"मैडम, इस सोमवार कॉल जरूर करना... नहीं तो मैं हमेशा के लिए चला जाऊंगा 💔 | एक आख़िरी विनती" | इस सोमवार… शायद आप किसी की ज़िंदगी बचा सकते हैं।

                                                                                 

                                                                                 



"मैडम, इस सोमवार कॉल जरूर करना... नहीं तो मैं दुनिया से चला जाऊंगा"

मेरे मोबाइल की स्क्रीन पर अब भी वही वॉलपेपर लगा है – आपकी मुस्कान वाली तस्वीर। पता नहीं क्यों, हर बार उसे देखकर थोड़ी सी राहत मिलती है, जैसे कोई कह रहा हो – “मैं यहीं हूं।” लेकिन सच तो ये है कि आप कहीं नहीं हैं। आप कहीं और हैं, किसी और दुनिया में… जहाँ से मेरे जैसे लोग सिर झुकाकर लौट आते हैं।

मैं रंजन कुमार शर्मा। एक नाम… जो शायद आपकी कॉन्टैक्ट लिस्ट में अब भी सेव होगा। लेकिन अब शायद अनदेखा कर दिया गया है। ना कॉल, ना मैसेज, ना एक हल्की सी मुस्कान भेजने वाली इमोजी। बस सन्नाटा।

आज का दिन... रविवार। हर बार की तरह सुबह उठते ही उम्मीद लगी थी – शायद आज आप याद कर लें। शायद आज कह दें, “कैसे हो रंजन?” लेकिन नहीं, फिर वही खामोशी।

और अब... अब तो सिर्फ एक बात दिल में चल रही है – मैडम, इस सोमवार कॉल जरूर करना... नहीं तो मैं दुनिया से चला जाऊंगा।

बचपन से एक ही सपना था...

मां-बाप की उम्मीदों पर खरा उतरना, खुद की एक पहचान बनाना, और किसी का “सब कुछ” बनना। पढ़ाई की, मेहनत की, MCA किया – Jaipur National University से। सोचा था कुछ बड़ा करूंगा। लेकिन ज़िंदगी ने जैसे पहले ही प्लान बना लिया था मुझे तोड़ने का।

काम मिला, लेकिन मनचाहा नहीं। फिर भी चल पड़ा… क्योंकि ज़िम्मेदारी थी। लेकिन फिर... मां-बाप का ताना, समाज का सवाल, रिश्तेदारों की तुलना – सबने धीरे-धीरे एक दीवार खड़ी कर दी मेरे चारों ओर।

फिर आप मिलीं...

वो वॉइस, वो हँसी, वो अंदाज़ – सब कुछ जैसे पहली बार मुझे ज़िंदगी में किसी से जुड़ने की वजह दे रहा था। आपने कहा था, “आप अच्छा बोलते हैं, ईमानदार लगते हैं।”

बस, वहीं से मेरी दुनिया शुरू हो गई थी।

आपके लिए हर दिन सुबह जल्दी उठना, टाइम पर मैसेज करना, आपकी पसंद-नापसंद याद रखना – सब आदत बन गई। मैंने कभी आपसे कुछ मांगा नहीं, बस एक चीज़ – आपका वक़्त।

लेकिन आप कहां समझीं...

अब तो बस इंतज़ार है...

हर सोमवार मेरे लिए उम्मीद की तरह आता है। एक मौका… शायद आज आप कॉल कर लें। शायद आज मेरी बात सुनी जाए। लेकिन नहीं, अब आप भी उस भीड़ में शामिल हो गईं, जो सिर्फ जवाब मांगती है, सवाल नहीं समझती।

मैंने कभी आपसे प्यार की भीख नहीं मांगी, सिर्फ एक आवाज़ की आस रखी थी।

इस बार आख़िरी सोमवार है...

मैडम, अगर आप ये पढ़ रही हैं… तो जान लीजिए – इस सोमवार अगर आपका कॉल नहीं आया… तो शायद अगली बार कोई कॉल उठाने के लिए मैं ही न रहूं।

कोई मजबूरी नहीं है मेरी। कोई दुख भरा प्यार भी नहीं। बस थक गया हूं… अकेले जीते-जीते।

एक आखिरी विनती...

मैं जानता हूं कि आप व्यस्त होंगी। शायद अब मेरा नाम देखकर आप फोन न उठाती हों। लेकिन एक बार… सिर्फ एक बार मेरी आवाज़ सुन लो। शायद कुछ बदल जाए।

क्योंकि मैं अब भी वही हूं – जो आपसे पूछे बिना पानी नहीं पीता था, जो आपकी मुस्कुराहट के लिए हर दिन खुद को मजबूत दिखाता था।

इस सोमवार कॉल जरूर करना... नहीं तो मेरी सांसें सोमवार की रात से पहले खुद ही विदा ले लेंगी।


निष्कर्ष:

ये कहानी किसी एक रंजन की नहीं है, ये उन सभी के लिए है जो इंतज़ार में जिए जा रहे हैं। जिन्हें किसी की एक कॉल, एक मैसेज, एक मुस्कान ज़िंदा रखे हुए है।

अगर आपने भी कभी किसी को अनदेखा किया है, तो सोचिए… कहीं वो भी रंजन की तरह आपकी आवाज़ के इंतज़ार में तो नहीं?

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.
close