तुम्हारा इंतज़ार ..( कहानी ) | Waiting for you..(Story)
तुम्हारा इंतज़ार ...
दोपहर का समय कॉलोनी के सारे बच्चें अपने –अपने खिलोनों के साथ खेल रहे है | इसमे सबका अपना –अपना बेस्ट फ्रेंड है और ये खिलोने सिर्फ उन्ही के साथ शेयर किये जाते है | बाकि के साथ तो सोचना भी गुनाह है , ये आम का बाग जहाँ बच्चों की शोर 💥 से सारा बाग़ खिल उठता है जैसे | ये सब सिर्फ गर्मी की छुट्टी में ही संभव हो पता है |
क्योंकि सबकी छुट्टी होती है चाहें वो किसी भी स्कूल के हों | इसी सब में दो ऐसे बच्चें है जो सबसे अलग है , इनका अपना ग्रुप है प्रेरणा 👧 और शुभम 👦 | दोनों की पसंद एक –दुसरे से हुबहू मिलती है | साथ में खेलना , स्कूल जाना और टियुशन भी साथ में पढ़ना | ऐसे में पक्की दोस्ती हो जाना कोई आश्चर्य नही है|
शुमम का परिवार काफी छोटा है इस परिवार में उसके पापा ,बारह साल का शुभम और उसका छोटा भाई 👶 शिव है | इसकी माँ का देहांत शिव के पैदा होने के बाद ही हो गया था | इसके पापा विक्रम ने दूसरी शादी नही की , परिवार ने न जाने कितना दबाव बनाया की दूसरी शादी कर लो , यहाँ तक की नेहा जो की शुभम की माँ थी , उसके घरवालों ने भी बहुत बार बोला जो चला गया है वो दुबारा लौट कर तो नही आएगा |
बच्चों की देख –भाल कैसे करोगे साथ में तुम्हें दुकान भी देखना है वो कैसे
चलेगा अकेले | इन सब की बातों के बीच विक्रम के मन में बस एक ही बात चलती थी , की
ये दोनों शुभम और शिव ,नेहा की निशानी है इन दोनों को बस सम्भाल के रखना है |
समय बीतने के साथ –साथ लोगों ने फिर कहना बंद कर दिया | जहाँ विक्रम रहता था उसके
बगल में ही रेलवे की कॉलोनी थी | सारे लोग
अपना राशन का सामान विक्रम की दुकान से ही लेते थे | पहले जब नेहा थी वो रोज दोपहर
को खाने का टिफ़िन लेकर विक्रम के दुकान पर आती थी |
अब विक्रम खुद ही सारा कुछ अकेले देखता है | सबेरे –सबेरे शुमम स्कूल चला जाता
है और छोटा शिव पापा के साथ दुकान में रहता है | पड़ोस में एक नया किरायदार रेलवे
कॉलोनी में रहने आया उनका ट्रांसफर चेन्नई से हुआ था |
ये साऊथ इंडियन परिवार बहुत ही सीधे –सादे थे | नाम था कार्तिक नारायण प्रेरणा इन्ही की
बेटी थी | शुभम के परिवार के उल्ट इसका परिवार बड़ा था | चार भाइयों में प्रेरणा
अकेली बहन थी साथ में दादा –दादी , माँ सब थे | मतलब प्रेरणा को बचपन से सबका
प्यार मिला |
पहली बार जब कार्तिक अपने घर के लिए राशन का सामान लेने गया तो उसने देखा एक
छोटा बच्चा वहाँ बैठा है वह चौक गया की ये कैसे सामान देगा | जैसे ही शिव ने
ग्राहक को देखा अपने पापा को आवाज लगाया | विक्रम तुरंत आ कर उनका सारा सामान उनके
थैले में डाल दिया | ये पहली मुलाकात थी विक्रम और नारायण की जो आगे चल कर गहरी
दोस्ती में बदल गई |
रविवार का दिन था , जब नारायण अपने घर का सामान लेने जा रहे थे , छोटी प्रेरणा
बोली मै भी साथ में चलुगी | तो वो भी साथ चल दी , इस समय शुभम भी अपने पापा की मदद
करने आया हुआ था | बस कुछ ही समय में शुमम ने सारा सामान निकाल कर दे दिया |
ये सब देखकर नारायण बहुत प्रभावित हुये , और उसने उसके बारे में पूछा की वो कहाँ
पढ़ता है , उसको भी उनकी बेटी के लिए किसी अच्छे स्कूल की तलाश है | फिर क्या था प्रेरणा का दाखिला भी उसी
स्कूल में हो गया जहाँ शुमम जाता था फिर टियुशन भी एक ही था | क्युकी प्रेरणा नई थी तो टियुशन मास्टर उसी के घर में आते
थे |
और शुभम वहाँ पढ़ने जाता , इनसब के दौरान छोटे शुभम को परिवार कैसा होता और परिवार का सुख कैसा होता
है ये सब देखने को मिला | भारतीय पड़ोसी गूगल की तरह होते है उनकों सबके बारे में
पता होता है और जल्द ही प्रेरणा के परिवारवालों को शुभम के बारे में पता चल गया |
हमारे समाज की एक अच्छी बात यह है की लोगों को तुरंत ऐसे मामलों में सहानभूति हो
जाती है | प्रेरणा का पूरा परिवार बहुत कम समय में ही छोटे शुभम को अपना लिया और दोनों बच्चें आपस में एक दुसरे से काफी घुल –मिल
गये | अब तो हर त्यौहार में विक्रम अपने बच्चों को लेकर नारायण के घर आने लगा |
धीरे –धीरे समय गुजरता गया वो दोनों अब दसवीं का एग्जाम दे कर बारहवीं में आ गये
| तब शुभम ने पहली बार प्रेरणा को एक लैटर दिया जिसमे उसने अपनी मन की सारी बाते लिखी
थी की वो उससे प्यार करता है |
लेकिन प्रेरणा ने उसको इंकार कर दिया 💔 और बोली की हमे अभी अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाना चाहिए | ये बाते शुभम ने मान ली उसके बाद ये सोच कर की जॉब के बाद उसे फिर से पुछुगा | वो , दिन –रात मेहनत करने लगा इधर उसका एडमिशन इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया उधर प्रेरणा ने मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया |
शुभम उसके इंतज़ार में अपनी जॉब में बिजी हो गया वो अपने ऑफिस के किसी भी लड़की👱 से बात नही करता |
तेरे इंतजार में हमने...
क्या क्या कर लिया...
आंखों को बंजर...
दिल को पत्थर कर लिया...
प्रेरणा जानती थी की आज भी शुभम उसका इंतज़ार कर रहा है | लेकिन वो अपने घर की
हालतों से भी वाकिफ थी ,उसके घरवालें नही मानेगे ये रिश्ता | क्योंकि शुभम उनलोगों
को सिर्फ पड़ोसी होने के नाते पसंद था | न की उसे वे लोग अपना दमाद के रूप में स्वीकार
करेगें |
किस्मत ने फिर से उनदोनों को आमने –सामने ला दिया , किसी मेडिकल कैंप में
उनदोनों की मुलाकात हो गई | इस बार शुभम को पूरा विश्वास था कि प्रेरणा उसको न नही
कहेंगी |
वो पुरे विश्वास से बोला की तुमने जो बोला था की अपने कैरियर पर ध्यान दो अब
तो हमदोनों जॉब करते है तो क्या हम शादी कर ले | लेकिन फिर से प्रेरणा ने न ही कहा
, लेकिन इस बार का उसका न शुभम को अंदर तक तोड़ दिया |
वो समझ ही नही पा रहा था की प्रेरणा ने उसको न क्यों बोला | वो उससे पूछना चाह रहा था, लेकिन आँखों से बहते आशु और उसकी लड़खड़ाति आवाज 💬 उसका साथ नही दे रही थी | वो वहाँ से चला गया और पीछे छोड़ गया कई सवाल जिसके जवाब अब प्रेरणा को सोचनें थे कि क्या सही किया उसने |
कुछ समय के बाद प्रेरणा की शादी हो गई ,उसके पापा रिटायर हो चुके थे और वो लोग
अब वापस चेन्नई जा रहे थे | नारायण लास्ट
टाइम विक्रम से मिलने गया और बोला शुभम कैसा है और उसका जॉब कैसा चल रहा है | वो
प्रेरणा का सबसे अच्छा दोस्त है लेकिन वो उसकी शादी में नही आया, उसको बता दीजियेगा की कभी चेन्नई आना हो तो हमलोगों से जरुर मिले |
विक्रम भी अपने बेटों की शादी को लेकर सोच में पड़ गया की अब शुभम की शादी भी
कर देनी चहिये | लेकिन वो जब उससे पूछता वो बात को टाल देता , उसके मन में अभी भी
प्रेरणा ही बसी थी | उसने बोला की शिव जो की शुभम का छोटा भाई था उसकी शादी कर
दीजिये |
समय कहाँ रुकता है किसी के लिए शिव की शादी भी हो गई | शुभम को सिर्फ अपना काम
और अकेलेपन ने उसे एक राइटर बना दिया |
राइटर के कोई दोस्त नही होते है , उनकी दुनिया बस अपने ख्यालों में बस्ती है |
उसकी किताबें बहुत फेमस हो गई | वो अपनी किताब किसी और नाम से लिखता था |
इधर प्रेरणा अपने डॉक्टर के जॉब में बिजी रहती थी | किसी मेडिकल कॉन्फ्रेंस के
लिए उसे दिल्ली जाना पड़ा , ट्रेन के टाइम से पहले वो स्टेशन आ गई थी ,उसने अपने
पति से बोला की कोई अच्छी सी किताब खरीद लाए जिससे की उसका टाइम कट सके |
उसके पति ने एक किताब खरीद लाया और बोला की आजकल बहुत फेमस है ये राइटर और
उसकी बुक | वो बुक का नाम और राइटर के नाम की बात को अनसुना कर के पढ़ना शुरू किया |
शुरुआत में तो उसे कुछ खास अच्छा लगा नही उसने किताब को बंद करके रख दिया | उसके
पति को कानपूर में कुछ काम था तो वो वहाँ के स्टेशन पर उतर गया | आगे का सफर
प्रेरणा को अकेले तय करना था |
वो फिर से उस किताब को आधे मन से पढ़ना शुरू की जैसे –जैसे कहानी आगे बढने लगी उसकी दिल की धड़कन भी तेज हो गई | ट्रेन की
स्पीड से ज्यादा तो अब प्रेरणा की सांसे हो गई | उसका सारा बचपन, जवानी, पढ़ाई,
शुभम घरवालें सब एक -एक करके आँखों के सामने से गुजर रहते थे |
उसके लगा की ये कहानी उस पर लिखी गई है बुक का नाम देखा तो लिखा था ...तुम्हारा
इंतज़ार | राइटर का नाम समझ नही आ रहा था उसने अपने फ़ोन से न जाने किस –किस को फोन
लगाया था ये जानने को की ये कौन राइटर है ?
काफी खोजने के बाद उसका एड्रेस पता चला वो अब बैचेन हो गई इस रायटर से मिलने
के लिए | जैसे ही वो दिल्ली पहुची , अपने मेडिकल कॉन्फ्रेंस को खत्म करके उस पते
पर पहुची तो उसने देखा ...
....की वो घर बिलकुल वैसा ही जैसा, वो बचपन में घर –घर खेलते समय शुभम के साथ सजाती थी |
अब उसे सब कुछ समझ में आ चुका था , नौकर के आवाज से शुभम बाहर
आकर देखा प्रेरणा खड़ी थी | उसने मुस्कुराते हुए बोला की तुम यहाँ कैसे , तो उसने
सारी बाते बता दी |
प्रेरणा को एक बात समझ में नहीं आ रही थी की उस कहानी में
लड़का आखिर तक इंतज़ार करता रहता है उसमे जो शायरी है .
इंतजार जो था मुझे मिलने का, तुझसे...
इन्तजार ही रह गया, उम्र भर का ..
तो क्या शुभम ने भी
आज तक किसी से शादी नही कि, है और उसके इंतज़ार कर रहा है |
वो संकोच से उससे पूछ ही लेती है , की क्या तुमने अभी तक
शादी नही की तो शुभम हसतें हुए बोलता है की मै तुमसे चाय के लिए पूछने वाला था और
तुम ये पूछ रही हो ..फिर उसने बताया नही ...
वो आज भी सच में उसका इंतज़ार कर रहा था | ये सुनते ही
प्रेरणा का सर भारी हो गया , वो सोचने लगी क्या ये मेरी ही गलती थी की शुभम को
इतना दुख से गुजरा पड़ा |
अचानक फ़ोन की घंटी बजती है शुभम फ़ोन लेने अंदर जाता है ,
इधर प्रेरणा उसके घर से बाहर आ कर अपने कार में बैठ कर सोचती है की क्या मैंने
अपनी लाइफ में सही डिसीजन लिया है |
वो एक अच्छी बेटी ,पत्नी ,बहु बनी और
आने वाले समय में एक अच्छी माँ बन जाएगी |
लेकिन क्या एक अच्छी दोस्त या एक अच्छी प्रेमिका बन सकी | क्यों हम प्रेम के साथ अपने
परिवार वालो को अपना नही सकते |
अगर उस समय अगर हिम्मत करके उसने अपने घरवालों को ये बता
दिया होता तो , शुभम का ये इंतज़ार कब का खत्म हो गया होता | उस बेचारे से ज्यादा
अभागा और कौन होगा ,वो अपनी माँ से बहुत प्यार करता था वो उसको छोड़ कर चली गई |
जब उसने मुझे पसंद किया मैंने भी उसे छोड़ ही दिया |
ये सोचते –सोचते प्रेरणा के आँखे नम हो गई , दिल बैचेन हो
गया और वो सोचने लगी शुभम के जीवन में अब
ये कभी न खत्म होने वाला इंतज़ार बन गया .... सिर्फ मेरे कारण !
इस कहानी का अंत में शुभम की दिल की धड़कन यही कह रही है ...
उनका तो हर दफा...मेरे लिए इंकार रहा...
फिर भी मुझे हर दफा.... उसी का इंतज़ार रहा..
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