्थिति में देश के आंतरिक एवं बाह्य मामले में संसद का निर्णय अंतिम होता है। उसके द्वारा बनाए गए कानूनों को न्यायालय में किसी भी आधर पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। संसदीय संप्रभुता की धारणा इस सिद्धांत पर आधरित होती है कि संसद के सदस्य सीधे जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं अर्थात् जनता उन्हें अपने लिए निर्णय लेने या विधान बनाने के लिए अधिकृत कर देती है इसलिए संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है ।

ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में संसद सर्वोच्च एवं प्रभुत्व संपन्न है क्योंकि कोई लिखित संविधान नहीं है और न्यायपालिका को न्यायिक पुनरीक्षण करने का अधिकार नहीं है ।

अमेरिकी प्रणाली में न्यायपालिका सर्वोच्च है क्योंकि उसे न्यायिक पुनरीक्षण तथा संविधान के निर्वचन की शक्ति प्राप्त है। भारत में मध्यम मार्ग को अपनाया गया है ।

भारतीय संविधान में संसद को न तो प्रभुत्व संपन्न बनाया गया है न ही गैर-प्रभुत्वसम्पन्न । बल्कि यहाँ दोनों के बीच की स्थिति को अपनाया गया है ।

संसदीय संप्रभुता की स्थिति-

संविधान के बुनियादी ढाँचे के भीतर संसद को किसी भी विषय पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है । साथ ही संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति संसद में निहित है।

संसद कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है । मंत्रिपरिषद्  लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है ।

सभी वित्तीय मामलों पर संसद का नियंत्रण होता है। संसद बजट का अनुमोदन करती है तथा विभिन्न समितियों के माध्यम से वित्तीय व्यवस्था को सुनिश्चित करती है ।

भारतीय संसद का न्यायापालिका पर भी नियंत्रण होता है। न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र एवं जजों की संख्या का निर्धारण संसद के द्वारा होता है। साथ ही, न्यायधीशों पर महाभियोग लगाकर पदच्युत करने का अधिकार भी संसद को ही होता है

राज्यों के क्षेत्र, सीमा, नाम के परिवर्तन |

गैर प्रभुत्व संपन्न -

न्यायपालिका को न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार प्राप्त है । वह संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की विधि संगतता की जाँच करता है और उसे अविधिमान्य भी घोषित कर सकता है।

• आधारभूत ढाँचा की संकल्पना ।

• संसद खासकर लोकसभा का गठन कार्यपालिका का प्रधान राष्ट्रपति करता है।साथ ही उसका विघटन भी कार्यपालिका ही करता है !

• प्रत्यायोजित विधायन के कारण संसद के कानून निर्माण की शक्ति क्षीण हो जाती है। इसके तहत् विधि का निर्माण संसद द्वारा न होकर संसदेतर निकायों द्वारा होने लगता है ।

• भारत में राष्ट्रपति को अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी करने की शक्ति है। राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयकों पर वीटो खासकर "जेवी वीटो" का भी प्रयोग करता है। जैसे-1988 का डाक तार विधेयक तथा 1991 का सांसद-भत्ता विधेयक

• मजबूत कार्यपालिका की स्थिति में संसद के अधिकार सीमित हो जाते हैं और कार्यपालिका मनमाना करने लगती है जैसा कि 1975 में आपातकाल के दौरान हुआ ।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत में संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता के बीच की स्थिति को अपनाया गया है ।

 

   






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