"बस 2 दिन बाकी हैं कॉल के लिए – एक कॉल जिसने दो दिलों की ज़िंदगी बदल दी | इमोशनल लव स्टोरी"
कहानी का शीर्षक: "सोमवार का कॉल"
1. शुरुआत – अनकहे जज़्बात
रात के दो बजे थे, नींद आँखों से कोसों दूर थी। दीपक बार-बार मोबाइल की स्क्रीन देखता—कहीं वो 'कॉल' आ ही न जाए जिसका उसे दो हफ्तों से इंतज़ार था। मगर स्क्रीन पर वही सन्नाटा, वही खामोशी। उसे वो आखिरी मैसेज याद आ रहा था—
"बस 2 दिन रह गए हैं आपके कॉल करने के लिए, सोमवार को आपको कॉल करना ही होगा किसी भी हालत में।"
वो मैसेज सीमा का था। उसकी सीमा… जो अब शायद उसकी नहीं रही।
2. कॉलेज का पहला दिन
दीपक और सीमा की मुलाकात पहली बार MCA कॉलेज के पहले दिन हुई थी। सीमा शांत थी, लेकिन उसकी आंखों में गहराई थी। दीपक के अंदर कुछ तो बदल गया था जब पहली बार उसकी आंखों में देखा था। दोस्ती शुरू हुई, फिर बातें बढ़ीं, और फिर एक-दूसरे की आदत बन गए।
एक दिन सीमा ने कहा—
"दीपक, तुमसे बात न हो तो दिन अधूरा लगता है।"
और दीपक ने मुस्कुराकर कहा—
"तो फिर हर दिन पूरा रखने की जिम्मेदारी मेरी है।"
3. प्यार और दूरियाँ
तीन साल की पढ़ाई खत्म होते-होते दोनों ने अपने प्यार को नाम दे दिया था। मगर घरवालों को बताना आसान नहीं था, खासकर सीमा के लिए। उसका परिवार रूढ़िवादी था। जात-पात की दीवारें इतनी ऊँची थीं कि उसे तोड़ने के लिए सीमा को भी खुद को तोड़ना पड़ता।
फिर एक दिन सीमा ने कहा—
"दीपक, मुझसे वादा करो… अगर कभी मैं कुछ कहूं, तो बिना सवाल किए बस कर देना।"
दीपक ने बिना हिचक कहा—
"तेरे लिए जान भी दे सकता हूं।"
4. वो आखिरी मुलाकात
कुछ हफ्ते बाद सीमा ने कहा—
"मुझे एक महीना दो, सब ठीक कर लूंगी। लेकिन अगर कुछ गलत हो गया तो सोमवार को कॉल करना... किसी भी हालत में। बस दो दिन रह जाएंगे उस दिन के लिए।"
दीपक कुछ समझ नहीं पाया लेकिन वादा कर लिया।
फिर सीमा गायब हो गई। फोन बंद, सोशल मीडिया से गायब, कोई खबर नहीं। और अब, सिर्फ एक मैसेज बचा था—वही सोमवार का कॉल।
5. सवालों से घिरा दीपक
दीपक हर पल खुद से लड़ रहा था—
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क्या सीमा ने खुद को किसी मुसीबत में डाल दिया?
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क्या वो किसी जबरदस्ती के रिश्ते में बांधी जा रही है?
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या फिर… वो चली गई… हमेशा के लिए?
वो हर दरवाज़े पर गया—कॉलेज के दोस्तों से लेकर सीमा के मोहल्ले तक, मगर कोई जवाब नहीं मिला। हर कोई कहता, "सीमा अब किसी की नहीं रही।"
6. रविवार की रात
अब सिर्फ कुछ घंटे बचे थे सोमवार के आने में। दीपक ने फोन चार्ज किया, नेटवर्क चेक किया, खुद को तैयार किया—उस कॉल के लिए जो उसकी दुनिया बदल सकती थी।
वो पूरी रात जागता रहा, हर सेकंड बीतना भारी लग रहा था। उसने एक चिट्ठी भी लिख ली थी, शायद सीमा के लिए, शायद खुद के लिए…
“अगर तू नहीं मिली, तो शायद मैं भी खुद को ना संभाल पाऊं। लेकिन उस कॉल का इंतजार करूंगा, जैसे कोई सांस आखिरी कश तक थमी हो।”
7. सोमवार की सुबह
सुबह के 8 बजे थे। फोन अब भी खामोश था। 9 बजे... 10 बजे… दोपहर 12 बजे… और फिर शाम 4 बजे…
दीपक की आंखों में आस थी, मगर अब वो भी बुझने लगी थी।
और फिर...
4:37 PM – कॉल आया।
सीमा का नाम स्क्रीन पर चमका।
दिल रुक गया था दीपक का… कांपते हाथों से उसने कॉल उठाया।
“दीपक…”
उस आवाज़ ने दीपक को तोड़ दिया। वह रो पड़ा—
"कहाँ थी तू? क्या हो गया था? क्यों गई थी?"
सीमा की आवाज़ धीमी थी—
"दीपक… मैंने तुम्हें बचाने के लिए खुद को खो दिया। मेरे घरवालों ने जबरदस्ती मेरी शादी तय कर दी थी। मैंने मना किया, भागने का सोचा, लेकिन माँ की आँखें देख नहीं पाई।"
"सोमवार को मेरी शादी थी, लेकिन मैं नहीं कर पाई। आज मैं घर छोड़ आई हूं… सिर्फ तेरे कॉल का इंतजार था… तेरी आवाज सुननी थी ताकि खुद को सही साबित कर सकूं…"
8. नई शुरुआत
दीपक ने बिना एक पल गवाएं कहा—
"मैं अभी आ रहा हूं। तू जहाँ है, वहाँ रह, अब मैं कोई वादा नहीं, फैसला लेने आया हूं।"
सीमा फूट-फूट कर रोने लगी। उसने कहा—
"बस तू आ जा दीपक… अब मुझे कोई डर नहीं।"
उस दिन सोमवार की शाम को एक नया सूरज निकला था… सीमा और दीपक के लिए। वो कॉल सिर्फ एक कॉल नहीं था, बल्कि उनकी ज़िंदगी की नई शुरुआत थी।
कहानी से सीख:
कभी-कभी एक कॉल, एक वादा, या एक इंतजार... हमारी पूरी ज़िंदगी बदल सकता है। प्यार अगर सच्चा हो, तो रास्ते चाहे जितने भी मुश्किल हों, मंज़िल हमेशा मिलती है।
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