BPSC मैन्स नोट्स फ्री पीडीएफ डाउनलोड Q&A टॉपिक बिहार में पाल कला
प्रश्न : बिहार
में पाल कला की प्रधान विशेषताओं का विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर- बिहार में पूर्व
मध्यकाल में पालवंशीय शासकों के संरक्षण कला के विविध आयामों की विशेष प्रगति हुई जिन्हें सम्मिलित
रूप से पालकला की संज्ञा दी जाती है।
इस कला की प्रधान विशेषताएँ निम्नरूपेण हैं |
स्थापत्य कला-बिहार में वास्तुकला के विकास में विशिष्ट
प्रगति पालकाल में हुई।
पालकालीन स्थापत्य के साक्ष्य ओदंतपुरी, नालंदा और विक्रमशीला
महाविहार है। इन विहारों का निर्माण एक विशिष्ट योजना के आधार पर किया गया है। विक्रमशिला से
ईंट निर्मित एक मंदिर
और स्तूप का साक्ष्य भी मिला है। दीवारों के बाहरी हिस्से पर मिट्टी के तख्तियों से सजावट का
काम किया गया है।
मूर्त्तिकला-पाल काल की पत्थर और कांस्य प्रतिमाएँ साँचे में निर्मित हैं जिनके साक्ष्य नालंदा, कुक्रिहार अंतचक इत्यादि स्थानों से प्राप्त हुए हैं। कांस्य प्रतिमाओं की निर्माण शैली में धीमान और वीथिपाल का निणार्यक योगदान था । पत्थर की मूर्त्तियाँ काले बैशाल्ट की बनी हैं। इनमें शरीर के अग्र भाग को दिखाने पर विशेष ध्यान दिया गया है मूर्त्तियों में अलंकार की प्रधानता है। सभी मूर्त्तियाँ सुन्दर है और कला की परिपक्वता को दर्शाती है।
चित्रकला-पालकाल में पांडुलिपियों के चित्रण के साथ दीवारों
पर भी चित्र बनाने के उदाहरण मिले हैं। पाल चित्रशैली के प्रमुख चित्रकार धीमान और वीथिपाल थे।
चित्रित पाण्डुलिपियाँ तार पत्र पर लिखी गई हैं जिनके
श्रेष्ठ उदाहरण अष्टसहस्रिका,प्रज्ञापारमिता और पंचरक्ष है। इनमें अधिकतर बौद्ध धर्म से
संबंधित चित्र हैं, जिनपर तांत्रिक कला का प्रभाव भी स्पष्ट
है। इन चित्रों को बनाने में प्राथमिक रूप से लाल, नीला औरकाला एवं सफेद रंगों का प्रयोग हुआ है।
भित्तिचित्र के उदाहरण नालंदा के सरायटीले से प्राप्त हुए
हैं। ग्रेनाइट पत्थर के एक बड़े चबूतरे के नीचे फूल, मनुष्य एवं पशुओं का चित्रण किया गया है। इनमें
हाथी, घोड़ा, नर्त्तकी, बोधिसत्व और जम्भला प्रमुख हैं। इन चित्रों की शैली पर
अजंता और बाघ गुफा चित्रों की शैली का प्रभाव देखा जा सकता है।
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