सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं | features of indus valley civilization | ( jpsc और jssc के लिए महत्वपूर्ण टॉपिक सूची के साथ )


 सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं |

सिंधु घाटी सभ्यता


सिंधु सभ्यता से जो पुरातात्विक स्रोत मिले हैं उससे यह संकेत मिलता है कि यह मानव विकास यात्रा की प्रथम नगरीय सभ्यता थी। लोगों का जीवन-शैली नगरीय पद्धति से परिपूर्ण था। नगरों में सड़क एवं जल प्रबंधन की उन्नत व्यवस्था थी।

नगरों की रक्षा हेतु दुर्गीकरण का प्रबंध था। सिंधु वासी शांति प्रिय लोग थे तथा वह वस्त्र के साथ श्रृंगार में भी रूची लेते थे। मनोरंजन के साथ शवाधान की विधि भी प्रचलित किये। आंतरिक के साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को भी प्रोत्साहन दिये एवं सूर्यनागपोपल, पशु-पक्षी जैसे प्रकृति प्रेमी धर्म संस्कारों को भी ग्राह्य किया।

सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी। यहाँ हड़प्पामोहनजोदड़ो, लोथलसुतकागेंडोरचान्हुदड़ोधौलावीरा बड़े नगर थेजिन्हें महानगर कहा जाता था। नगरों में बड़ी आबादी का संकेन्द्रण होता था।

जैसे फेयर सर्विस के अनुसार मोहनजोदड़ो की जनसंख्या 41,250 तो हड़प्पा की जनसंख्या 23,544 थी। एस.आर राव ने लोथल की जनसंख्या 15000 से अधिक बतायी है। विद्वानों द्वारा जनसंख्या का आकलन नगर में मिले मकानों के आधार पर किया गया है।

सिंधु सभ्यता की नगरों की मुख्य विशेषता हैनगरों का नियोजित होना। मार्टियर व्हिलर तथा स्टुअर्ड पिग्गट जैसे पुरातत्वविदो का मानना है कि हड़प्पा सभ्यता की नगरों की संरचना और बनावट में असाधारण प्रकार की एकरूपता थी।

बड़े नगर मुख्यतः दो भागों में बँटे थे-

1.दुर्ग/गढ़ी/कोट- इसमें बड़े अधिकारी रहा करते थे तथा अन्य सामाजिक क्रिया-कलाप होते थे। सुरक्षा के दृष्टिकोण से इसके चारो ओर रक्षा प्राचीर भी होते थे।

2.निचला शहर/बस्ती- आम तौर पर नगर का यह दूसरा हिस्सा आयताकार होता था। इस क्षेत्र में ईंट के ऊंचे चबूतरे बने होते थे, जो संभवतः बाढ़ जैसी आपदा के खिलाफ संरक्षण देता था। यह क्षेत्र सघन बस्ती क्षेत्र था एवं यहाँ साधारण लोग रहा करते थे।

दुर्ग और निचले बस्ती के बीच संपर्क सीमित था तथा इन दोनों को जोड़ने वाला एक दो प्रवेश मार्ग होता था। हलांकि कई शहर की रचना भिन्न भी होती थी। जैस कालीबंगा के संपूर्ण क्षेत्र में अलग-अलग दूर्ग बने थे। इसी प्रकार संपूर्ण लोथल एक ही रक्षा घेरा में था तो धौलाविरा शहर दो के बजाय तीन खण्डों में विभाजीत था।

शहरों में सड़क एवं जल प्रबंधन की उत्कृष्ट व्यवस्था होती थी। सड़के तीन प्रकार की थी- मुख्य सड़कमध्यम सड़क और संकीर्ण सड़क। मोहनजोदड़ो की सबसे चौड़ी सड़क 10 मीटर की मिलती हैजिसे पुरावेता राजमार्ग कहते हैं। मुख्य सड़क उत्तर-दक्षिण की ओर जाती थी तथा अन्य सड़कें इनको समकोण पर काटती थी।

सड़कों के किनारे चिरागदानों की व्यवस्था थी। इसी प्रकार सिंधु सभ्यता की नालियां भी विश्व प्रसिद्ध हैं। नालियाँ घरों से निकलती थी। तथा संकीर्ण गलियों से होकर मुख्य सड़क के बगल से निकलती थी। नालियों का निर्माण ईंटो से होता था तथा जगह-जगह पर पत्थर की सीलियों से इसे ढंका जाता था।

बीच-बीच में मुख्य (गढ्ढ़ा) होता था ताकि उन्नत जल प्रबंध हो सके। कालीबंगा की नालियाँ में ईंटों के बजाय लकड़ी का प्रयोग होता था जबकि जल बहाव को नियंत्रित करने के लिये लोथल में सीढ़ीदार नाली के प्रमाण मिलते हैं।

जल-संभरणजल प्रबंधन एवं गंदे जल की निकासी की यह व्यवस्था सिंधु सभ्यता को विश्व के सभी समकालीन सभ्यताओं से अधिक महान बनाती है। सिंधु सभ्यता में भवन निर्माण प्रणाली भी विशिष्ट थी। मकानों का औसत आकार 30 फीट होता था।

प्रत्येक मकान में एक ऑगन तीन ओर से बरामदा शौचालयस्नानागारकुआँ एवं छोटे चबूतरे थे। मकान बनाने में कच्ची और पक्की दोनों प्रकार के ईंटों का प्रयोग होता था। मकान में दर्जनों कमरे होते थे तथा ये दो-तीन मंजीलें भी थे।

छते सपाट होती थी। मकानों में हवा और रोशनी पर विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़क की ओर कोई खिड़की नहीं होती थी। अधिकांश जगहों के दरवाजे एक ही पल्ले के बने थे। कालीबंगा में तो निचे के फर्श भी अलंकृत होते थे। साथ ही लोग घरों में अन्नाभंडार (कोठी) बनाते थे।

हड़प्पा में 12 अन्नभंडार मिले हैं। मकान के कोने में एल आकार (L) की ईंट लगायी जाती थी। स्तंभों का प्रयोग कम होता था। कुल मिला जुलाकर इस काल के भवन अत्यंत प्रभावशाली थे। सिंधु सभ्यता के सामाजिक जीवन से प्राप्त मृण मूर्ति बताते हैं कि यह समाज मातृसतात्मक था।

आक्रामक उपकरणों/हथियारों का न मिलना यहां के लोगों के शांतिप्रिय होने का संकेत करता है तथा हड़प्पा से काजलचान्दुहदड़ो से लिपिस्टिक मिलना लोगों के सौंदर्य प्रेमी होने का संकेत करता है। सिंधु सभ्यता के लोगों के जीवन में कृषि एवं वाणिज्य का महत्वपूर्ण स्थान था। यहां के लोग गेहूँ और जौ के साथ कपास (सिंडन) की भी खेती करते थे।

साथ ही सभ्यता के लोगों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को भी समर्थन दिया क्योंकि मेसोपोटामिया के बेलनाकार मुहरे मोहनजोदड़ोकालीबंगा से मिली है। लोथल प्रमुख बंदरगाह शहर था। यहाँ से गोदीबाड़ा मिला है। इसके अलावें चाँदीटिनलाजवर्द मनी जैसे कीमती पत्थर सिंधु वासी अफगानिस्तान क्षेत्र से मंगाते थे।

माप-तौल 16 के गुणज में होता था जो दाशमलिक प्रणाली के समतुल्य था। हड़प्पा धर्म में अधिकांश लोग प्रकृति पूजा के प्रति आकर्षित होते दिखायी देते हैं। हड़प्पा से स्वास्तिक चिन्ह का मिलना सूर्योपासक का प्रमाण देता है तो बर्तनों पर नाग की आकृति नाग पूजक होने का संकेत करता है।

इसके अलावे मोहनजोदड़ो से पशुपति के समान एक मूर्ति मिलती हैजिसे शैव धर्म का अग्रगामी माना जाता है। इसके अलावे कुवड़ वाला साँड़एक सिंगी बैल भी पूजनीय था एवं पीपलबबूल तथा बत्तख के प्रति भी इनकी आस्था दिखायी देती है।

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता नगर प्राचीन सभ्यताओं में अद्वितीय था। ये सभी योजनाबद्ध थे और किसी प्रभावशाली नगर अधिकारी के अधीन संचालित थे।


 महत्वपूर्ण सिन्धु घाटी फैक्ट्स (facts ) pt exam के लिए :-


स्थल/खोजकर्त्ता अवस्थिति खोज
स्थल/खोजकर्त्ताहड़प्पा/दयाराम साहनी (1921) अवस्थितिपाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। खोजमनुष्य के शरीर की बलुआ पत्थर की बनी मूर्तियाँ अन्नागार बैलगाड़ी
स्थल/खोजकर्त्तामोहनजोदड़ो (मृतकों का टीला)/राखलदास बनर्जी (1922) अवस्थितिपाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। खोजविशाल स्नानागर अन्नागार कांस्य की नर्तकी की मूर्ति पशुपति महादेव की मुहर दाड़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति बुने हुए कपडे
स्थल/खोजकर्त्तासुत्कान्गेडोर/स्टीन (1929) अवस्थितिपाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी राज्य बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे पर स्थित है। खोजहड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार का केंद्र बिंदु था।
स्थल/खोजकर्त्ताचन्हुदड़ो/एन .जी. मजूमदार (1931) अवस्थितिसिंधु नदी के तट पर सिंध प्रांत में। खोजमनके बनाने की दुकानें बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पदचिन्ह
स्थल/खोजकर्त्ताआमरी/एन .जी . मजूमदार (1935) अवस्थितिसिंधु नदी के तट पर। खोजहिरन के साक्ष्य
स्थल/खोजकर्त्ताकालीबंगन/घोष (1953) अवस्थितिराजस्थान में घग्गर नदी के किनारे। खोजअग्नि वेदिकाएँ ऊंट की हड्डियाँ लकड़ी का हल
स्थल/खोजकर्त्तालोथल/आर. राव (1953) अवस्थितिगुजरात में कैम्बे की कड़ी के नजदीक भोगवा नदी के किनारे पर स्थित। खोजमानव निर्मित बंदरगाह गोदीवाडा चावल की भूसी अग्नि वेदिकाएं शतरंज का खेल
स्थल/खोजकर्त्तासुरकोतदा/जे.पी. जोशी (1964) अवस्थितिगुजरात खोजघोड़े की हड्डियाँ मनके
स्थल/खोजकर्त्ताबनावली/आर.एस. विष्ट (1974) अवस्थितिहरियाणा के हिसार जिले में स्थित। खोजमनके जौ हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा संस्कृतियों के साक्ष्य
स्थल/खोजकर्त्ताधौलावीरा/आर.एस.विष्ट (1985) अवस्थितिगुजरात में कच्छ के रण में स्थित खोजजल निकासी प्रबंधन जल कुंड



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