झारखण्ड की जलवायु का वर्णन करते हुए इसे जलवायु प्रदेशों में विभाजित करें |( jpsc mains और jssc के लिए महत्वपूर्ण टॉपिक )
झारखण्ड की जलवायु का वर्णन करते हुए इसे जलवायु प्रदेशों में विभाजित करें |
उष्णकटिबंधीय अवस्थिति एवं मानसूनी हवाओं के कारण झारखण्ड की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी
प्रकार की है। हालांकि उच्चावचीय संरचना, सागरतट से दूरी इत्यादि कारणों से क्षेत्रीय आधार पर जलवायु में विविधता पायी जाती
है। सामान्य रूप से उत्तर भारत के मौसम के सामान यहां विभिन्न प्रकार की ऋतुयें पायी जाती है।
जिसका वर्णन निम्न है-
1. ग्रीष्म ऋतु- ग्रीष्म ऋतु का
प्रारम्भ मार्च महीने से होता है जब सूर्य की स्थिति उत्तरायन होने लगती है। मार्च से मई महीने के अंत
तक जाते-जाते औसत
तापमान में वृद्धि होती जाती है और मई माह तक राज्य में अधिकतम तापमान 40° तक या उसके पास चला जाता
है।
हालांकि मैदानी इलाकों के समान तापमान रहने के बावजूद पठारी क्षेत्र के कारण लू का
प्रकोप कम रहता है। इस ऋतु में पठार के उत्तर-पूर्वी भाग में निम्न
दाब उत्पन्न होने के कारण पछुआ पवन बंद हो जाती है एवं वातावरण
शांत हो जाता है।
यहाँ मई के महीने में बंगाल के काल बैशाखी/नार्वेस्ट
के प्रभाव से थोड़ी-बहुत तड़ित झांझायुक्त वर्षा हो
जाती है। इस प्रकार की वर्षा को आम्र-वृष्टि/ आम्र बौछार कहा जाता है
क्योंकि यह वर्षा आम के उत्पादन में काफी सहायक होती है। इस ऋतु
में हवा प्रायः गर्म होती है किन्तु रांची, हजारीबाग व देवघर के इलाकों में शाम के बाद हवा थोड़ी शीतल हो जाती है।
2. वर्षा ऋतु - झारखण्ड में वर्षा
का आगमन मध्य जून (15 जून) तक हो जाता है। वर्षा
मुख्यतः दक्षिण-पश्चिम मानसून के द्वारा होता है। झारखण्ड में वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून की दोनों
शाखाओं-बंगाल की खाड़ी शाखा एवं अरब सागर शाखा- से होती है।
झारखण्ड के मध्यवर्ती एवं पश्चिमी भाग में
बंगाल की खाड़ी से वर्षा होती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की
बंगाल की खाड़ी शाखा झारखण्ड में वर्षा करने वाली प्रमुख शाखा है। वर्षा का सामान्य वितरण प्रतिरूप
से यह स्पष्ट होता है
कि वर्षा की मात्रा दक्षिण से उत्तर की ओर एवं पूरब से पश्चिम की ओर घटती जाती है।
दूसरे, ऊँचे भू-भागों में अपेक्षाकृत अधिक
वर्षा होती है जबकि निचले
भू-भागों में कम। इस वर्षा ऋतु में सामान्यतः कुल वार्षिक वर्षा का 80 प्रतिशत पानी बरस जाता
है। वर्षा की दृष्टि
से झारखण्ड मध्यम वर्षा का प्रदेश है।
झारखण्ड में वर्षा का वार्षिक औसत 140
सेंटीमीटर है। कहीं-कहीं 180 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है। पाट क्षेत्र में स्थित नेतरहाट का पठार (1000 मीटर से अधिक ऊंचा
भू-भाग) झारखण्ड का सर्वाधिक वर्षा का क्षेत्र है, जहाँ 180 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा (वार्षिक औसत) होती है, जबकि चाईबासा का मैदानी क्षेत्र (300 मीटर की ऊंचाई वाला भू-भाग) कम
वर्षा का क्षेत्र है।
3. शीत ऋतु- शीत ऋतु का आरंभ
नवम्बर महीने में होता है। उच्च भूमि की बहुलता के कारण झारखण्ड में मैदानी भाग वाले
राज्यों की तुलना में अधिक ठंड पड़ती है और जाड़े की शुरूआत में भी अपेक्षाकृत पहले होती है। शीत ऋतु में यहाँ का
तापमान प्राय: 15° सेंटीग्रड से 21° सेंटीग्रेड होता है।
इस वक्त मौसम साफ एवं
सुहावना होता है। धीमी एवं शीतल हवा बहती है। दिन हल्का गर्म एवं
धूपवाला होता है तथा रातें ठण्डी। उत्तरी-पश्चिमी विक्षोभ यानी उत्तरी-पश्चिमी हवा में
सामयिक व्यवधान के कारण कभी-कभार हल्की बारिश हो जाती है जो रबी फसलों के लिए बहुत उपयोगी साबित होती है।
राज्य का सर्वाधिक ठण्डी महीना जनवरी होता है। जनवरी में कभी-कभी शीत
लहरी चलती है और कभी-कभी पाला भी गिरता है। राज्य का सर्वाधिक
ठण्डा स्थान नेतरहाट है, जहाँ का तापमान जनवरी महीने में
कभी-कभी 7.5° सेंटीग्रेड से
भी नीचे जला जाता है।
•जलवायु प्रदेश : झारखण्ड को 7
जलवायु प्रदेशों में बांटा जाता है-
उत्तरी व उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र (महाद्वीपीय प्रकार), मध्यवर्ती क्षेत्र (उपमहाद्वीपीय प्रकार), पूर्वी संथाल परगना
क्षेत्र (डेल्टा प्रकार), पूर्वी सिंहभूम
क्षेत्र (सागर - प्रभावित प्रकार), पश्चिमी सिंहभूम का पश्चिमी क्षेत्र (आर्द्र
वर्षा प्रकार), रांची- हजारीबाग
पठार क्षेत्र (तीव्र एवं सुखद प्रकार) एवं पाट क्षेत्र (शीत वर्षा
प्रकार) ।
1. उत्तरी व उत्तरी-पश्चिम क्षेत्र
(महाद्वीपीय प्रकार) - इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पलामू गढ़वा, चतरा
व हजारीबाग जिले के मध्यवर्ती भाग, गिरिडीह
जिले के मध्वर्ती भाग एवं संथाल परगना क्षेत्र के पश्चिमी
भागों (देवघर, उत्तरी दुमका, गोड्डा) में है।
इस जलवायु क्षेत्र की विशिष्टता है इसका अतिरेक स्वभाव का
होना अर्थात् जाड़े के मौसम में अत्यधिक जाड़ा एवं गर्मी के मौसम
में अत्यधिक गर्मी पड़ना। इस क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा
दक्षिणी भाग में 127 सेंटीमीटर तथा
दक्षिण-पूर्व में 114 सेंटीमीटर से कम
प्राप्त होती है। उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम में इससे भी कम वर्षा
प्राप्त होती है।
2. मध्यवर्ती क्षेत्र (उपमहाद्वीपीय
प्रकार) : इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी
लातेहार, दक्षिणी चतरा, दक्षिणी
हजारीबाग, बोकारो,धनबाद, जामताड़ा
एवं दक्षिणी-पश्चिमी दुमका में है। यह क्षेत्र लगभग महाद्वीपीय प्रकार
का ही है किन्तु तापमान में अपेक्षाकृत कमी एवं वर्षा में अपेक्षाकृत अधिकता के कारण इसे एक पृथक्
प्रकार उपमहाद्वीपीय
प्रकार का दर्जा दिया गया है। इस क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा 127 सेंटीमीटर से 165 सेंटीमीटर के बीच होती है।
3. पूर्वी संथाल परगना क्षेत्र
(डेल्टा प्रकार) : इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार साहेबगंज, पाकुड़
जिला क्षेत्रों में है जो राजमहल पहाड़ी के पूर्वी ढाल का क्षेत्र है। इस जलवायु क्षेत्र
की समानता बंगाल की जलवायु से की जा सकती है।
यह नार्वेस्टर का क्षेत्र है। ग्रीष्म काल में नार्वेस्टर से इस
क्षेत्र में 13.5 सेंटीमीटर वर्षा
होती है। इस क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा 152.5 सेंटीमीटर होती है।
4. पूर्वी सिंहभूम क्षेत्र
(सागर-प्रभावित प्रकार) : इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी सिंहभूम सरायकेला-खरसवां जिला एवं पश्चिमी सिंहभूम
जिला के पूर्वी क्षेत्रों में है। इस जलवायु
क्षेत्र का उत्तरी हिस्सा सागर से 200 किमी. की दूरी पर है जबकि दक्षिणी हिस्सा सागर से 100 किमी. की दूरी पर है।
यह जलवायु क्षेत्र
नार्वेस्टर के प्रभाव क्षेत्र में आता है इसलिए इस क्षेत्र में नार्वेस्टर के
प्रभाव से होनेवाली मौसमी घटनाएं घटित होती हैं। मानसून पूर्व यहाँ अक्सर तड़ित झंझा
देखा जाता है।
प्रतिवर्ष औसतन 71 तड़ित झंझा आते
हैं जिनमें 10 ओलावृष्टि करते है।
यह जलवायु क्षेत्र ग्रीष्म
काल में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त
करनेवाला जलवायु क्षेत्र है। इस जलवायु क्षेत्र
में कुल औसत वार्षिक वर्षा 140 सेंटीमीटर से 152 सेंटीमीटर के बीच होती
है।
5. पश्चिमी सिंहभूम का पश्चिमी
क्षेत्र (आर्द्र वर्षा प्रकार) : इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार सिमडेगा एवं पश्चिमी सिंहभूम के मध्य एवं पश्चिमी
भाग में है। यहाँ मानसून की दोनों शाखाओं के द्वारा
वर्षा होती है। इस
क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा 152.5
सेंटीमीटर से अधिक होती है।
6.राँची-हजारीबाग पठार क्षेत्र
(तीव्र एवं सुखद प्रकार) : इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार
रांची-हजारीबाग पठारी क्षेत्र में है। इस जलवायु क्षेत्र की जलवायु तीव्र एवं सुखद
प्रकार की है जो झारखण्ड में कहीं और नहीं मिलती।
इस प्रकार की जलवायु का निर्माण में इस भू-भाग की ऊंचाई की
महत्वपूर्ण भूमिका है। ऊंचाई के कारण ही चारों ओर की अपेक्षा यहां तापमान कम रहता है। रांची में
औसतन वार्षिक वर्षा 151.5 सेंटीमीटर एवं हजारीबाग
में औसतन वार्षिक वर्षा 148.5 सेंटीमीटर होती
है।
7. पाट क्षेत्र (शीत वर्षा प्रकार)
: इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार लोहरदगा एवं गुमला के अधिकांश में
है। इस क्षेत्र की जलवायु रांची पठार की तरह ही है लेकिन यह रांची पठार की तुलना में अधिक तीव्र एवं ठंडी है।
इस जलवायु क्षेत्र का मुख्य
विशेषताएं हैं- अधिक वर्षा हो
जाना। शीत ऋतु में तापमान हिमांक से भी नीचे चला जाता है। यह जलवायु क्षेत्र
झारखण्ड का सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र है। यह वर्षा मानूसन के अतिरिक्त शीत ऋतु में भी होती
है। इस जलवायु क्षेत्र में 1000 मीटर से अधिक
ऊँचे भू-भाग में 203 सेंटीमीटर से
अधिक वर्षा होती है।
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