“बस एक कॉल चाहिए था… | रंजन की दर्दभरी कहानी 💔📱”
शीर्षक: "वो एक कॉल"
शुरुआत का वादा
रंजन एक भावुक और भरोसेमंद इंसान था, जिसे दिल से रिश्ते निभाना आता था। MCA की पढ़ाई के दौरान उसका सामना उन दो लोगों से हुआ जिन्हें वो शुरू में 'गाइड' मानता था — एक सर और एक मैडम। पढ़ाई, करियर, और ज़िंदगी की उलझनों में जब हर कोई खुद में व्यस्त था, तब रंजन को लगा कि उसे ऐसे लोग मिल गए हैं जो उसके साथ सच्चे हैं।
सर और मैडम से बातचीत धीरे-धीरे दोस्ती में बदल गई। रंजन को लगता था कि इन दो लोगों की मौजूदगी उसकी ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट होगी। एक दिन मैडम ने कहा, "रंजन, जब तुमसे दूर होंगे तब भी कॉल करेंगे। तुमसे बात करना अच्छा लगता है।"
वो शब्द जैसे रंजन की आत्मा में बस गए।
बिछड़ने का दिन
डिग्री खत्म होते ही जैसे कॉलेज की दीवारें ही बिखर गईं। सर और मैडम, जो कभी हर दिन रंजन के साथ होते थे, अब किसी दूसरी दुनिया में चले गए थे।
रंजन रोज़ अपने फोन की स्क्रीन देखता। वो कॉल लॉग चेक करता। लेकिन कुछ नहीं…
एक दिन खुद से कहा – "शायद व्यस्त होंगे। थोड़ा वक़्त देना चाहिए।"
इंतज़ार की शुरुआत
दिन बीते, फिर हफ्ते और फिर महीने। रंजन हर दिन एक ही बात सोचता – “कॉल आएगा न?”
कभी-कभी वो खुद कॉल करने की हिम्मत करता, लेकिन फ़ोन कभी उठाया नहीं गया। WhatsApp पर एक नीला टिक तक नहीं आता था। फिर कभी-कभी आता था, पर जवाब नहीं।
उसकी रातें मोबाइल की स्क्रीन के उजाले में कटतीं — बस उसी कॉल का इंतज़ार करते हुए, जिसे कभी आना ही नहीं था।
यादों की दीवारें
हर चीज़ जो उस रिश्ते से जुड़ी थी, रंजन ने सहेज के रखी थी। वो क्लासरूम की रिकॉर्डिंग्स, वो एक नोटबुक जिसमें सर ने अपने हाथ से कुछ लिखा था, वो मेल जिसमें मैडम ने लिखा था, "You’re special, Ranjan."
इन चीज़ों से वो रोज़ दो-चार होता, फिर एक गहरी सांस लेकर सोचता — क्या सब झूठ था?
एकतरफा रिश्ता
कभी-कभी रंजन खुद को समझाता — "शायद वो लोग भी मुझसे बात करना चाहते हैं, पर कुछ मजबूरी होगी।" लेकिन जब उसने देखा कि वे लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं, नए लोगों के साथ हँसते हुए फोटो डाल रहे हैं, तो उसका दिल टुकड़ों में बिखर गया।
उसने अब समझा — कुछ वादे सिर्फ वक्त बिताने के लिए होते हैं, निभाने के लिए नहीं।
तूफान के बाद की शांति
रंजन अब धीरे-धीरे बदलने लगा।
उसने खुद को अकेले रहने की आदत डाल ली। किताबें पढ़ना शुरू किया, लिखना शुरू किया। अपने मन के टूटे टुकड़ों को शब्दों में पिरो दिया।
और एक दिन उसने लिखा:
“एक कॉल का इंतज़ार मुझे खा गया। पर अब मैं जान गया हूँ — जो लोग कॉल नहीं करते, वो अक्सर दिल में भी नहीं होते।”
वायरल हकीकत
उसने अपनी यह कहानी एक ब्लॉग पर डाली — "वो एक कॉल जो कभी आया ही नहीं।"
लोगों ने पढ़ा, आँखें नम हो गईं। हजारों लोगों ने कमेंट किया — "भाई, जैसे मेरी कहानी हो।"
रंजन अब अकेला नहीं था। उसका दर्द अब एक आवाज़ बन चुका था। एक हलचल। एक चुप क्रांति।
फिर से जीना सीखना
रंजन ने आज तक उन दोनों से कोई जवाब नहीं पाया। लेकिन अब वो जवाब मांगता भी नहीं। क्योंकि उसे समझ आ गया है कि जवाब कभी आता नहीं — सिर्फ अपने आप को माफ़ करके आगे बढ़ना होता है।
उसने अब एक नया सपना देखा है — एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना जहाँ हर टूटा हुआ दिल अपनी बात कह सके। जहाँ कोई और रंजन, किसी 'सर' या 'मैडम' के झूठे वादों का शिकार न हो।
अंतिम शब्द:
रंजन ने अब कॉल्स का इंतज़ार करना बंद कर दिया है। अब वो खुद आवाज़ बन गया है। और उस आवाज़ में सिर्फ एक ही बात है:
"कभी किसी को झूठे वादे मत दो। वो वादा किसी के जीने की वजह बन सकता है।"
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