BPSC मैन्स नोट्स फ्री पीडीएफ डाउनलोड Q&A टॉपिक बिहार में भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रभाव
प्रश्न: बिहार में भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रभाव
की विवेचना करें ।
उत्तर -अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव में अनेकानेक दोष होने के कारण कांग्रेस ने इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया था। बदले में क्रिप्स मिशन ने कांग्रेस को स्पष्ट संकेत दे दिया था कि यदि उसके प्रस्ताव पर कांग्रेस विचार नहीं करती है तो भविष्य में ब्रिटिश सरकार भारत में राजनीतिक गतिरोध दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं करेगी अतः इन प्रस्तावों की असफलता के पश्चात् आंदोलन ही एकमात्र रास्ता बचा था जिससे राजनैतिक गतिरोध दूर किया जा सके। अंततः विवश होकर कांग्रेस कार्य समिति ने जुलाई 1942 में वर्धा में एक प्रस्ताव पारित किया जिसका शीर्षक था- भारत छोड़ो आन्दोलन ।
8 अगस्त 1942 को बम्बई अधिवेशन में कुछ संशोधनों के साथ काँग्रेस ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया तथा इसी अधिवेशन में इसी दिन से इसे लागू करने की घोषणा कर दी गई। इस अधिवेशन में महात्मा गाँधी ने कहा था कि मेरे जीवन का यह अंतिम संघर्ष है और उन्होंने आंदोलनकारियों का नारा आह्वान करते हुए करो या मरो का नारा दिया । इसके पश्चात् अनेक प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद यह आन्दोलन समस्त भारत में फैल गया । स्वतःस्फुर्त नेतृत्वहीन इस आन्दोलन का प्रभाव अन्य प्रान्तों की अपेक्षा बिहार में सर्वोपरि रहा ।
अन्य चोटी के नेताओं की गिरफ्तारी के साथ राजेन्द्र प्रसाद सहित बिहार के अन्य कई नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया, बावजूद इसके बिहार में यह आन्दोलन भयंकर रूप धारण कर लिया। विरोध प्रदर्शन और सभाओं का क्रम शुरू हुआ । शैक्षणिक संस्थाओं का छात्रों ने बड़े पैमाने पर बहिष्कार किया तथा अनेक सरकारी संस्थान पर राष्ट्रीय झण्डे फहराने की कोशिश की गई। इसी क्रम में 11 अगस्त 1942 को पटना में छात्रों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन पर झण्डा फहराने का प्रयास किया जिससे आक्रोशित हो पटना जिला के कलक्टर W. G. आर्चर ने उन पर गोली चलाने का आदेश दे दिया परिणामस्वरूप रमाकान्त, उमाकान्त, सतीश प्रसाद सहित सात छात्र शहीदहुए। इन शहीदों की कुर्बानी से सम्पूर्ण बिहार आंदोलित हो उठा। 12 अगस्त 1942 को पटना में इस बर्बर हत्याकाण्ड के विरुद्ध पूर्ण हड़ताल रखी गई ।
बिहार कांग्रेस द्वारा गाँधी मैदान में जगतनारायण लाल की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें संचार सुविधाओं को ठप्प करने तथा सरकारी कार्यों को शिथिल करने पर जोर दिया गया। यह आन्दोलन शहर से होता हुआ अधिकांश गाँवों तक फैल गया । जगह-जगह रेल-पटरियाँ उखाड़ दी गईं, डाकघर पर हमला कर सरकारी खजाने लूट लिए गए, अन्य यातायात के साधन अवरुद्ध कर दिए गए, तार के लाइन काट दिए गए। आंदोलनकारियों ने इन क्रियाकलापों के अतिरिक्त हिंसात्मक साधनों का उपयोग करना भी शुरू किया गया ।फतुहा के निकट आंदोलनकारियों द्वारा ब्रिटिश सेना के कई अधिकारियों एवं जवानों की हत्या कर दी गई । इस तरह की वारदातें अन्य कई जगहों पर भी हुईं । इस कार्रवाई से तिलमिलाकर ब्रिटिश सरकार ने असंख्य लोगों को पकड़कर उन्हें भीषण सजाएँ दी एवं यह क्रम जारी रखा ।
इस आन्दोलन में लोकनायक जयप्रकाश सरीखे अनेक समाजवादियों ने भी अग्रणी भूमिका निभाई। जयप्रकाश के ही नेतृत्व में नेपाल में युवकों को छापामार युद्ध की शिक्षा देने हेतु एक केन्द्र की स्थापना की गई । यहीं पर आजाद दस्ता नामक एक सशस्त्र दल भी बनाया गया जिसके अखिल भारतीय केन्द्र व बिहार प्रान्तीय कार्यालय संगठित किए गए | आजाद दस्ते का गठन विशेष रूप से सरकार के विरुद्ध तोड़-फोड़ की कार्रवाइयों के लिए किया गया था ताकि युद्ध कार्यों में सरकार को बाधा पहुँचाई जा सके । नेपाल में आयोजित 'आदाज दस्ता' से प्रेरित होकर बिहार में भागलपुर तथा पूर्णियाँ में भी इसी तरह के संगठनों की स्थापना की गई। 1943 के अंत में आजाद दस्ते की सक्रियता में कमी आ गई। क्योंकि इससे संबंधित नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ।
इस प्रकार बिहार में भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रभाव काफी
उग्र रहा।
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