गरीबी और अकेलेपन की दिल छू लेने वाली सच्ची हिंदी कहानी

 

                                                     

                                                                                    

                                                                   

                📖 क्या होगा मेरा इस दुनिया में, जब कोई नहीं है मेरा?

                                    (एक सच्ची कहानी गरीबी, भुखमरी और अकेलेपन की)


🧑‍🦱 मुख्य पात्र:

राजू – एक गरीब युवक जो जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष करता है। बचपन में मां-बाप को खो दिया, समाज से उपेक्षित, भूख और तिरस्कार में पलता रहा।


भाग 1: बचपन की काली रातें

राजू का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। उसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे और मां घरों में झाड़ू-पोंछा करती थीं। उनके झोपड़े में कभी भरपेट खाना नहीं बनता था। लेकिन मां के चेहरे पर हमेशा मुस्कान होती थी।

एक दिन पिता ईंट-भट्टे पर काम करते वक्त नीचे गिर गए और वहीं चल बसे। मां ने रो-रोकर अपने आंसू सुखा लिए। “राजू का क्या होगा,” ये सोच-सोचकर वो बीमार रहने लगीं।

कुछ ही महीने बाद भूख और बीमारी से मां भी इस दुनिया को अलविदा कह गईं।

अब राजू अनाथ था।


भाग 2: दर-ब-दर की ठोकरें

राजू को गांव वालों ने दया करके एक अनाथालय भिजवा दिया। लेकिन वहां भी ज़िंदगी आसान नहीं थी। हर बात पर डांट, गाली और मार मिलती। खाने में आधी जली रोटियां, और पहनने को फटी हुई कमीज़।

एक रात भूख इतनी लगी कि उसने कूड़ेदान से बासी ब्रेड निकालकर खा ली। उस वक्त उसे पहली बार समझ में आया कि भुखमरी सिर्फ शरीर को नहीं, आत्मा को भी घायल करती है।


भाग 3: सपनों की चिंगारी

राजू पढ़ने में अच्छा था। उसने ठान लिया कि चाहे जो हो, कुछ बड़ा बनकर दिखाएगा। अनाथालय में रहकर ही उसने 10वीं और 12वीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की।

वह कॉलेज में दाखिला लेना चाहता था, लेकिन फीस नहीं थी। उसने मजदूरी करना शुरू कर दिया – दिन में ईंट ढोता और रात में पढ़ता।

कुछ लोग उसका मज़ाक उड़ाते, “ये तो भिखारी है, कॉलेज क्या जाएगा!”

पर राजू ने हार नहीं मानी।


भाग 4: शहर की बेरहम सड़कें

राजू को जैसे-तैसे शहर के एक सरकारी कॉलेज में दाखिला मिल गया। पर वहां रहने और खाने के पैसे नहीं थे। वह बस स्टैंड के पास फुटपाथ पर सोता, और मंदिरों से बासी खाना खाता।

एक दिन भूख से बेहाल होकर वह बेहोश हो गया। जब होश आया, तो एक सज्जन उसे हॉस्पिटल ले गए।

डॉक्टर ने कहा, “अगर समय रहते खाना न मिला होता, तो ये मर जाता।”


भाग 5: आत्मसम्मान बनाम भूख

हॉस्पिटल से निकलते ही राजू ने तय किया कि अब किसी पर बोझ नहीं बनेगा। वह हर काम करता – चाय दुकान, अखबार बांटना, और लोगों के कपड़े धोना तक।

लेकिन फिर भी, कभी-कभी उसे सड़क किनारे बैठकर रोना पड़ता – “भगवान! क्यों दिया ऐसा जीवन?”


भाग 6: अकेलेपन की आवाज

राजू के पास कोई दोस्त नहीं था। जब सब अपने परिवार से बात करते थे, राजू बस छत को देखता।

उसे लगता, “मेरी कोई चिंता क्यों नहीं करता? क्या मैं सिर्फ सांस लेने के लिए हूं इस दुनिया में?”

अकेलेपन की आवाज़ अब चीख बन चुकी थी।


भाग 7: आखिरी उम्मीद

एक दिन राजू ने सोशल मीडिया पर अपनी कहानी पोस्ट की। कुछ लोगों ने उसे प्रेरित किया, और कुछ ने मज़ाक उड़ाया।

पर उसी पोस्ट को देखकर एक NGO ने उससे संपर्क किया। उन्होंने राजू को एक स्कॉलरशिप दी जिससे वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सका।


भाग 8: फिर से जीने की चाह

राजू ने MCA पूरी की और खुद की एक ऐप डेवलप की। उसने कहा, “अब मैं दूसरों के लिए वो करूंगा जो मेरे लिए कोई नहीं कर पाया।”

वह अब भूखों को खाना खिलाता है, और अनाथ बच्चों की पढ़ाई में मदद करता है।


अंतिम पंक्तियाँ:

"कभी सोचा नहीं था कि मेरा नाम कोई गर्व से लेगा, लेकिन मैंने अपना भाग्य खुद लिखा। आज भी दिल में अकेलापन है, लेकिन अब मैं किसी और का सहारा हूं।"



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