माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की कथा
माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की कथा
बहुत समय पहले, जब देवताओं का स्वर्गलोक में निवास था, वहाँ देवी लक्ष्मी को संसार की समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी के रूप में पूजा जाता था। उनकी पूजा हर घर में होती थी, और लोग उन्हें अपने घर में सुख-समृद्धि के लिए आमंत्रित करते थे। लक्ष्मीजी को अपने सौंदर्य, ऐश्वर्य और शक्ति पर गर्व था, लेकिन इस गर्व ने धीरे-धीरे उनके मन में अहंकार को जन्म दिया। उन्हें लगने लगा कि उनके बिना किसी का काम नहीं चलता और वे ही सभी को धन और वैभव प्रदान करने वाली हैं।
एक दिन, नारद मुनि स्वर्गलोक में आए और देवी लक्ष्मी से मिलने पहुँचे। नारद मुनि ने देखा कि लक्ष्मीजी अहंकार में भरी हुई हैं और सोच रही हैं कि सृष्टि का सारा ऐश्वर्य उन्हीं के कारण है। नारद मुनि ने सोचा कि देवी लक्ष्मी को यह समझाना आवश्यक है कि कोई भी अकेले में पूर्ण नहीं होता और सभी को संतुलन के लिए अन्य शक्तियों का सहारा चाहिए। उन्होंने लक्ष्मीजी से कहा, "देवी, आप इस सृष्टि में सबसे संपन्न और ऐश्वर्यशाली हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आपके इस ऐश्वर्य का वास्तविक सार क्या है?"
लक्ष्मीजी ने उत्तर दिया, "नारद मुनि, मैं सृष्टि की संपत्ति हूँ, और मेरे बिना किसी का जीवन सफल नहीं हो सकता। लोग मेरी पूजा करते हैं ताकि मैं उनके घरों में सुख-समृद्धि ला सकूँ। मेरे बिना किसी का ऐश्वर्य पूर्ण नहीं हो सकता।" नारद मुनि मुस्कुराए और बोले, "देवी, आपकी बात सत्य है, लेकिन एक बात याद रखें कि केवल संपत्ति से ही किसी का जीवन सुखमय नहीं बनता। सच्चा सुख और शांति केवल तभी संभव है जब आपके साथ ज्ञान, बुद्धि और सिद्धि भी हो।"
लक्ष्मीजी को यह बात समझ नहीं आई और उन्होंने कहा, "मुनिवर, मेरी शक्ति अपार है, और मैं सृष्टि में सबकी आराध्य हूँ। मुझे किसी और के सहारे की आवश्यकता नहीं।" तब नारद मुनि ने एक उपाय सोचा और माँ लक्ष्मी से कहा, "अगर ऐसा है, तो आप भगवान विष्णु के पास जाएँ और उनसे अपने वास्तविक स्थान और उद्देश्य के बारे में पूछें। शायद वे आपको इस पर अधिक रोशनी डाल सकें।"
लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के पास गईं और उनसे कहा, "भगवान, मुझमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य और शक्ति है। लेकिन नारद मुनि ने कहा है कि मुझे किसी अन्य देवता का सहारा लेना चाहिए। क्या यह सच है?" भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले, "प्रिये लक्ष्मी, तुम्हारा ऐश्वर्य और सम्पत्ति तभी पूर्ण हो सकते हैं जब ज्ञान, शांति और सिद्धि भी तुम्हारे साथ हों। और इन सभी का प्रतीक गणेश हैं। गणेश को समृद्धि और बुद्धि का स्वामी माना जाता है। जब तक गणेश तुम्हारे साथ नहीं हैं, तब तक तुम्हारी पूजा अधूरी मानी जाएगी।"
लक्ष्मीजी को यह बात समझ में आई और उन्होंने सोचा कि अपने ऐश्वर्य को संतुलित करने के लिए उन्हें भगवान गणेश को अपने साथ रखना होगा। तब लक्ष्मीजी ने भगवान गणेश के पास जाकर उनसे अनुरोध किया, "हे गणेशजी, क्या आप मेरी पूजा के साथ सहायक बन सकते हैं? मैं चाहती हूँ कि जहाँ भी मेरी पूजा हो, वहाँ आपकी भी पूजा हो, ताकि वहाँ समृद्धि के साथ-साथ बुद्धि और शांति भी बनी रहे।"
भगवान गणेश ने माँ लक्ष्मी का अनुरोध स्वीकार किया और कहा, "हे देवी, मैं आपकी बात मानता हूँ। जहाँ भी आपकी पूजा होगी, वहाँ मैं भी रहूँगा।" तब से यह परंपरा बन गई कि माँ लक्ष्मी की पूजा भगवान गणेश के बिना अधूरी मानी जाती है। दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है, ताकि घर में धन के साथ-साथ सुख, शांति और समृद्धि भी बनी रहे।
इस तरह माँ लक्ष्मी ने समझा कि उनके ऐश्वर्य का असली अर्थ तभी पूर्ण होता है जब उसके साथ संतुलन में बुद्धि और ज्ञान भी हो। इस कथा से यह सन्देश मिलता है कि धन की असली महत्ता तभी है जब उसके साथ सद्बुद्धि, शांति और संतुलन भी हो। तभी व्यक्ति का जीवन सुखमय और सफल हो सकता है।
Post a Comment