अशोक की धम्म नीति और मौर्य समाज का पतन | Ashoka's Dhamma Policy and the Decline of Maurya Society
अशोक का धम्म क्या है ? अशोक के धम्म नीति मौर्य समाज के पतन के लिए जिम्मेवार थी ? इसकी समीक्षा करें ?
संपूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास में अशोक के द्वारा धम्म
नीति का संचालन एक
रोमांचक घटना मानी जाती है। धम्म शब्द संस्कृत के धर्म
शब्द का प्राकृत रूप से इसके द्वारा व्यक्ति को धर्म परायण होनें, नैतिकता पूर्व जीवन जीनें का संदेश दिया गया
है।
अशोक इस नीति पर पूरा बल दिया तथा इसकी सफलता के लिए प्रयास किए। जिसका
मौर्य साम्राज्य पर
सकारात्मक तथा नाकारात्मक प्रभाव पड़ा। हालांकि इसका मूल उद्देश्य सामाजिक
समरसता की भावना विकसित करना था। अशोक ने धम्म नीति की उद्घोषणा परिस्थितियों के
कारण किया था क्योंकि
इस समय समाज संक्रमणशील था।
सरल ग्रामीण जीवन जटिल शहरी व्यवस्था में बदल रहा था, जनजातीय समुदाय समाज की मुख्य धारा में शामिल हो
रहे थे, शूद्र एवं निम्न
जातियाँ बौध एवं जैन धर्म की ओर आकर्षित हो रहे थे, पुजारी व्यवस्था, कर्मकाण्ड, वर्ण व्यवस्था को चुनौति दी जा रही थी।
राजनीतिक तौर पर राजतंत्र, गणतंत्र, कुलीनतंत्र प्रणालियाँ प्रचलित थी। विशाल भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के धर्म, विचार, परंपराएँ प्रचलित थी। ऐसे
में अशोक के सामने राजनीतिक और सामाजिक एकता बनाए रखना बड़ी चुनौती थी। जिसका समाधान या तो अशोक सैन्य
शक्ति से करता या फिर सामाजिक सद्भाव की स्थापना कर।
अशोक ने दूसरा विकल्प चुना और धम्म नीति की ने उद्घोषणा की। अशोक का धम्म के स्वरूप को समझने का मुख्य साधन
सम्राट द्वारा जारी किए
गए शिलालेख है। दूसरे और सातवें स्तंभ लेख में अशोक ने धम्म की व्याख्या इस प्रकार की है- धम्म है साधुता, बहुत
से कल्याणकारी अच्छे कार्य को करना, पाप
रहित होना, मृदुता, दूसरो
के प्रति मधुरता, दया, दान
और सूचिता।
आगे इसमें कुछ और बाते शामिल थी- प्राणियों का वध न करना, जीव हिंसा न करना, माता-पिता और बड़ों की आज्ञा मानना, गुरूजनों के प्रति आदर, मित्रों, परिचितों, संबंधियों, ब्राम्हणों तथा श्रमणों के प्रति दानशीलता तथा
उचित व्यवहार तथा दास एवं भत्यों के प्रति उचित व्यवहार।
ब्रम्हगिरि शिलालेख में शिष्य द्वारा
गुरू का आदर भी धम्म
के अंतर्गत रखा गया है। जबकि तीसरे लेख में अल्प व्यय और अल्प संग्रह को भी धम्म का अंग माना
गया है।
इसने अपने अभिलेखों के माध्यम से धम्म के मार्ग में बाधक तत्वों का भी
उल्लेख किया है। जैसे-
उदंडता, निष्ठुरता, क्रोध, मान और ईर्ष्या अशोक ने
नित्य आत्म परीक्षण पर
बल दिया है।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि अशोक धम्म के माध्यम से विभिन्न संप्रदायों के बीच
सामंजस्य और समरसता की स्थापना दिल से करना चाहता था। सातवें शिलालेख में अशोक कहता भी है- सभी
संप्रदाय सभी स्थानों में रह सकते है क्योंकि
सभी आत्म संयम और भाव शुद्धि चाहते है और इसके लिये अशोक ने
वाक्य संयम (वचोभूति) मूलमंत्र दिया।
कई इतिहासकार अशोक के धम्म को निजी कल्पना मानते हैं तो बौद्ध धर्म का
परिवर्तित रूप है। लेकिन गहराई पूर्वक देखा जाए तो अशोक के धम्म की अधिकांश बाते बौध धर्म से ली
गई है। ये ग्रंथ है- दीघनिकाय
के लक्खन-सुत चकवती, सिंहनाद, राहुलोवाद
सुत तथा धम्मपद्।
इन सुतो में चक्रवर्ती राजा के आदर्श का उल्लेख मिलता है जिसका अनुकरण कर अशोक
जनता के मौलिक और अध्यात्मिक कल्याण का मार्ग खोजता है। अशोक ने जो धम्म की परिभाषा दी
है, वह राहुलोसुत
वाद (गेह विजय) से ली गई है। जिसका
अर्थ है- गृहस्थों के लिए
अनुशासन ग्रंथ।
परंतु चाहे जो हो, यह सत्य है कि अशोक सच्चे हृदय से अपनी प्रजा का नैतिक पुर्नद्धार करना
चाहता और इसके लिए निरंतर प्रयत्नशील रहा। निरंतर शिलालेख खुदवाए, स्वयं धम्म यात्रा की, धम्म महामात्र नियुक्त किए यही अशोक की मौलिकता
थी। अशोक के धम्म
नीति का साम्राज्य पर गहरा प्रभाव पड़ा।
इस नीति के अवलंबन के बाद सामाजिक सद्भाव बढ़ा क्योंकि कोई भी समकालीन ग्रंथ अशोक के
जीवन काल में अशोक के विद्रोहों का उल्लेख नहीं करते है। ये महान उपलब्धि थी, लेकिन धम्म नीति को सफल
बनाने में अशोक ने जो
प्रशासनिक बदलाव किए उससे विरोधाभास खड़ा हुआ।
क्योंकि अशोक मंत्रिपरिषद्
और मंत्रिनसमूह से अधिक महत्व धम्ममहामात्रो (प्रादेशिक, रज्जूक, युक्तक)
को देने लगा। साथ ही धम्म यात्रा के दौरान राजस्व वसूली की दरों में भी कटौती
करता दिखाई देता है। रूम्मिनदेई अभिलेख के अनुसार जब अशोक यहाँ आया
था तो राजस्व की दर घटा
कर 1/8
कर दिया था।
राजकोष के स्रोतों का संकुचित होना तथा राजस्व का बड़ी मात्रा में धम्म की सफलता
हेतु दुरूपयोग ने साम्राज्य की आर्थिक संकटों में डाल दिया, सेना भी गतिशील नहीं रही।
ऐसे में अशोक के कमजोर उत्तराधिकारी मौर्य साम्राज्य को संभालने में अक्षम साबित हुए। यही कारण है
कि डीडी कौसाम्बी तथा रोमिला थापर जैसे इतिहासकार
मौर्य साम्राज्य के पतन हेतु मुख्य रूप से अशोक की धम्म नीति
को ही जिम्मेवार ठहराते हैं।
निष्कर्षतः ऐसा प्रतीत होता है कि
अशोक ने धम्म नीति का आश्रय सामाजिक सद्भाव की इच्छा से आरंभ किया, जिसके लिए उसने अथक प्रयास किया और इसमें उसे आशातीत सफलता भी
मिली लेकिन यह भी सच था कि इससे राजकोष शून्य हुआ जो आगे चलकर साम्राज्य के पतन का कारण बना परंतु
इसके मृत्योपरांत साम्राज्य को संभालने की जिम्मेवारी इसके उत्तराधिकारियों पर थी। जिसके लिए वे
पूर्णतः अयोग्य थे। अतः इसका संपूर्ण दोषारोपण अशोक पर करना उचित प्रतीत नहीं होता।
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