माँ की चिट्ठी – एक दिल को छू लेने वाली भावनात्मक हिंदी कहानी

 

                                                                                


                                                                    माँ की चिट्ठी

1. प्रारंभ
राहुल एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, जो बंगलोर में एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता था। ऊँची सैलरी, बड़ा फ्लैट, AC कार, और स्मार्टफोन से घिरा जीवन — बाहर से सब कुछ परफेक्ट था। लेकिन इस चमक-धमक में कहीं कुछ ऐसा था जो अधूरा था।

उस दिन रविवार था। राहुल देर तक सोता रहा। मोबाइल पर अनगिनत नोटिफिकेशन थे, लेकिन एक कॉल उसकी आँखों से नींद छीन ले गई — गाँव से पड़ोसी रमेश चाचा का कॉल था।

“राहुल बेटा, बुरा मत मानना, पर तुम्हारी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही…”

फोन राहुल के हाथ से छूट गया। उसके कानों में गूंज रहा था – "तुम्हारी माँ अब नहीं रही..."

2. गाँव की ओर
पाँच साल हो गए थे उसे गाँव गए हुए। माँ बार-बार बुलाती थी, “बेटा, एक बार आ जा। बस तेरे हाथ का बना चाय पीनी है।”
लेकिन राहुल हर बार कहता, “माँ, प्रोजेक्ट में बिजी हूँ। छुट्टी नहीं मिल रही।”

आज जब माँ नहीं रही, तो छुट्टी भी मिल गई, टिकट भी, और समय भी।

वो जैसे-तैसे गाँव पहुँचा। माँ की मिट्टी को देख कर वो बस फूट-फूट कर रोया। लोग समझा रहे थे, पर माँ की गोद जैसी कोई जगह नहीं होती जहां आँसू चुप हो जाएँ।

3. वो पुराना संदूक
राहुल माँ के कमरे में गया। वो कमरा जहाँ उसकी बचपन की हँसी गूँजती थी। वही पुराना संदूक अब भी कोने में रखा था, जिसमें माँ सब कुछ संभाल कर रखती थी।

राहुल ने संदूक खोला — उसमें पुराने कपड़े, राखियाँ, उसकी स्कूल की तस्वीरें और बहुत सारी चिट्ठियाँ थीं।

एक चिट्ठी पर लिखा था —
"मेरे प्यारे बेटे राहुल के नाम"

उसने कांपते हाथों से चिट्ठी खोली...


माँ की चिट्ठी (राहुल के लिए)

_“बेटा,

जब तू ये चिट्ठी पढ़ रहा होगा, शायद मैं इस दुनिया में नहीं होऊँ।

तू बहुत बड़ा आदमी बन गया है। बंगलोर में काम करता है, बड़ी गाड़ी चलाता है, और तू जिस मोबाइल से मुझसे बात करता था, वो भी इतना महँगा है कि मैं सोच भी नहीं सकती।

पर बेटा, माँ को पैसे नहीं चाहिए थे, बस तेरा समय चाहिए था।

क्या तुझे याद है, जब तू छोटा था तो मैं तुझे हर रात कहानी सुनाकर सुलाती थी? आज भी तेरे बिना मेरा कमरा सूना लगता है।

तेरे लिए मैंने बहुत कुछ छोड़ा — तेरे पापा के जाने के बाद खेत भी बेच दिए ताकि तू पढ़ सके। कभी अपने लिए साड़ी नहीं खरीदी, तेरे लिए मोबाइल खरीदा।

बेटा, जब तू पहली बार गाँव आया था नौकरी लगने के बाद, मैं तीन दिन पहले से खाना बनाना शुरू कर दी थी। पर तू आया और सिर्फ एक दिन रहा। बोला, “माँ, मीटिंग है।”

बेटा, माँ के पास मीटिंग नहीं होती, बस तेरा इंतज़ार होता है।

अब तू जब अगली बार गाँव आएगा, मैं नहीं मिलूंगी। मेरी ममता की छाँव नहीं होगी। लेकिन मेरी यादें होंगी, ये तस्वीरें होंगी, ये चिट्ठी होगी।

बस एक बात कहनी थी,
"बेटा, जब भी समय मिले, अपनों को याद कर लेना, वरना एक दिन समय रह जाएगा, लोग नहीं।”

— तेरी माँ”_


4. आत्मग्लानि
राहुल वो चिट्ठी बार-बार पढ़ रहा था। उसकी आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उसे हर वह पल याद आ रहा था जब माँ ने फोन किया और उसने “बाद में बात करता हूँ” कहकर फोन काट दिया।

उसे वह क्षण याद आ रहा था जब माँ ने कहा था, “बेटा, इस बार जन्मदिन यहीं मना ले,” और उसने कहा, “माँ, पार्टी होटल में है, मैं नहीं आ सकता।”

राहुल को अब समझ में आया कि माँ की ममता को उसने “बिज़ी लाइफ” के नाम पर पीछे छोड़ दिया था।

5. एक नई शुरुआत
राहुल ने शहर लौटने से पहले गाँव के स्कूल में जाकर घोषणा की — “अब से मैं हर साल अपनी माँ की याद में गाँव के बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाऊँगा।”

उसने माँ की तस्वीर को प्रणाम किया और कहा, “माँ, मैंने तुम्हें बहुत देर से समझा, लेकिन अब हर साल किसी माँ के बेटे को उसका सपना पूरा करने में मदद करूंगा।”


अंतिम शब्द

हम सब अपनी ज़िंदगी की दौड़ में इतने मशगूल हो जाते हैं कि अपनों के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाते। और जब उनकी आवाज़ें खामोश हो जाती हैं, तो सिर्फ यादें रह जाती हैं — और अफ़सोस।

तो आज ही अपने किसी अपने को फोन कर लो, एक बार कह दो — "माँ, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।"
क्योंकि ये शब्द जब तक कहे जाएँ, तब तक वो सुनने वाला ज़िंदा हो — यही बहुत बड़ी बात है।

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