अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण प्रणाली (jpsc mains,jssc,bpsc mains का important टॉपिक )
अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण प्रणाली
अलाउद्दीन खिलजी मध्यकालीन भारतीय इतिहास में एक महान विजेता के साथ-साथ आर्थिक
सुधार व सैन्य सुधार के रूप में भी प्रसिद्ध है। इसने इल्तुतमिश और बलबन द्वारा किये गये
आर्थिक एवं सैन्य व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन कर उसे प्रभावशाली बनाया।
सल्तनत युग में इसका उल्लेखनीय कार्य बाजार नियंत्रण प्रणाली लागू करना था।
जिसका इतिहासकारों ने
भूरि-भूरि प्रशंसा की है। यह इसके आर्थिक सुधारों की अद्भूत उपलब्धि मानी जाती है। समकालीन इतिहासकार बाजार
नियंत्रण प्रणाली के उद्देश्यों को लेकर आपसी मतभिन्नता के शिकार हैं।
बरनी के अनुसार इस योजना का उद्देश्य सैनिकों के आवश्यकताओं की पूर्ति करना
था। बरनी के शब्दों में- साम्राज्य विस्तार की इच्छा से सुल्तान ने 4.75 लाख संख्या का सैन्य बल खड़ा किया था। राजकोषीय स्थिति को देखते हुये
उन्हें सीमित वेतन प्रदान करना था।
ऐसे में इनकी आवश्यकता पूर्ण हो, इसके लिए बाजार नियंत्रण प्रणाली शुरू की गई।
लेकिन इस संदर्भ में सुल्तान के दरबारी इतिहासकार अमीर खुसरो का मानना है- "सुल्तान आम प्रजा को राहत पहुंचाने की इच्छा
से यह कदम उठाया |” हालांकि अधिकांश इतिहासकार बरनी के कथन से सहमत दिखाई देते हैं।
सुल्तान की बाजार नियंत्रण प्रणाली के प्रभाव क्षेत्र को
लेकर भी इतिहासकारों
में मतभेद है। बरनी के अनुसार यह योजना दिल्ली और इसके
समीपवर्ती भागों में ही लागू था। जबकि अमीर खुसरों व फरिश्ता के अनुसार यह योजना दूसरे
नगरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रभावी था।
बाजार नियंत्रण प्रणाली की विशेषता थी- "दैनिक प्रयोग की वस्तुओं का मूल्य
निश्चित कर लोगों तक निर्धारित मूल्य पर आपूर्ति सुनिश्चित करना।" इस बाजार में
खाद्यान पदार्थों के अलावें विभिन्न प्रकार के वस्त्र, दास तथा पशु आदि का भी विक्रय किया जाता था।
इस योजना के क्रियान्वयन के लिए सुल्तान ने दीवान-ए-रियासत
(वाणिज्य मंत्रालय) नामक विभाग
की स्थापना की। यह विभाग न केवल व्यापारियों
का पंजीकरण करता था बल्कि
शहना-ए-मंडी (खाद्यान बाजार), सराए-ए-अदल (कपड़ा बाजार) को भी निर्देशित करता था।
यह प्रणाली उचित ढंग से कार्य करे इस हेतु निरीक्षण की पर्याप्त
व्यवस्था की गई थी। व्यापारियों की निगरानी करने के लिए मुख्य रूप से शहना नामक अधिकारियों की
नियुक्ति की गई। जिसे बरीद एवं मुनहियान जैसे गुप्तचर भी मदद करते थे।
बाजार में अनाज की आपूर्ति लगातार बनी रहे, इसके
लिए बयाना एवं दोआब क्षेत्रों में
अन्न खरीद की पर्याप्त व्यवस्था थी। विशेष परिस्थिति के लिए गोदाम
भी बनवाए गए थे। बाजार में पशुओं की कीमत नस्ल आधारित, जबकि दास-दासियों की उपयोगिता आधारित थी। सचमुच अपने युग का यह एक असाधारण प्रयोग था।
सुल्तान की यह महत्वाकांक्षी योजना का सफल क्रियान्वयन आरंभिक वर्षों में हुआ
लेकिन अलाउद्दीन खिलजी के मृत्योपरांत यह योजना ध्वस्त हो गई। एक सफल योजना का अचानक विलुप्त होना इस प्रणाली को आलोचना के
घेरे में खड़ा कर देता है।
सुल्तान के उत्तराधिकारी मुबारक खिलजी ने बाजार नियंत्रण
प्रणाली सहित अलाउद्दीन के कई बड़े आदेशों को निरस्त कर दिया। जिस कारण इतिहासकार मानते
हैं कि इन योजनाओं को जन
समर्थन हासिल नहीं था।
लेकिन तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच यह सत्य है कि अलाउद्दीन खिलजी
द्वारा इस योजना परिकल्पना कर इसे प्रभावी बनाना असाधारण प्रतिभा का प्रमाण है। जिसके माध्यम से
सुल्तान ने न केवल प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा किया बल्कि लोक कल्याण में भी यथेष्ट योगदान किया।
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