अलविदा की सुबह

                                                                                    


अलविदा की सुबह

सुबह की किरने धीरे-धीरे कमरे में दाखिल हो रही थीं। सूरज की पहली किरणें आकर दीवारों को रंगीन कर रही थीं, लेकिन छोटी रेखा के दिल में एक गहरी छाया थी। रेखा, एक प्यारी सी नौजवान लड़की, अपनी बीमार दादी के पास बैठी हुई थी। उसकी दादी, सुमित्रा, अब जीवन के अंतिम क्षणों में थीं। सुमित्रा के चेहरे पर एक शांति थी, लेकिन रेखा के दिल में एक गहरी चिंता और दुख था।

रेखा की दादी सुमित्रा उसकी दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत थीं। उन्होंने रेखा को बचपन से ही पाल-पोसकर बड़ा किया था। रेखा के माता-पिता एक दुर्घटना में चले गए थे, और सुमित्रा ने अपनी पूरी ज़िंदगी रेखा की देखभाल में ही समर्पित कर दी थी। अब, जब दादी के जीवन की संध्या का समय आ गया था, रेखा को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने दिल के इस दर्द को कैसे सहन करेगी।

सुमित्रा ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं और रेखा की ओर देखा। उसकी आँखों में गहरी ममता और प्यार था। उन्होंने रेखा का हाथ अपने हाथों में लिया और कहा, "बेटा, मैं अब बहुत थक गई हूँ। लेकिन जानती हो, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।"

रेखा की आँखें भर आईं। उसने अपनी दादी का हाथ कसकर पकड़ा और कहा, "दादी, आप मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ सकतीं। मुझे आपका साथ चाहिए।"

सुमित्रा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "रेखा, हर किसी की ज़िंदगी में एक सुबह आती है जब हमें अलविदा कहना पड़ता है। लेकिन याद रखो, मैं तुम्हारे दिल में हमेशा जीवित रहूंगी। तुम्हारी खुशियाँ मेरी खुशियाँ हैं।"

रेखा के आँसू अब बहते जा रहे थे। उसने दादी से कहा, "आपने हमेशा मुझे प्यार किया, आपने मुझे सिखाया कि कैसे मुश्किलों का सामना करना है। मैं आपकी बिना आवाज़ के सलाह को हमेशा याद रखूंगी।"

सुमित्रा ने आखिरी बार अपनी पोती की ओर देखा और धीरे-धीरे अपनी आँखें बंद कर दीं। उनका दिल धीमे-धीमे धड़कना बंद हो गया और कमरे में एक शांति छा गई। रेखा ने अपने आँसू पोंछे और सुमित्रा की शांत आत्मा को श्रद्धांजलि दी। उसने महसूस किया कि सुमित्रा ने उसे जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा दी थी—जीवन में प्यार और सहानुभूति सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।

सुमित्रा के निधन के बाद, रेखा ने अपने जीवन को एक नई दिशा देने का निर्णय लिया। उसने अपनी दादी की याद में एक स्कूल खोला, जहाँ गरीब और अनाथ बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती थी। इस स्कूल का नाम उसने "सुमित्रा विद्या निकेतन" रखा, ताकि उसकी दादी की यादें हमेशा जीवित रहें।

रेखा ने बच्चों को सिखाया कि जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन अगर आप दिल से मेहनत करें और दूसरों के प्रति प्यार और सहानुभूति रखें, तो आप हर मुश्किल को पार कर सकते हैं। उसने अपने दादी की शिक्षाओं को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया और उसे दूसरों के साथ भी साझा किया।

सालों बाद, जब रेखा ने अपने स्कूल के बच्चों को सफल होते देखा और उनकी ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव आते देखे, तो उसने महसूस किया कि सुमित्रा की उपस्थिति हर पल उसके साथ है। उसकी दादी की यादें और शिक्षाएँ उसके जीवन की प्रेरणा बनीं।

अलविदा की सुबह की दर्दनाक घटना के बावजूद, रेखा ने सुमित्रा की यादों को अमर बना दिया और उनके द्वारा सिखाए गए प्यार और सहानुभूति को हर दिल में बसा दिया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जिन लोगों को हम खो देते हैं, उनकी यादें और उनकी शिक्षाएँ हमेशा हमारे साथ रहती हैं, और हम उन्हें अपने कार्यों और अपने प्यार से अमर बना सकते हैं।

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