मोहित का अनोखा सफर: जब चप्पल ने दी धोखा


                                                                                

                                                                                    



मोहित का अनोखा सफर: जब चप्पल ने दी धोखा

मोहित, एक छोटे से गाँव का लड़का, हमेशा अपनी विचित्र आदतों और बेपरवाह हरकतों के लिए मशहूर था। उसकी एक खास आदत थी – हर बार जब वह कहीं जाता, तो उसकी चप्पल उसके साथ नहीं रहती। हां, आपने सही सुना! उसकी चप्पलें उससे रूठी हुई लगती थीं।

एक दिन मोहित ने सोचा कि उसे शहर जाकर नई चप्पल खरीदनी चाहिए, क्योंकि उसकी पुरानी चप्पलें हमेशा बीच रास्ते में उसे धोखा दे देती थीं। उसने पक्का किया कि इस बार वह ऐसी चप्पल खरीदेगा जो उसके साथ पूरा सफर तय करेंगी।

तो, मोहित निकला शहर की ओर, अपनी पुरानी चप्पलों के साथ। जैसे ही वह गाँव के रास्ते पर चला, पहले पाँच मिनट में ही उसकी एक चप्पल ने उसे बीच रास्ते में छोड़ दिया। “अरे यार, फिर से?” मोहित ने चप्पल को घूरते हुए कहा, जैसे वह उससे बातचीत करने वाला हो।

खैर, वह उसे उठाकर वापस पहन लेता है और आगे बढ़ता है। लेकिन थोड़ी ही देर में दूसरी चप्पल भी जवाब दे देती है। अब मोहित सोचता है, "शहर तक कैसे पहुंचूंगा अगर ये दोनों चप्पलें मेरे साथ भाग नहीं लेंगी?"

फिर उसे एक अजीब ख्याल आता है। उसने चप्पलें उठाकर अपने कंधे पर रख लीं और नंगे पांव शहर की तरफ चलने लगा। गाँव के लोग उसे देखकर हैरान थे, कुछ हंसी दबाते हुए बोले, "अरे मोहित, चप्पलें पैर में पहनने के लिए होती हैं, कंधे पर नहीं!"

मोहित ने हंसते हुए जवाब दिया, "अरे भाई, जब ये साथ नहीं चलतीं, तो कंधे पर बिठाकर ले जा रहा हूँ, जैसे बिठाई हुई सवारी!"

शहर पहुंचने पर, मोहित ने नई चप्पल खरीदीं। दुकानदार ने उसे सलाह दी, "भाई, ये चप्पलें बहुत मजबूत हैं, चाहे जितना भी चल लो, ये कभी साथ नहीं छोड़ेंगी।"

मोहित बहुत खुश हुआ। लेकिन जैसे ही वह बाहर निकला, नई चप्पलों ने भी उसके पैर को ऐसे घूरा जैसे वह कह रही हों, "तू अकेला ही बेहतर है, हमसे उम्मीद मत रख!"

मोहित ने हंसते हुए फिर से अपनी चप्पलें उतारीं और उन्हें कंधे पर टांग लिया। अब वह गर्व से नंगे पांव वापस अपने गाँव की तरफ चल दिया, सोचते हुए, "शायद मेरे पैर ही सबसे बेहतरीन चप्पल हैं!"

गाँव पहुंचने पर सबने देखा कि मोहित फिर से बिना चप्पल के आया है। इस बार लोगों ने उसे देखकर और जोर से हंसना शुरू कर दिया, और मोहित ने भी खुद को हंसते हुए पाया। उसने सोचा, "क्या फर्क पड़ता है, चप्पलें हों या न हों, सफर तो अपना मज़ेदार ही रहेगा!"

सीख: कभी-कभी जिंदगी में सबसे आसान समाधान हमारे पैरों के नीचे होता है, बस हमें उसे पहचानने की ज़रूरत होती है।

इस मजेदार कहानी से मोहित ने ये जाना कि सफर का असली मजा साथ चलने वालों में नहीं, बल्कि आपके खुद के हौसले में होता है।

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