🧡 कहानी का नाम: "कल सोमवार है, ज़रूर कॉल करना..."

                                                                                 


🧡 कहानी का नाम: "कल सोमवार है, ज़रूर कॉल करना..."

शुरुआत – इंतज़ार के पल:

रात के 11 बज चुके थे। सीमा खिड़की के पास बैठी थी, फोन हाथ में लिए। हर बार स्क्रीन की रौशनी जलती, उम्मीद जगती — शायद वही कॉल हो… पर फिर वही सन्नाटा।

उसने फिर एक मैसेज टाइप किया —
"मैडम, अब तो आज का दिन भी खत्म हो गया… कल सोमवार है, कल ज़रूर से ज़रूर कॉल कीजिएगा। हम दोनों वेट कर रहे हैं..."

उसका मन रोने को हो आया। जिस इंसान की एक आवाज़ दिल को चैन देती थी, वही अब अनसुना कर रहा था।


बीते लम्हों की कहानी:

सीमा और नितिन की दोस्ती उस वक़्त शुरू हुई थी जब दोनों एक साथ NGO में वॉलंटियर किया करते थे। नितिन की आवाज़ में एक सुकून था, और सीमा की मुस्कान में उम्मीद। दोनों की बातें घंटों चलतीं — पढ़ाई, घर, समाज, सपने… और एक दिन वो पल भी आया जब दिल ने चुपके से कह दिया — "तुम हो तो सब ठीक है।"

धीरे-धीरे ये रिश्ता प्यार में बदल गया, लेकिन नाम नहीं मिला। क्योंकि दोनों अपनी ज़िम्मेदारियों में उलझे थे। सीमा अपने बीमार पिता की देखभाल में और नितिन नौकरी के संघर्ष में।

टूटता रिश्ता – अधूरी कॉल:

कई दिनों से नितिन बदलने लगा था। कॉल्स कम, रिप्लाई लेट, और बातें अधूरी।

सीमा ने कई बार पूछा:

"क्या हुआ? सब ठीक है न?"
नितिन का जवाब होता — "हां हां, सब ठीक है, बस थोड़ा बिज़ी हूँ।"

पर सीमा को पता था, कुछ ठीक नहीं है।

और फिर एक दिन... नितिन ने पूरी तरह कॉल करना बंद कर दिया।

सीमा रोज़ एक ही मैसेज करती –
"बस एक बार कॉल कर लो… हमारी तसल्ली के लिए..."
पर जवाब नहीं आया।

आज का दिन – टूटने की हद:

आज रविवार था। सुबह से ही सीमा और उसकी छोटी बहन पायल दोनों एक ही बात दोहराते जा रहे थे —

“कल सोमवार है। हो सकता है कल कॉल आ जाए।”
“हम दोनों वेट कर रहे हैं…”

कई बार फोन ऑन-ऑफ किया, नेटवर्क चेक किया, सिम बदली… पर जिस कॉल का इंतज़ार था, वो नहीं आई।

और अब… रात के 11 बज चुके हैं।

सीमा की आंखों से आंसू बह निकले। उसने पायल का हाथ पकड़ा:

"चल सोते हैं… शायद कल वो कॉल आए।"

क्लाइमेक्स – कॉल जो सब बदल दे:

अगली सुबह…

फोन की घंटी बजी — एक अनजान नंबर।

सीमा ने कांपते हाथों से उठाया — “हेलो…”

“सीमा… मैं नितिन बोल रहा हूँ…”

एक सन्नाटा… फिर धड़कनों की आवाज़।

"मैं बहुत कुछ झेल रहा था। माँ बीमार थी, नौकरी चली गई थी… और मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहता था। इसलिए दूर हो गया… पर रोज़ तुम्हारे मैसेज पढ़ता रहा। कल वाला पढ़ते ही रो पड़ा… अब और नहीं।"

सीमा की आवाज़ काँप रही थी —

"हम दोनों वेट कर रहे थे… सिर्फ एक कॉल के लिए।"

नितिन भी रो रहा था।

"अब हर सोमवार क्या, हर दिन कॉल करूंगा। बस एक बार माफ़ कर दो।"

अंत – जहां रिश्ते फिर से जुड़े:

सीमा ने मुस्कराते हुए कहा:

"माफ़ी की ज़रूरत नहीं… बस अब कभी यूं छोड़कर मत जाना। क्योंकि कभी-कभी इंतज़ार सिर्फ वक़्त नहीं काटता… वो इंसान की आत्मा तोड़ देता है।"


🌸 समाप्ति:

"कभी किसी के एक कॉल का वेट मत कराओ इतना लंबा… कि उसका भरोसा टूट जाए।
रिश्तों में सबसे बड़ा गिफ्ट होता है — वक़्त और आवाज़।"

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.
close