JPSC MAINS EXAM Q&A पेपर 3 आधुनिक भारत टॉपिक(1857 का विद्रोह)फ्री पीडीएफ डाउनलोड
प्रश्न. "इस निष्कर्ष का निवारण कठिन है कि 1857 का तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय संग्राम न तो प्रथम है, न राष्ट्रीय और न स्वतंत्रता संग्राम ही ।" समीक्षा कीजिए ।
उत्तर- भूमिका-'1857' के विद्रोह के स्वरूप पर
विचार करते हुए कुछ विद्वानों ने इसे प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष की संज्ञा दी है
जबकि मजुमदार ने इसे न तो प्रथम, न राष्ट्रीय और न हीं स्वतंत्रता संघर्ष माना ।
I. न तो प्रथम - पूर्व में भी
सैनिक विद्रोह, कृषक विद्रोह एवं
जनजातीय आंदोलन होते रहे थे । ये जनांदोलन विरोध मूलक ही थे ।
II. न ही राष्ट्रीय-सीमित वर्ग - कुछ रजवाड़े, असंतुष्ट सैनिक और
कहीं-कहीं जनता का सीमित हिस्सा ।
सीमित क्षेत्र : उत्तर भारत का
अधिकांश भाग, नर्मदा के दक्षिण
का पूरा भाग अछूता राष्ट्रवादी चेतना का अभाव, व्यक्तिगत करणों से विद्रोही इसमें शामिल हुए|
(राष्ट्रवादी चेतना का अभाव, व्यक्तिगत करणों से
विद्रोही इसमें शामिल हुए।)
III. न ही स्वतंत्रता संग्राम - विद्रोहियों के
उद्देश्य भिन्न-भिन्न थे,
सभी निजी कारणों से विद्रोह में शामिल हुए
।
कई असंतुष्टों ने अंत तक अंग्रेजों से सुलह का प्रयास किया
जब ऐसा नहीं हुआ तो आंदोलन में वे सहयोग देने लगे ।
यानी स्वतंत्रता उद्देश्य नहीं ।
लेकिन इन तमाम सीमाओं के बाजवूद इस तथ्य से इन्कार नहीं
किया जा सकता कि प्रथम बार भारतीय समाज के असंतुष्ट वर्गों ने इतने व्यापक स्तर पर औपनिवेशिक
सत्ता के विरुद्ध विद्रोह को आरंभ किया।
इसे भले ही न तो प्रथम, न राष्ट्रीय, न स्वतंत्रता संग्राम
माना जाए लेकिन ब्रिटिश सत्ता के विरोध की परम्परा में यह
महत्त्वपूर्ण प्रस्थान बिन्दु है इससे इन्कार नहीं किया जा सकता ।
इसका स्वरूप संश्लिष्ट (प्रतीत होता है। कभी यह हिंसक सैनिक
विद्रोह प्रतीत होता है, कभी यह धार्मिक
विद्रोह का आभास देता है तो कभी इसमें कृषक विद्रोह एवं जनविद्रोह के बीज भी दृष्टिगोचर होते हैं ।
कतिपय सीमाओं के कारण मजुमदार के कथन से पूरी तरह असहमत
होना कठिन है लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि असहयोग आंदोलन के पूर्व भारतीयों द्वारा औपनिवेशिक सत्ता
के विरुद्ध किए गए विद्रोहों में इसका स्थान सर्वोपरि है एवं परिणाम भी दूरगामी है।
भले ही यह राष्ट्रीय न माना जाए लेकिन यह राष्ट्रवाद का चिर
प्रेरणा-स्रोत बन गया ।
उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आंदोलन के लिए 1857 के शहीद प्रेरणास्रोत
बने एवं वे शहीद आज भी राष्ट्रवाद के प्रेरणास्रोत हैं ।
सीमित अर्थों में स्वतंत्रता संग्राम भी माना ही जा सकता है
क्योंकि विदेशी राज सत्तासे मुक्ति ही सबका उद्देश्य था ।
---------keep learning keep growing--------
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