"मोबाइल की आख़िरी घंटी – एक सच्ची और रुला देने वाली कहानी"

 

                                                                                


📱 "मोबाइल की आख़िरी घंटी" – एक भावनात्मक कहानी

लेखक: (आप अपना नाम यहाँ डाल सकते हैं)


भाग 1: एक छोटा सपना

"पापा, मेरे क्लास में सबके पास स्मार्टफोन है... मैं भी एक मोबाइल चाहता हूँ।"
12 साल का आरव अपने पिता सुरेश से यह बात हर दिन कहता था। सुरेश, एक मामूली दर्जी, रोज़ सुबह 9 बजे अपनी सिलाई मशीन उठाकर शहर के कोने पर बनी छोटी सी दुकान पर बैठ जाता था। उनका सपना था कि उनके बच्चों को कभी वो अभाव ना झेलना पड़े जो उन्होंने झेले।

लेकिन मोबाइल? एक स्मार्टफोन? वो भी इतने महंगे ज़माने में? सुरेश की आँखों में लाचारी और दिल में दर्द था।

"बेटा, अभी तो पढ़ाई कर, मोबाइल से क्या करेगा?"

आरव चुप हो जाता, लेकिन उसकी आँखों में एक उम्मीद फिर भी रहती — शायद किसी दिन पापा मना नहीं करेंगे।

भाग 2: एक पुराना मोबाइल और नई खुशी

एक दिन सुरेश की दुकान पर एक अमीर ग्राहक आया, जो अपने पुराने फोन को बदलवा रहा था।

"भाईसाब, ये पुराना फोन रख लो, अब मेरे किसी काम का नहीं है।"

सुरेश ने कांपते हाथों से वो मोबाइल लिया, स्क्रीन टूटी हुई थी, बटन ढीले थे — लेकिन चालू था।

उसी रात सुरेश ने मोबाइल साफ़ किया, नए कवर में डाला और आरव को गिफ्ट किया।
"ये लो बेटा, तुम्हारा मोबाइल..."

आरव की आँखों में चमक थी। भले ही पुराना था, लेकिन उसके लिए यह किसी खजाने से कम नहीं था। वो हर दिन स्कूल से आकर उस मोबाइल पर गाने सुनता, गेम खेलता और यूट्यूब से पढ़ाई करता।

भाग 3: दोस्ती, यूट्यूब और सपने

मोबाइल ने आरव को एक नई दुनिया दिखाई। उसने यूट्यूब पर एक एजुकेशनल चैनल बनाना शुरू किया – “पढ़ो इंडिया”. उसका सपना था कि गरीब बच्चों तक मुफ्त में अच्छी पढ़ाई पहुंचे।

धीरे-धीरे उसके वीडियो वायरल होने लगे। एक दिन उसका वीडियो, जिसमें उसने “बिना किताब के पढ़ने का तरीका” बताया था, एक लाख लोगों ने देखा। वह रो पड़ा।

"पापा, आपने जो मुझे दिया था, वो मोबाइल नहीं, एक सपना था।"

सुरेश की आँखें नम हो गईं।
"मुझे नहीं पता था कि वो टूटा मोबाइल किसी का भविष्य जोड़ देगा।"

भाग 4: बीमारी, हॉस्पिटल और एक आख़िरी रिकॉर्डिंग

एक दिन आरव को बुखार हुआ, जो धीरे-धीरे खतरनाक होता गया। डॉक्टरों ने कहा, "उसके शरीर में एक दुर्लभ बीमारी है, इलाज महंगा है..."

सुरेश ने सब कुछ बेच दिया — सिलाई मशीन, दुकान, यहाँ तक कि घर के बर्तन तक। लेकिन पैसों की कमी फिर भी थी।

आरव को जब पता चला, उसने मोबाइल उठाया और एक वीडियो रिकॉर्ड किया:

"अगर मैं नहीं रहा, तो मेरी इस वीडियो को सब तक पहुँचाना। ये मेरे जैसे बच्चों की आवाज़ है।"

उसने एक आखिरी लाइन कही:
"मोबाइल सिर्फ खेलने का साधन नहीं है... इससे ज़िंदगियाँ बदल सकती हैं।"

भाग 5: मौत, वायरल वीडियो और चमत्कार

आरव का वो वीडियो वायरल हो गया। देश भर से लोग मदद के लिए आगे आए। लेकिन देर हो चुकी थी। हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे-लेटे ही आरव ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

उसके जाते ही मोबाइल की स्क्रीन हमेशा के लिए काली हो गई।

लेकिन उसका संदेश अमर हो गया।

भाग 6: आरव का सपना – एक ट्रस्ट की शुरुआत

सुरेश ने बेटे के नाम पर एक ट्रस्ट खोला – “आरव एजुकेशन ट्रस्ट” – जो हज़ारों गरीब बच्चों को पढ़ाई का सामान और मोबाइल मुहैया कराता है।

हर साल 14 नवंबर को, आरव की याद में एक यूट्यूब लाइव सेशन होता है, जिसमें उसकी आख़िरी वीडियो चलाई जाती है।

💔 अंतिम पंक्तियाँ:

"मोबाइल एक मशीन नहीं, एक माध्यम है — सपने देखने का, उन्हें जीने का, और दूसरों को प्रेरित करने का। आरव चला गया, लेकिन वो हर मोबाइल में ज़िंदा है जो किसी की दुनिया रोशन करता है।"


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