Bharat me kheti ke prakar mind map ke sath (ऑब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर सहित )


खेती के प्रकार एवं प्रणालियाँ (Types and systems of farming)

भारत में खेती के प्रकार से अभिप्राय, भूमि के उपयोग, फसलों व पशुधन के उत्पादन का आकार और कृषि क्रियाओं व रीतियों से लगाया जाता है।

Types of farming with mind map


खेती के पाँच प्रकार एवं उनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।-

विशिष्ट खेती (Specialised Farming): विशिष्ट खेती के अन्तर्गत केवल एक ही फसल या उद्यम का उत्पादन बाजार के लिए किया जाता है और किसान अपने आय के लिए केवल उसी एक उद्यम पर निर्भर रहता है। 

अर्थात विशिष्ट खेती से अभिप्राय उन जोतों से है जो अपनी कुल आय का कम से कम 50% किसी एक उद्यम अथवा फसल से प्राप्त करें जैसे-चाय, कहवा, गन्ना, रबर आदि के फार्म।

बहुप्रकारीय खेती (Diversified Farming): बहुप्रकारीय खेती से अभिप्राय उस प्रकार की जोतों या फार्मों से है जिन पर आमदनी के स्रोत कई उद्यमों या फसलों पर निर्भर करते हैं और प्रत्येक उद्यम अथवा फसल से जोत की कुल आमदनी का 50% से कम ही भाग प्राप्त होता है। 

अर्थात जिस फार्म पर कुल आमदनी के कई स्रोत हों तथा प्रत्येक स्रोत से कुल आमदनी का 50% या इससे अधिक न मिलता हो उसे बहुप्रकारीय खेती कहतें है। ऐसे फार्म को विविध फार्म (General Farm) भी कहते हैं।

मिश्रित खेती (Mixed Farming): मिश्रित खेती के अन्तर्गत फसलों के उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन या डेरी उद्योग भी किया जाता है। भारतवर्ष में कृषि के साथ पशु वर्ग जुड़ा है, क्योंकि पशु खेतों में शक्ति के मुख्य स्रोत के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं। दूध देने वाली गाय व भैंस प्राय: प्रत्येक किसान के पास होती है।

भारत जैसे देश में जहाँ खेती में मशीनों का प्रयोग कम किया जाता है। मिश्रित खेती एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह एक प्रकार की बहुप्रकारीय खेती हैं. जिसमें पशुपालन व फसल उत्पादन एक दूसरे पर पूर्णतया निर्भर रहते हैं। ऐसी खेती के अन्तर्गत सहायक उद्यम का कुल आय में कम से कम 10% की हिस्सेदारी होती है। सहायक उद्यम उप-पदार्थों (bye-product) का उपभोग करता है।

शुष्क खेती : समस्या एवं समाधान - ऐसी भूमि में जहाँ वार्षिक वर्षा 20 इंच अथवा इससे कम हो, वहाँ बिना किसी सिंचाई साधन के उपयोगी फसलों के आर्थिक उत्पादन को शुष्क खेती कहते हैं।

शुष्क खेती के क्षेत्रों में फसल उत्पादन के लिए भूमि में वर्षा के पानी की अधिक से अधिक मात्रा को सुरक्षित रखा जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शुष्क खेती उत्पादन की वह सुधरी प्रणाली है जिसमें किसी निश्चित भूमि पर पानी की अधिकतम मात्रा को सुरक्षित रखकर भरपूर उत्पादन किया जाता है।

शुष्क भूमि कृषि के लिए वर्षा ही जल का एक मात्र स्रोत है। यह वर्षा भी मात्रा में अपर्याप्त तथा अत्यधिक परिवर्तनशील होता है। अतः इनकी समस्यायें भी विशिष्ट हैं जो निम्न हैं-

  • शुष्क भूमि क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता कम है, 700-1000 किग्रा.प्रति हेक्टेयर के बीच। --यह निम्न गहनता का क्षेत्र है।
  • यहाँ परम्परागत विधि से कृषि का कार्य होता है। अतः धनाभाव के कारण यहाँ आवश्यक सुविधाओं का अभाव होता है।
  • वर्षा की अनिश्चिाता के कारण बृहद् क्षेत्रों में पशुपालन का कार्य किया जाता है परन्तु यह मिश्रित व्यवस्था वैकल्पिक अर्थव्यवस्था के रूप में कार्य करने में असमर्थ साबित हुआ है।
  • यह क्षेत्र जल व भूमि संसाधन के उचित विकास न होने के कारण अभी भी अविकसित है।
  • समस्यायें समाप्त करने हेतु प्रयासः
  • देश में स्वतन्त्रता के पश्चात् से ही शुष्क भूमि कृषि की समस्यायों को समाप्त करने हेतु प्रयास जार है जो निम्न हैं-
  • सिंचाई के साधनों का विकास करते हुए अनेक नहरों का निर्माण किया गया। जैसे- इन्दिरा गाँधी नहर से राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि तथा अन्य नहरों से गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों में अनेक कमांड क्षेत्र विकसित किए गए। कमांड क्षेत्रों में जल की उपलब्धता से दो-दो फसलें उत्पन्न की जाने लगी हैं।
  • पशुपालन कृषि के विकास को बढ़ावा दिया गया है। हरित क्रांति से भी यह क्षेत्र सर्वाधिक लाभान्वित हुआ है।
  • ऐसी फसलों को प्रोत्साहन दिया जाता है, जो मृदा नमी पर आधारित एवं मृदा क्षरण अवरोधक होती हैं।
  • क्षेत्रीय असमानता कम करने के लिए सरकार ने 20 सूत्री कार्यक्रम भी चलाए हैं।
  • आठवीं पंचवर्षीय योजना से शुष्क प्रदेश की कृषि विकास को टिकाऊ कृषि का रूप देने का प्रयास किया जा रहा है |
  • जल संरक्षण के लिए ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकल सिंचाई व वाटर हार्वेस्टिंग पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। इस तरह के सिंचाई का विकास राजस्थान व कर्नाटक में सर्वाधिक हुआ है।
  • उपयोगी फसल चक्र को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि शुष्क भूमि कृषि विकास के लिए आधुनिक कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया जा रहा है। लेकिन यह आवश्यक है कि सभी कार्यों में समन्वय स्थापित किया जाए।

रैंचिग खेती (Ranching Farming): इस प्रकार की खेती में भूमि की जुताई, बुआई गुड़ाई आदि नहीं की जाती और न ही फसलों का उत्पादन किया जाता है, बल्कि प्राकृतिक बनस्पति पर विभिन्न प्रकार के पशुओं जैसे-भेड़, बकरी आदि को चराया जाता है। 

इस प्रकार की खेती आस्ट्रेलिया, अमेरिका, तिब्बत तथा भारत के पर्वतीय या पठारी क्षेत्रों में भेंड़, बकरी चराने के लिए की जाती है। ज्ञातव्य है कि आस्ट्रेलिया आदि देशों में भेड़, बकरी रखने वालों को रैंचर की संज्ञा दी जाती है।

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खेती की प्रणालियाँ (Systems of Farming):

भारतीय दशाओं के अनुसार खेती की प्रणाली से अभिप्राय कृषि में आर्थिक व सामाजिक क्रियाओं की गतिविधियों से है, जिसके अन्तर्गत कृषि का कार्यक्रम सम्पन्न किया जाता है। कृषि की प्रमुख प्रणालियाँ अधोलिखित हैं। यथा -

राजकीय खेती (State Farming): राजकीय खेती किये जाने वाले फार्म सरकार की सम्पत्ति होते हैं और भूमि का प्रबन्ध सरकारी कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। फार्म उत्पादन की योजना सरकार द्वारा बनायी जाती है। प्रतिदिन का कार्य दिहाड़ी मजदूरों द्वारा किया जाता है। 

ऐसे फार्मों को चलाने के लिए राज्य द्वारा सभी प्रकार की सुविधाएँ व आवश्यकतानुसार पूँजी दी जाती हैं। इस प्रकार के फार्म अनुसन्धान के कार्य, प्रदर्शन व अच्छे बीज की मात्रा को बढ़ाने के लिए चलाए जाते हैं।

पूँजीवादी खेती (Capitalistic Farming): पूँजीवादी कृषि के अन्तर्गत पूँजीपतियों के पास बड़े-बड़े भू-खण्ड होते हैं जो या तो वे स्वयं क्रय करते हैं या सरकार द्वारा उनकों अधिग्रहित कर दिए जाते हैं। 

ये पूँजीपति इन भूखण्डों पर मजदूरों की सहायता एवं आधुनिक तकनीकी एवं साधनों को काम में लाकर भूमि का अधिकतम उपयोग करते हैं। यह व्यवस्था अमेरिका तथा ब्रिटेन में प्रचलित है। भारत में चाय, काफी व रबड़ के बागान में यह प्रणाली पायी जाती है।

निगमित खेती (Corporate Farming): कृषि के इस स्वरूप के अन्तर्गत खेती का प्रबन्ध एक निगम द्वारा किया जाता है। निगम के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है तथा सम्पूर्ण व्यवस्था संचालक मण्डल द्वारा की जाती है। 

इस व्यवस्था के अन्तर्गत बड़ी मात्रा में भूमि और पूँजी की आवश्यकता होती है। खेती का यह स्वरूप U.S.A में प्रचलित है। हमारे देश में महाराष्ट्र,तमिलनाडु और चन्नई के कुछ क्षेत्रों में भी खेती की यह प्रणाली प्रचलित है।

इसके अतिरिक्त सूरतगढ़ आदि कई फार्म्स को सम्मिलित करके केन्द्रीय सरकार के अधीन 'भारतीय राज्य फार्म्स निगम लिमिटेड' के अन्तर्गत व्यापारिक दृष्टि से खेती की जाती है। ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय किसान आयोग ने कृषि के व्यवसायिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की खेती को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है।

काश्तकारी खेती (Peasant farming): इस प्रणाली के अन्दर किसान का राज्य से सीधा सम्बन्ध होता है। वह स्वयं भूमि का मालिक होता है और उसको स्थायी, पैतृक व हस्तान्तरण के अधिकार प्राप्त होते हैं। वह निर्धारित माल गुजारी राज्य को देता है। कृषि का सभी कार्य किसान अपनी इच्छा से करता है | ध्यातव्य है कि खेती की प्रणालियों में यह प्रणाली भारत में प्रचलित है।

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संयुक्त खेती (Joint Farming): यह संगठन का वह रूप है जिसमें दो या अधिक कृषक सहकारी नहीं बल्कि आपसी साझेदारी के आधार पर अपने कृषि संसाधनों को संयुक्त करके कृषि कार्य करते हैं। जो लाभ या उत्पादन होता है उसे बराबर या किसी पूर्व निश्चित अनुपात में बांट लेते हैं।

सामूहिक खेती (Collective Farming): इस प्रणाली के अन्दर जोतों एवं समस्त कृषीय इनपुट को एकत्रित कर लिया जाता है। भूमि का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज में निहित होता है प्रबन्धन निर्वाचित प्रबन्ध समिति द्वारा किया जाता है। 

सदस्यों को श्रमिक वर्ग में बाँट दिया जाता है। जिन्हें कार्यानुसार पारिश्रमिक मिलता है। अन्ततः बचे लाभ का वितरण भूमि के आधार पर किया जाता है।

सहकारी खेती (Co-operative Farming): सहकारी खेती का तात्पर्य उस संगठन से है, जिसमें किसान परस्पर लाभ के उद्देश्य से स्वेच्छापूर्वक अपनी भूमि, श्रम और पूँजी को एकत्र करके सामूहिक रूप से खेती करते हैं। 

सदस्यों को उनके श्रम तथा भूमि के स्वामित्व के अनुपात में लाभांश के रूप में आमदनी प्राप्त होती है। सदस्य समिति से अलग होने के लिए स्वतंत्र होता है।

 

 

विभिन्न exam में पूछे गये ऑब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर सहित निम्न है :-

1.सर टामस मुनरो किस भू-राजस्व बन्दोबस्त से सम्बद्ध थे ? (U.P.P.C.S. - 2000)

(A) स्थायी बन्दोबस्त

(B) महालवाड़ी बन्दोबस्त

(C) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त

(D) उपर्युक्त कोई नहीं

2.विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है -(U.P.P.C.S. - 1999)

(A) 16 अक्टूबर

(C) 24 अक्टूबर

(C) 16 नवम्बर

(D) 24 नवम्बर

3.भारत में जमींदारी भू-व्यवस्था किसके काल में लागू किया गया था ? (S.S.C. - 1999)

(A) विलियम बैटिंग

(B) टामस मुनरों

(C) लार्ड कार्नवालिस

(D) लार्ड कैनिंन

4.किस व्यवस्था में भूमि पर ग्राम समुदाय का संयुक्त स्वामित्व होता था ? (B.P.S.C. - 1994)

(A) जमींदारी

(B) महलवारी व्यवस्था

(C) रैयतवारी व्यवस्था

(D) काश्तकारी व्यवस्था

5.निम्नलिखित में से कौन-सा 'प्रतियोगी बाजार'(Competitive market) है ?(UPPCS Main -2005)

(A) प्रचुर मात्रा में वस्तुएं

(B) वस्तुओं की कमी

(C) पूर्ण बाजार

(D) पूँजी बाजार

 



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