(शीर्षक): मुझे नहीं पता मैं कैसे जीतूंगा – एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी
कहानी का शीर्षक: "मैं हारने वालों में से नहीं हूँ"
प्रस्तावना:
"मुझे नहीं पता मैं कैसे जीतूंगा, बस मुझे ये पता है मैं हारने वालों में से तो नहीं हूं।"
यह वाक्य सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक जिद, एक आग, एक आत्म-विश्वास है जो हर उस इंसान के भीतर जलता है जो हालातों से लड़ रहा होता है। यह कहानी है अर्जुन की — एक छोटे से गांव से निकलकर बड़े सपनों को जीने चला एक ऐसा युवा, जिसने बार-बार हार देखी, लेकिन हार कबूल नहीं की।
अध्याय 1: एक छोटे गांव की बड़ी सोच
अर्जुन बिहार के एक छोटे से गांव 'धनपुर' का रहने वाला था। उसके पिता खेतों में मजदूरी करते थे और मां घरों में काम।
गांव में एक कहावत प्रचलित थी — "हमारे बच्चों का नसीब खेत और खलिहान है।" लेकिन अर्जुन के सपने कुछ और थे। वह इंजीनियर बनना चाहता था। स्कूल में वो औसत छात्र था, लेकिन उसके सपने और आत्मविश्वास असाधारण थे।
हर शाम वह छत पर बैठकर आसमान को देखता और खुद से कहता:
"मुझे नहीं पता मैं कैसे जीतूंगा, लेकिन मैं हारने वालों में से नहीं हूँ।"
अध्याय 2: संघर्षों की शुरुआत
बारहवीं कक्षा में अर्जुन फेल हो गया। गांव वालों ने ताना मारा:
"अब तो खेत ही जोतेगा। बहुत बड़े-बड़े सपने देख रहा था।"
मां रो पड़ी, लेकिन अर्जुन की आंखों में आंसू नहीं थे। वो बोला:
"मैं फिर से दूंगा परीक्षा, लेकिन हार मानने वालों में नहीं हूँ।"
अर्जुन ने अगले साल दोबारा मेहनत की और 65% से पास हुआ। यह सामान्य अंक थे, लेकिन उसके लिए ये जंग जीतने जैसा था।
अध्याय 3: शहर की ओर रुख
पटना जाकर उसने इंजीनियरिंग की तैयारी शुरू की। किराए के छोटे से कमरे में, आधी रात तक पढ़ाई करता। कभी खाना नसीब नहीं होता, कभी बिजली नहीं होती। लेकिन वो अपने लक्ष्य से डिगा नहीं।
वो हर कठिन समय में आईने में देख कर खुद से कहता:
"तू थक सकता है, लेकिन रुक नहीं सकता।"
अध्याय 4: असफलताओं की बारिश
पहले साल में उसने JEE का एग्जाम दिया और फेल हो गया।
दूसरे साल दोबारा दिया — फिर फेल।
तीसरे साल उसने परीक्षा दी और इस बार उसका नंबर आया लेकिन किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिला।
लोग हँसते रहे, मां-पिता की उम्मीदें डगमगाई, लेकिन अर्जुन अब भी वही वाक्य दोहराता:
"मैं हारने वालों में से नहीं हूँ।"
अध्याय 5: उम्मीद की किरण
चौथे प्रयास में अर्जुन को एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश मिला। कॉलेज में वह फिर से संघर्ष में पड़ा — अंग्रेजी कमजोर थी, लैपटॉप नहीं था, नोट्स नहीं मिलते थे। लेकिन उसने हार नहीं मानी।
वो रात-रात भर दूसरों के लैपटॉप पर कोडिंग सीखता, यूट्यूब पर वीडियो देखता और रजिस्टर में नोट्स बनाता।
अध्याय 6: पहला ब्रेक
चौथे साल में एक स्टार्टअप कंपनी ने कॉलेज आकर इंटरव्यू लिया। अर्जुन का सिलेक्शन हो गया।
पैकेज ज्यादा नहीं था, लेकिन पहली बार अर्जुन ने खुद को साबित किया।
वह खुद से बोला:
"देख अर्जुन, तू जीत गया। तू सच में हारने वालों में से नहीं है।"
अध्याय 7: आज का अर्जुन
आज अर्जुन एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। हर बार जब वह नया चैलेंज लेता है, तो वही पुराना वाक्य दोहराता है:
"मुझे नहीं पता मैं कैसे जीतूंगा, लेकिन मैं हारने वालों में से नहीं हूँ।"
निष्कर्ष:
हम सभी के जीवन में अर्जुन जैसा संघर्ष होता है। कभी परीक्षा में हार, कभी रिश्तों में टूटन, कभी समाज के तानों की चोट — लेकिन याद रखना:
"अगर इरादा मजबूत हो, तो रास्ते खुद बनते हैं। और अगर आत्मविश्वास हो, तो जीत ज़रूर मिलती है।"
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